ये कविता किसने लिखी है, मुझे नहीं मालूम, पर जिसने भी लिखी है उसको नमन करता हूँ। आरक्षण के मुद्दे पर बहुत ही प्रभावी अभिव्यक्ति है.....
*"करता हूँ अनुरोध आज मैं, भारत की सरकार से,"*
*"प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से…"*
*"वर्ना रेल पटरियों पर जो, फैला आज तमाशा है,"*
*"जाट आन्दोलन से फैली, चारो ओर निराशा है…"*
*"अगला कदम पंजाबी बैठेंगे, महाविकट हडताल पर,"*
*"महाराष्ट में प्रबल मराठा , चढ़ जाएंगे भाल पर…"*
*"राजपूत भी मचल उठेंगे, भुजबल के हथियार से,"*
*"प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से…"*
*"निर्धन ब्राम्हण वंश एक, दिन परशुराम बन जाएगा,"*
*"अपने ही घर के दीपक से, अपना घर जल जाएगा…"*
*"भड़क उठा गृह युध्द अगर, भूकम्प भयानक आएगा,"*
*"आरक्षण वादी नेताओं का, सर्वस्व मिटाके जायेगा…"*
*"अभी सम्भल जाओ मित्रों, इस स्वार्थ भरे व्यापार से,"*
*"प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से…"*
*"जातिवाद की नही , समस्या मात्र गरीबी वाद है,"*
*"जो सवर्ण है पर गरीब है, उनका क्या अपराध है…"*
*"कुचले दबे लोग जिनके, घर मे न चूल्हा जलता है,"*
*"भूखा बच्चा जिस कुटिया में, लोरी खाकर पलता है…"*
*"समय आ गया है उनका , उत्थान कीजिये प्यार से,"*
*"प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से…"*
*"जाति गरीबी की कोई भी, नही मित्रवर होती है,"*
*"वह अधिकारी है जिसके घर, भूखी मुनिया सोती है…"*
*"भूखे माता-पिता , दवाई बिना तडपते रहते है,"*
*"जातिवाद के कारण, कितने लोग वेदना सहते है…"*
*"उन्हे न वंचित करो मित्र, संरक्षण के अधिकार से"*
*"प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से…"*