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दिमाग तेज करने की देशी दवाई

आज हर कोई चाहता है कि उसका दिमाग तेज हो ताकि वे हर जगह अपनी अलग पहचान बना सके। क्योंकि दिमाग हमारे शरीर को वो हिस्‍सा है जिसके संकेत के बिना शरीर का कोई भी अंग काम नहीं कर सकता। लेकिन कई बार बढ़ती उम्र, गलत आदतों, नशे और आवश्यक पोषक तत्वो की कमी आदि से याददाश्त कमजोर होने लगती है। 

आइए जानें ऐसी कौन सी जड़ी-बूटियां है जिनको अपने आहार में शामिल करके आप आसानी से तेज दिमाग पा सकते हैं।


1. जटामांसी

जटामांसी औषधीय गुणों से भरपूर जड़ी-बूटी है। यह दिमाग के लिए एक रामबाण औषधि है। यह याददाश्त को तेज करने की भी अचूक दवा है। एक चम्मच जटामासी को एक कप दूध में मिलाकर पीने से दिमाग तेज होता है।

2. बाह्मी

जड़ी-बूटी को दिमाग के लिए टॉनिक भी कहा जाता है। यह दिमाग को शांति प्रदान करती है और याद्दाश्त को मजबूत करने में भी मदद करती है। आधे चम्मच बाह्मी के पाउडर और शहद को गर्म पानी में मिलाकर पीने से दिमाग तेज होता है।


3. शंख पुष्पी


शंख पुष्‍पी दिमाग को बढ़ाने के साथ-साथ हमारी याद करने की क्षमता और सीखने की क्षमता को भी बढ़ाती है। दिमाग को तेज करने के लिए आधे चम्मच शंख पुष्पी को एक कप गरम पानी में मिला कर लें।


4. दालचीनी

दालचीनी सिर्फ गर्म मसाला ही नहीं, बल्कि एक जड़ी-बूटी भी है। यह दिमाग को तेज करने की बहुत अच्‍छी दवा है। रात को सोते समय नियमित रूप से एक चुटकी दालचीनी पाउडर को शहद के साथ मिलाकर लेने से डिेप्रेशन में राहत मिलती है और दिमाग तेज होता है। 


5. हल्‍दी

यह सिर्फ खाने के स्वाद और रंग में ही इजाफा नहीं करती है, बल्कि दिमाग को भी स्वस्थ रखने में मदद करती है। हल्दी दिमाग के लिए बहुत अच्‍छी जड़ी-बूटी है।  इसके नियमित सेवन से एल्जाइमर रोग नहीं होता है। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में हुए शोध के अनुसार, हल्दी में पाया जाने वाला रासायनिक तत्व कुरकुमीन दिमाग की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को रिपेयर करने में मदद करता है  


6. जायफल

गर्म तासीर वाले जायफल की थोड़ी मात्रा का सेवन करने से दिमाग तेज होता है। इसको खाने से आपको कभी एल्‍जाइमर यानी भूलने की बीमारी नहीं होती।


7. अजवाइन की पत्तियां

अजवाइन में भरपूर मात्रा में मौजूद एंटी-ऑक्‍सीडेंट दिमाग के लिए एक औषधि की तरह काम करता है। खाने में सुगंध के अलावा शरीर को स्‍वस्‍थ बनाए रखने में भी मदद करती है।


8. तुलसी

तुलसी कई प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए एक जानी-मानी जड़ी बूटी है। इसमें मौजूद शक्तिशाली एंटीऑक्‍सीडेंट हृदय और दिमाग में रक्त के प्रवाह में सुधार करता है। साथ ही इसमें पाई जाने वाली एंटी-इंफ्लेमेटरी अल्‍जाइमर जैसे रोग से सुरक्षा प्रदान करता हैं।


9. केसर

केसर का उपयोग खाने में स्‍वाद बढ़ाने के सा‍थ-साथ अनिद्रा और डिप्रेशन दूर करने वाली दवाओं में किया जाता है। इसके सेवन से दिमाग तेज होता है।


10. कालीमिर्च

 दिमाग को स्वस्थ बनाए रखने के लिए काली मिर्च का उपयोग करें।काली मिर्च में पाया जाने वाला पेपरिन नामक रसायन शरीर और दिमाग की कोशिकाओं को आराम देता है। डिप्रेशन को दूर करने के लिए भी यह रसायन जादू सा काम करता है।

दिमाग तेज करने की दवा बनाने की विधि


आंवला, शंखपुष्‍पी, ब्राह्मी, गिलोय, जटामांसी, सब 50-50 ग्राम लेकर उसे कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। एक चम्‍मच चूर्ण मधु, जल या आंवले के रस के साथ सुबह, दोपहर व शाम सेवन करें। कम उम्र के बच्‍चों को आधा चम्‍मच दें। यह टॉनिक सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए फायदेमंद व सुरक्षित है। यदि महिलाएं गर्भ काल के दौरान इसका सेवन करें तो पैदा होने वाला बच्‍चा हर प्रकार के मानसिक रोगों से मुक्‍त रहेगा

दादी-नानी के नुस्खे

बबूल का गोंद आधा किलो शुद्ध घी में तल कर निकाल लें और ठण्डे करके में बारीक पीस लें।
इसमें मिठास के लिए भरपूर मिश्री मिला लें।
250 ग्राम बीज निकाले हुए मुनक्केे और 100 ग्राम बादाम छिला हुआ बादाम लें
दोनों को खूब कूट पीसकर और गोंद-घी के पेस्ट में मिला दें।
सुबह नाश्ते के रूप में इसे दो चम्मच (बड़े) यानी लगभग 20-25 ग्राम मात्रा में खूब चबा-चबा कर खाएं।
साथ में एक गिलास मीठा दूध पीते रहे।
इसके बाद जब अच्छी भूख लगे तभी भोजन करें।
यह योग शरीर के लिए तो पौष्टिक है ही, साथ ही दिमागी ताकत और तरावट के लिए भी बहुत गुणकारी है।
छात्र-छात्राओं को यह नुस्खा अवश्य सेवन करना चाहिए।

दिल की देशी दवाई


दिल की बीमारी, दिल की संरचना और कार्यों को प्रभावित करने वाली समस्यायों के कारण होती हैं। यह ज्यादातर atherosclerosis या धमनियों की दीवारों (arteries walls) में plaque जमा होने के कारण होती हैं जिससे धमनियां सिकुड़ जाती हैं और उनमें रक्त का संचार रुकने लगता है और हार्ट अटैक (दिल का दौरा) पड़ने की सम्भावना बढ़ जाती है।
दिल की बिमारियों में सबसे common बीमारियाँ हैं – कोरोनरी धमनी की बीमारी (coronary artery disease), जन्मजात हृदय रोग (congenital heart disease), अनियमित दिल की धड़कन (arrhythmia), ह्रदय का रुक जाना (heart failure), heart valve problems आदि।
दिल की बीमारी के लक्षण इसके प्रकार पर निर्भर करते हैं। इसके कुछ common लक्षण हैं – साँसों की कमी (shortness of breath), छाती में दर्द (chest pain), दिल की धड़कन का धीमा होना (slow heartbeat), चक्कर आना, थकान महसूस होना और बेहोसी आना
निम्न कारकों के कारण दिल की बीमारी होने और बढ़ने की सम्भावना बढ़ जाती है – उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर)हाई कोलेस्ट्रॉलमधुमेह (डायबिटीज), धूम्रपान (smoking), अत्यधिक शराब और कैफीन (caffeine) सेवन, डिप्रेशन, दवाई का दुरूपयोग (drug abuse), अनियमित जीवनशैली, उम्र का बढ़ना और परिवार में हृदय रोग रोग होने का लम्बा इतिहास होना।
दिल की बीमारी होने पर डॉक्टर से उचित जाँच और उपचार कराना जरूरी होता है। साथ ही कुछ घरेलू नुस्खे अपनाकर और अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव लाकर आप अपने हार्ट को healthy रख सकते हैं।
इसमें से कुछ उपचार आपकी मेडिसिन्स के साथ interfere कर सकते हैं और कुछ cases में यह उपयुक्त नहीं हैं, इसलिए इन औषधियों को लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
यहाँ पर दिल की के 10 सबसे कारगर घरेलू उपचार दिए जा रहे हैं

1. लहसुन (Garlic)

कई शोधों में लहसुन को हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रॉल और हृद – धमनी रोग (coronary heart disease) में फायदेमंद पाया गया है। यह धमनियों में atherosclerosis को रोकता है और उन्हें हार्ड नहीं देता। साथ ही लहसुन में antithrombotic और antiplatelet aggregatory effects होते हैं और यह ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है।
  • रोज एक या दो लहसुन की कलियों को कूटकर सेवन करें। यदि आपको इसका स्वाद अच्छा नहीं लगता तो इसे खाने के बाद एक गिलास दूध पियें।
  • या फिर, आप लहसुन के सप्लीमेंट (मेडिसिन) का भी सेवन कर सकते हैं। Generally, आप 600 से 1200 mg की टेबलेट्स को दिन में तीन बार सेवन कर सकते हैं।
नोट – लहसुन में blood-thinning properties होती हैं जो कुछ मेडिसिन्स के साथ interfere कर सकती हैं। इसलिए इसकासेवन करने से पहले अपने अपने डॉक्टर से सलाह लें।

2. नागफनी (Hawthorne)

नागफनी हृदय प्रणाली (cardiovascular system) को ठीक रखने के लिए काफी फायदेमंद होती है, इसलिए इसे दिल की बिमारियों को ठीक करने के लिए काफी उपयोगी माना जाता है। यह ह्रदय में रक्त के संचार को बढ़ाती है और cardiac muscle contractions को ठीक करती है जिससे ह्रदय की पम्पिंग प्रक्रिया मजबूत होती है।
यह दिल के performance और output को भी बढ़ाती है और उसके workload को कम करती है। साथ ही, इसके anti-arrhythmic effect होते हैं जो दिल कि धड़कन को नियमित बनाये रखने में मदद करते हैं।
आप नागफनी के सप्लीमेंट्स ले सकते हैं। इसके जनरल डोज हैं 300 से 600 mg टेबलेट्स रोज तीन बार। इसका सेवन कुछ हफ्तों या महीनों के लिए रोज करें।
नोट – चूंकि यह औषधि उपयोग करने के लिए सुरक्षित है, लेकिन फिर भी इसका या अन्य किसी औषधि का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर सलाह लें।

3. अर्जुन के पेड़ कि छाल

अर्जुन के पेड़ की छाल दिल की बीमारी के लिए काफी फायदेमंद औषधि है। इसे प्राकृतिक कार्डियो-टॉनिक और cardiac restorative माना जाता है। यह हर्ब cardiac muscle को मजबूत करती है, arterial congestion को कम करती है और ब्लड प्रेशर को कम करती है।
भारत में कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज में हुई एक रिसर्च में यह पाया गया कि अर्जुन के पेड़ की छाल angina attack को 30% तक कम करने में मदद करती है। साथ ही, इस औषधि का ज्यादा इस्तेमाल और अधिक समय तक इस्तेमाल करने से कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होते।
  • एक गिलास गर्म दूध में डेढ़ चम्मच अर्जुन के पेड़ की छाल का पाउडर और थोड़ा सा शहद मिलाकर सेवन करें। इसका सेवन लगातार कुछ महीनों के लिए रोज दिन में तीन बार सेवन करें।
  • या फिर, आप इसके सप्लीमेंट भी ले सकते हैं। हर 8 घंटे में एक 500 mg टेबलेट का सेवन करें। इसका सेवन लगातार तीन महीने के लिए करें।

4. गुडहल (Hibiscus)

ताइवान में शोधकर्ताओं ने पाया कि गुडहल के फूल में एंटी-एथोरोसलेरोसिस गतिविधि (anti-atherosclerosis activity) होती है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट प्रॉपर्टीज पाई जाती हैं जो लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (LDL) या bad cholesterol के oxidation को रोकने में मदद करती हैं, जिससे atherosclerosis और दिल की बिमारियों में लाभ मिलता है।
  • एक कप पानी में दो गुडहल के फूल की पत्तियों को उबालें।
  • अब इसे छानकर एक चम्मच शहद मिला दें।
  • कुछ हफ़्तों के लिए इसका रोज एक बार सेवन करें।

5. हल्दी (Turmeric)

शोधों से पता चला है कि हल्दी भी atherosclerosis को रोकने में मदद करती है। इसमें curcumin नामक एक्टिव घटक पाए जाते हैं जो कोलेस्ट्रॉल ऑक्सीकरण, plaque buildup और clot formation को रोककर दिल को स्वस्थ बनाये रखने में मदद करते हैं।
साथ ही, यह LDL को कम करने में मदद करती है और एंटी-इन्फ्लेमेटरी लाभ प्रदान करती है। एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट होने के कारण यह फ्री रेडिकल्स को बेअसर करने में भी मदद करती है। शरीर में फ्री रेडिकल्स उम्र बढ़ाते हैं और कुछ कुछ क्रोनिक डिजीज होने का कारण बनते हैं।
  • अपने भोजन में हल्दी का नियमित उपयोग करें।
  • आप एक गिलास दूध में एक चम्मच हल्दी को उबालकर भी सेवन कर सकते हैं। इसका सेवन रोज एक या दो बार करें।
  • हल्दी के सप्लीमेंट भी उपलब्ध होते हैं। इसका जनरल डोज है 400 से 600 mg standardized curcumin powder supplement का रोज तीन बार सेवन। आपके लिए इसका उचित डोज जानने के लिए अपने डॉक्टर से सलाह लें।

6. लाल मिर्च (Cayenne)

लाल मिर्च में capsaicin नामक कंपाउंड होता है जो हार्ट और सर्कुलेटरी प्रॉब्लम्स का उपचार करने में फायदेमंद होता है। यह अनीयामित दिल की धड़कन (irregular heart rhythms) होने की सम्भावना को भी रोकता है और कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करता है। इसमें फाइटोकेमिकल्स होते हैं जो रक्त को शुद्ध करते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।
  • एक गिलास गर्म पानी में एक चम्मच लाल मिर्च मिलाएं। अब इसे अच्छे से घोलकर सेवन करें। इसका सेवन दिन में दो-तीन बार करें। यदि मिर्च से जलन हो तो इसके बाद एक-दो चम्मच शहद का सेवन करें।
  • या फिर, आप लाल मिर्च के कैप्सूल का सेवन भी कर सकते हैं। आपके के लिए उचित डोज जानने के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

7. अल्फला (रिजका)

अल्फला कोलेस्ट्रॉल लेवल और plaque buildup को रोक के दिल की बीमारी होने की सम्भावना को कम करता है।
  • रोज दिन में दो-तीन बार अल्फला की चाय या जूस का सेवन करें।
  • आप अल्फला की पत्तियों के सप्लीमेंट भी ले सकते हैं। इसके उचित डोज के लिए अपने डॉक्टर से सलाह लें।

8. मेंथी (Fenugreek)

मेंथी के एंटीऑक्सीडेंट और कार्डियो-प्रोटेक्टिव (cardio-protective) लाभ होते हैं। यह blood lipid levels को ठीक करती है इसलिए यह दिल की बीमारी की सम्भावना को कम करने में काफी फायदेमंद होती है।
यह प्लेटलेट जमा होने से रोकती है जिससे रक्त वाहिकाओं में ब्लड क्लॉटिंग कम होती है और हार्ट अटैक होने की सम्भावना कम हो जाती है। साथ ही, यह कोलेस्ट्रॉल, ब्लड शुगर और अतिरिक्त फैट को कम करने में भी मदद करती है।
  • रात को एक चम्मच मेंथी के बीजों को पानी में डुबोकर रख दें।
  • अगली सुबह, इन बीजों को खली पेट सेवन करें।
  • कुछ महीनों के लिए इसे रोज करें।

9. ग्रीन टी

ग्रीन टी में पावरफुल एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो हार्ट और ब्लड वेसल्स की इनर लाइन के सेल्स की हेल्थ को बढ़ाते हैं। यह कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड लेवल को भी कम करने में मदद करती है। साथ ही, ग्रीन टी ब्लड शुगर को कण्ट्रोल करने में मदद करती है और मेटाबोलिज्म को बढ़ाती है।
  • रोज तीन-चार कप कैफीन-फ्री ग्रीन टी का सेवन करें।
  • या फिर, आप 100 से 750 mg के standardized ग्रीन टी के extract का भी सेवन कर सकते हैं।

10. व्यायाम और स्वस्थ भोजन (Exercise and Healthy Diet)

नियमित एक्सरसाइज, हेल्थी डाइट और हेल्थी लाइफस्टाइल अपनाने से ह्रदय स्वस्थ रहता है और दिल की बीमारी होने की सम्भावना कम होती है। Aerobic एक्सरसाइज जैसे चलना (walking), जॉगिंग, साइकिल चलाना, रस्सी कूदना आदि हृदय प्रणाली (cardiovascular system) के लिए ज्यादा फायदेमंद होती हैं। यह रक्त संचार को ठीक रखती हैं और ब्लड प्रेशर को कम करती हैं।
साथ ही, एक्सरसाइज शरीर के वजन को कण्ट्रोल में रखती हैं और तनाव को कम करती हैं जिससे दिल के साथ-साथ अन्य बीमारियाँ भी नहीं होती। फिजिकल एक्सरसाइज के साथ-साथ योग और deep breathing करने से भी लाभ होता है।

अतिरिक्त टिप्स

  • अपने भोजन में फैट, कोलेस्ट्रॉल और नमक को कम करें।
  • अपने भोजन में सैचुरेटेड (saturated) फैट्स की जगह पॉलीअनसेचुरेटेड (polyunsaturated) और मोनोअनसेचुरेटेड (monounsaturated) फैट्स का इस्तेमाल करें। जैसे मक्खन की जगह जैतून के तेल का इस्तेमाल करें।
  • धूम्रपान और अत्यधिक शराब का सेवन न करें।
  • तनाव को कम करें और नियमित योग और ध्यान करें।
  • डायबिटीज को कण्ट्रोल में रखें।
  • डॉक्टर की सलाह लेकर ओमेगा-3, coenzyme Q-10, विटामिन डी और L-carnitine के सप्लीमेंट्स लें।
  • पूरी नींद लें
  • डॉक्टर से नियमित रूप से अपने हार्ट की जाँच कराते रहें।

Swami Nikhileshwaranand ji

परमपूज्य सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद जी 

आप सभी को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाए | हम सभी आपस मे प्रेम करे ज्ञान चर्चा करे और निखिल संदेश को जन जन तक पहुंचाए |


धरती सब कागद करूं, लेखनी सब बनराय। 
साह सुमुंद्र की मसि करूं, गुरू गुण लिखा न जाय़।।

परमपूज्य सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद जी About Swami Nikhileshwaranand ji

परमपूज्य सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद जी एक ऐसे उदात्ततम व्यक्तित्व हें, जिनके चिन्तन मात्र से ही दिव्यता का बोध होने लगता हैं। प्रलयकाल में समस्त जगत को अपने भीतर समाहित किए हुए महात्मा हिरण्यगर्भ की तरह शांत और सौम्य हैं। व्यवहारिक क्षेत्र में स्वच्छ धौत वस्त्र में सुसज्जित ये जितने सीधे-सादे से दिखाई देते हैं, इससे हट कर कुछ और भी हैं, जो सर्वसाधारण गम्य नहीं हैं। साधनाओं के उच्चतम सोपान पर स्थित विश्व के जाने-मने सम्मानित व्यक्तित्व हैं। इनका साधनात्मक क्षेत्र इतना विशालतम है, कि इसे सह्ब्दों के माध्यम से आंका नहीं जा सकता। किसी भी
प्रदर्शन से दूर हिमालय की तरह अडिग, सागर की तरह गंभीर, पुष्पों की तरह सुकोमल और आकाश की तरह निर्मल हैं।

इनके संपर्क में आया हुआ व्यक्ति एक बार तो इन्हें देखकर अचम्भे में पड़ जाता हैं, कि ये तो महर्षि जह्रु की तरह अपने अन्तस में ज्ञान गंगा के असीम प्रवाह को समेटे हुए हैं।

पूज्य गुरुदेव ऋषिकालीन भारतीय ज्ञान परम्परा की अद्वितीय कड़ी हैं। जो ज्ञान मध्यकाल में अनेक-प्रतिघात के कारण अविच्छिन्न हो, निष्प्राण हो गया था, जिस दिव्य ज्ञान की छाया तले समस्त जाति ने सुख, शान्ति एवं आनंद का अनुभव किया था, जिसे ज्ञान से संबल पाकर सभी गौरवान्वित हुए थे। तथा समस्त विसंगतियों को परास्त करने में सक्षम हुए थे, जिस ज्ञान को हमारे ऋषियों ने अपनी तपः ऊर्जा से सबल एवं परिपुष्ट करके जन कल्याण के हितार्थ स्वर्णिम स्वप्न देखे थे... पूज्यपाद सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद जी ने समाज की प्रत्येक विषमताओं से जूझते हुए, अपने को तिल-तिल जलाकर उसी ज्ञान परम्परा को पुनः जाग्रत किया है, समस्त मानव जाति को एक सूत्र में पिरोकर उन्होनें पुनः उस ज्ञान प्रवाह को साधनाओं के माध्यम से आप्लावित किया है। मानव कल्याण के लिए अपनी आंखों में अथाह करुणा लिए उन्होनें मंत्र और तंत्र के माध्यम से, ज्योतिष, कर्मकाण्डएवं यज्ञों के माध्यम से, शिविरों तथा साधनाओं के माध्यम से उन्होनें इस ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाया हैं।

ऐसे महामानव, के लिए कुछ कहने और लिखने से पूर्व बहुत कुछ सोचना पङता है। जीवन के प्रत्येक आयाम को स्पर्श करके सभी उद्वागों से रहित, जो राम की तरह मर्यादित, कृष्ण की तरह सतत चैतन्य, सप्तर्षियों की तरह सतत भावगम्य अनंत तपः ऊर्जा से संवलित ऐसे सदगुरू जी का ही संन्यासी स्वरुप स्वामी योगिराज परमहंस निखिलेश्वरानंद जी हैं। निखिल स्तवन के एक-एक श्लोक उनके इसी सन्यासी स्वरुप का वर्णन हैं।

बाहरी शरीर से भले ही वे गृहस्थ दिखाई दें, बाहरी शरीर से वे सुख और दुःख का अनुभव करते हुए, हंसते हुए, उसास होते हुए, पारिवारिक जीवन व्यतीत करते हुए या शिष्यों के साथ जीवन का क्रियाकलाप संपन्न करते हों, परन्तु यह तो उनका बाहरी शरीर है। उनका आभ्यंतरिक शरीर तो अपने-आप में चैतन्य, सजग, सप्राण, पूर्ण योगेश्वर का है, जिनको एक-एक पल का ज्ञान है और उस दृष्टि से वे हजारों वर्षों की आयु प्राप्त योगीश्वर हैं, जिनका यदा-कदा ही जन्म पृथ्वी पर हुआ करता है।

एक ही जीवन में उन्होनें प्रत्येक युग को देखा है, त्रेता को, द्वापर को, और इससे भी पहले वैदिक काल को। उनको वैदिक ऋचाएं कंठस्थ हैं, त्रेता के प्रत्येक क्षण के वे साक्षी रहे हैं।

लगभग १५०० वर्षों का मैं साक्षीभूत शिष्य हूँ, और मैंने इन १५०० वर्षों में उन्हें चिर यौवन, चिर नूतन एक सन्यासी रूम में देखा है। बाहरी रूप में उन्होनें कई चोले बदले, कई स्थानों में जन्म लिया, पर यह मेरा विषय नहीं था, मेरा विषय तो यह था, कि मैं उनके आभ्यन्तरिक जीवन से साक्षीभूत रहूं, एक संन्यासी जीवन के संसर्ग में रहूं और वह संन्यासी जीवन अपन-आप उच्च, उदात्त, दिव्य और अद्वितीय रहा हैं।

उन्होनें जो साधनाएं संपन्न की हैं, वे अपने-आप में अद्वितीय हैं, हजारों-हजारों योगी भी उनके सामने नतमस्तक रहते हैं, क्योंकि वे योगी उनके आभ्यन्तरिक जीवन से परिचित हैं, वे समझते हैं कि यह व्यक्तित्व अपने-आप में अद्वितीय हैं, अनूठा हैं, इनके पास साधनात्मक ज्ञान का विशाल भण्डार हैं, इतना विशाल भण्डार, कि वे योगी कई सौ वर्षों तक उनके संपर्क और साहचर्य में रहकर भी वह ज्ञान पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर सके। प्रत्येक वेद, पुराण , स्मृति उन्हें स्मरण हैं, और जब वे बोलते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे स्वयं ब्रह्मा अपने मुख से वेद उच्चारित कर रहे हों, क्योंकि मैंने उनके ब्रह्म स्वरुप को भी देखा हैं, रुद्र स्वरुप को भी देखा है, और रौद्र स्वरुप का भी साक्षी रहां हू।

आज भी सिद्धाश्रम का प्रत्येक योगी इस बात को अनुभव करता है, की 'निखिलेश्वरानंद' जी नहीं है, तो सिद्धाश्रम भी नहीं है, क्योंकि निखिलेश्वरानंद जी उस सिद्धाश्रम के कण-कण में व्याप्त है। वे किसी को दुलारते हैं, किसी को झिड करते हैं, किसी को प्यार करते हैं, तो केवल इसलिए की वे कुछ सीख लें, केवल इसलिए की वे कुछ समझ ले, केवल इसलिए कि वह
जीवन में पूर्णता प्राप्त कर ले, और योगीजन उनके पास बैठ कर के अत्यन्त शीतलता का अनुभव करते हैं। ऐसा लगता है, कि एक साथ ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास बैठे हों, एक साथ हिमालय के आगोश में बैठे हों, एक साथ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को समेटे हुए जो व्यक्तित्व हैं, उनके पास बैठे हों। वास्तव में 'योगीश्वर निखिलेश्वरानन्द' इस समस्त ब्रह्माण्ड की अद्वितीय
विभूति हैं।

राम के समय राम को पहिचाना नहीं गया, उस समय का समाज राम की कद्र, उनका मूल्यांकन नहीं कर पाया, वे जंगल-जंगल भटकते रहे। कृष्ण के साथ भी ऐसा हुआ, उनको पीड़ित करने की कोई कसार बाकी नहीं राखी और एक क्षण ऐसा भी आया, जब उनको मथुरा छोड़ कर द्वारिका में शरण लेनी पडी और उस समय के समाज ने भी उनकी कद्र नहीं की। बुद्ध के समय में जीतनी वेदना बुद्ध ने झेली, समाज ने उनकी परवाह नहीं की। महावीर के कानों में कील ठोक दी गईं, उन्हें भूकों मरने के लिए विवश कर दिया गया, समाज ने उनके महत्त्व को आँका नहीं।

यदि सही अर्थों में 'सदगुरुदेव जी' को समझना है, तो उनके निखिलेश्वरानन्द स्वरुप समझना पडेगा। इन चर्म चक्षुओं से उन्हें नहीं पहिचान सकते, उसके लिए, तो आत्म-चक्षु या दिव्या चक्षु की आवश्यकता हैं।

मैंने ही नहीं हजारों संन्यासियों ने उनके विराट स्वरुप को देखा है। कृष्ण ने गीता में अर्जुन को जिस प्रकार अपना विराट स्वरुप दिखाया, उससे भी उच्च और अद्वितीय ब्रह्माण्ड स्वरुप मैंने उनका देखा है, और एहेसास किया है कि
वे वास्तव में चौसष्ट कला पूर्ण एक अद्वितीय युग-पुरूष हैं, जो किसी विशेष उद्देश्य को लेकर पृथ्वी गृह पर आए हैं। मैं अकेला ही साक्षी नहीं हूं, मेरे जैसे हजारों संन्यासी इस बात के साक्षी हैं, कि उन्हें अभूतपूर्व सिद्धियां प्राप्त हैं। भले ही वे अपने -आप को छिपाते हों, भले ही वे सिद्धियों का प्रदर्शन नहीं करते हों, मगर उनके अन्दर जो शक्तियां और सिद्धियां निहित हैं, वे अपने-आप में अन्यतम और अद्वितीय हैं।

एक जगह उन्होनें अपनी डायरी में लिखा हैं --

"मैं तो एक सामान्य मनुष्य की तरह आचरण करता रहा, लोगों ने मुझे भगवान् कहा, संन्यासी कहा, महात्मा कहा, योगीश्वर कहा, मगर मैं तो अपने आपको एक सामान्य मानव ही समझता हूँ। मैं उसी रूप में गतिशील हूं, लोग कहें तो मैं उनका मुहबन्द नहीं सकता, क्योंकि जो जीतनी गहराई में है, वह उसी रूप में मुझे पहिचान करके अपनी धारणा बनाता हैं। जो मुझे उपरी तलछट में देखता है, वह मुझे सामान्य मनुष्य के रूप में देखता हैं, और जो मेरे आभ्यंतरिक जीवन को देखता है, वह मुझे 'योगीश्वर' कहता है, 'संन्यासी' कहता है। यह उनकी धारणा है, यह उनकी दृष्टि है, यह उनकी दूरदर्शिता है। जो मेरी आलोचना करते हैं, उनको भी मैं कुछ नहीं कहता, और जो मेरा सम्मान करते हैं, मेरी प्रशंसा करते हैं, उनको भी मैं कुछ नहीं कहता, और जो मेरा सम्मान करते हैं, मेरी प्रशंसा करते हैं, उनको भी मैं कुछ नहीं कहता, क्योंकि मैं सुख-दुःख, मान-अपमान इन सबसे सर्वथा परे हूं।

मैंने कोई दावा नहीं किया, कि मैं दस हजार वर्षों की आयु प्राप्त योगी हूं, और न ही मैं ऐसा दावा करता हूं, कि मैंने भगवे वस्त्र धारण कर संन्यासी रूप में विचरण किया, हिमालय गया, सिद्धियां प्राप्त कीं, या मैं कोई चमत्कारिक व्यक्तित्व या मैं कोई अद्वितीय कार्य संपन्न किया है। मैं तो एक सामान्य मनुष्य हूं और सामान्य मनुष्य की तरह ही जीवन व्यतीत करना चाहता हूं।" डायरी के ये अंश उनकी विनम्रता है, यह उनकी सरलता है, परन्तु जो पहिचानने की क्षमता रखते हैं - उनसे यह छिपा नहीं है, के वे ही वह अद्वितीय पुरूष हैं, तो कई हजार वर्षों बाद पृथ्वी पर अवतरित होते हैं।
------योगी विश्वेश्रवानंद copy right MTYV

Sab kuch

माँ पर शायरी

  "माँ के कदमों में बसी जन्नत की पहचान, उसकी दुआओं से ही रोशन है हर इंसान। जिंदगी की हर ठोकर से बचा लेती है, माँ की ममता, ये दुन...