तब आदिशक्ति मां दुर्गा का रूप मां शाकंभरी देवी में अवतरित हुई, जिनके सौ नेत्र थे। उन्होंने रोना शुरू किया, रोने पर आंसू निकले और इस तरह पूरी धरती में जल का प्रवाह हो गया। अंत में मां शाकंभरी दुर्गम दैत्य का अंत कर दिया।
एक अन्य कथा के अनुसार देवी ने सौ वर्षों तक तप किया था और महीने के अंत में एक बार शाकाहारी भोजन कर तप किया था। ऐसी निर्जीव जगह जहां पर सौ वर्ष तक पानी भी नहीं था, वहां पर पेड़-पौधे उत्पन्न हो गए।
शक्तिपीठ शाकम्भरी देवी मंदिर उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर मे अवस्थित एक महाशक्तिपीठ है। कामाख्या, रजरप्पा पीठ, तारापीठ, विंध्याचल पीठ की भांति यह भी एक सिद्ध पीठ है क्योंकि यहाँ माँ की प्रतिमा स्वयं सिद्ध है जोकि दुर्लभ क्षेत्रों मे ही होती है, केदारखंड के अनुसार यह शाकम्भरी क्षेत्र है जिसकी महिमा अपार है।
ब्रह्मपुराण मे इस पीठ को सिद्धपीठ कहा गया है अनेकों पुराणों और आगम ग्रंथों में यह पीठ परम पीठ, शक्तिपीठ,सतीपीठ और सिद्धपीठ नामों से चर्चित है। यह क्षेत्र भगवती शताक्षी का सिद्ध स्थान है।
इस परम दुर्लभ तीर्थ क्षेत्र को पंचकोसी सिद्धपीठ कहा जाता है।भगवती सती का शीश इसी क्षेत्र मे गिरा था इसलिए इसकी गणना देवी के प्रसिद्ध शक्तिपीठों मे होती है। उत्तर भारत की नौ देवियों की प्रसिद्ध यात्रा माँ शाकम्भरी देवी के दर्शन बिना पूर्ण नही होती। शिवालिक पर्वत पर स्थित यह शाकम्भरी देवी का सबसे प्राचीन तीर्थ है।
शाकम्भरी यत्र जाता मुनिनात्राण कारणात। तस्य पीठं परम पीठं सर्वपाप प्राणशनं। गत्वा शाकम्भरी पीठें नत्वा शाकम्भरी तथा। (केदारखंड) स्कंदपुराण ।
शाकम्भरी देवी माँ आदिशक्ति जगदम्बा का एक सौम्य अवतार हैं। इन्हें चार भुजाओं और कही पर अष्टभुजाओं वाली के रुप में भी दर्शाया गया है। ये माँ ही वैष्णो देवी, चामुंडा, कांगड़ा वाली, ज्वाला, चिंतपूर्णी , कामाख्या,शिवालिक पर्वत वासिनी, चंडी, बाला सुंदरी, मनसा, नैना और शताक्षी देवी कहलाती है। माँ शाकम्भरी ही रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमादेवी,भ्रामरी और श्री कनकदुर्गा है।
माँ श्री शाकंभरी के देश मे अनेक पीठ है। लेकिन शक्तिपीठ केवल एक ही है जो सहारनपुर के पर्वतीय भाग मे है यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों मे से एक है और उत्तर भारत मे वैष्णो देवी के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर है इसके अलावा दो मंदिर भी है।
शाकम्भरी माता राजस्थान,को सकरायपीठ कहते हैं जोकि राजस्थान मे है और सांभर पीठ भी राजस्थान मे है ।वर्तमान मे उत्तर भारत की नौ देवियों मे शाकम्भरी देवी का नौंवा और अंतिम दर्शन होता है वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा मे माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं। नौ देवियों मे माँ शाकम्भरी देवी का स्वरूप सर्वाधिक करूणामय और ममतामयी माँ का है। जो मां अन्न जल संसाधन प्रदान करने वाली हैं, सभी प्राणी पर अपना कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं। पौष पूर्णिमा को मां शाकंभरी देवी की जयंती मनाया जाता है।
माँ शाकम्भरी देवी की आरती
हरि ॐ
श्री शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो
ऐसी अद्भुत रूप हृदय धर लीजो।।
शताक्षी दयालु की आरती कीजो
तुम परिपूर्ण आदि भवानी मां, सब घट तुम आप बखानी मां
शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो।।
तुम्हीं हो शाकुम्भर, तुम ही हो सताक्षी मां
शिवमूर्ति माया प्रकाशी मां,
शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो।।
नित जो नर-नारी अम्बे आरती गावे मां
इच्छा पूर्ण कीजो, शाकुम्भर दर्शन पावे मां
शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो ।।
जो नर आरती पढ़े पढ़ावे मां, जो नर आरती सुनावे मां
बस बैकुंठ शाकुम्भर दर्शन पावे
शाकुम्भरी अंबाजी की आरती कीजो ।।
मां शाकम्भरी देवी कवच
शक्र उवाच
शाकंभर्यास्तु कवचं सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे कथय षण्मुख ॥ १ ॥
स्कंद उवाच
शक्र शाकंभरीदेव्याः कवचं सिद्धिदायकम् ।
कथयामि महाभाग श्रुणु सर्वशुभावहम् ॥ २ ॥
अस्य श्री शाकंभरी कवचस्य ॥ स्कंद ऋषिः ॥
शाकंभरी देवता ॥ अनुष्टुप छन्दः ॥
चतुर्विध पुरुषार्थसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥
ध्यान
शूलं खड्गं च डमरु दधानामभयप्रदम् ।
सिंहासनस्थां ध्यायामि देवी शाकंभरीमहम् ॥ ३ ॥
कवच
शाकंभरी शिरः पातु नेत्रे मे रक्तदंतिका ।
कर्णो रमे नंदजः पातु नासिकां पातु पार्वती ॥ ४ ॥
ओष्ठौ पातु महाकाली महालक्ष्मीक्ष्च मे मुखम् ।
महासरस्वतीं जिव्हां चामुंडाऽवतु मे रदाम् ॥ ५ ॥
कालकंठसती कंठं भद्रकाली करद्वयम् ।
हृदयं पातु कौमारी कुक्षिं मे पातु वैष्णवी ॥ ६ ॥
नाभिं मेऽवतु वाराही ब्राह्मी पार्श्र्वे ममावतु ।
पृष्ठं मे नारसिंही च योगीशा पातु मे कटिम् ॥ ७ ॥
ऊरु मे पातु वामोरुर्जानुनी जगदंबिका ।
जंघे मे चंडिकां पातु पादौ मे पातु शांभवी ॥ ८ ॥
शिरःप्रभृति पादांतं पातु मां सर्वमंगला ।
रात्रौ पातु दिवा पातु त्रिसंध्यं पातु मां शिवा ॥ ९ ॥
गच्छन्तं पातु तिष्ठन्तं शयानं पातु शूलिनी ।
राजद्वारे च कांतारे खड्गिनी पातु मां पथि ॥ १० ॥
संग्रामे संकटे वादे नद्दुत्तारे महावने ।
भ्रामणेनात्मशूलस्य पातु मां परमेश्र्वरी ॥ ११ ॥
गृहं पातु कुटुंबं मे पशुक्षेत्रधनादिकम् ।
योगक्षेमं च सततं पातु मे बनशंकरी ॥ १२ ॥
इतीदं कवचं पुण्यं शाकंभर्याः प्रकीर्तितम् ।
यस्त्रिसंध्यं पठेच्छक्र सर्वापद्भिः स मुच्यते ॥ १३ ॥
तुष्टिं पुष्टिं तथारोग्यं संततिं संपदं च शम् ।
शत्रुक्षयं समाप्नोति कवचस्यास्य पाठतः ॥ १४ ॥
शाकिनीडाकिनीभूत बालग्रहमहाग्रहाः ।
नश्यंति दर्शनात्त्रस्ताः कवचं पठतस्त्विदम् ॥ १५ ॥
सर्वत्र जयमाप्नोति धनलाभं च पुष्कलम् ।
विद्यां वाक्पटुतां चापि शाकंभर्याः प्रसादतः ॥ १६ ॥
आवर्तनसहस्त्रेण कवचस्यास्य वासव ।
यद्यत्कामयतेऽभीष्टं तत्सर्वं प्राप्नुयाद् ध्रुवम् ॥ १७ ॥
॥ इति श्री स्कंदपुराणे स्कंदप्रो्क्तं शाकंभरी कवचं सम्पूर्णम् ॥
मां शाकंभरी देवी नवरात्रि के नौ दिनों में नीचे लिखे मंत्रों का जाप करके मां दुर्गा की आराधना करके कोई भी साधक पूरा जीवन सुख से बिता सकता है। जीवन में धन और धान्य से परिपूर्ण रहने के लिए नवरात्रि के दिनों में इन मंत्रों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
शाकंभरी देवी के मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति अन्नपूर्णे नम:।।
ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य: सुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।
इन मंत्रों को बतौर अनुष्ठान दस हजार, सवा लाख जप कर दशांस हवन, तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन कराएं।
नित्य 1 माला जपें। हवन सामग्री में तिल, जौ, अक्षत, घृत, मधु, ईख, बिल्वपत्र, शकर, पंचमेवा, इलायची आदि लें। समिधा, आम, बेल या जो उपलब्ध हो, उनसे हवन पूर्ण करके आप सुखदायी जीवन का लाभ उठा सकते हैं।
मां शाकंभरी देवी अपनी मेहनत से खेती बाड़ी करने वाले लोग पर हमेशा प्रसन्न होती है। जो अपनी खून पसीने एक कर दुनिया को भोजन की सुविधा उपलब्ध कराते हैं, वास्तविक में मां शाकंभरी देवी की असली पूजा है। और मां अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते है।
"जय मां शाकंभरी देवी की"