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कॉस्मिक हिलिंग - सूक्ष्म का विज्ञान




यदि आप सूक्ष्म को जान लो तो कोई रोग नहीं रहेगा। 


मुसीबत यह है कि आप स्थूल में अटके हुए है। 

आप स्थूल से ऊपर उठकर सूक्ष्म को जानना ही नहीं चाहते, कोशिश भी नहीं करना चाहते। 


◆स्थूल क्या है और सूक्ष्म क्या है? 


स्थूल यानी पृथ्वी और जल तत्व। 

शरीर स्थूल है, दवाई स्थूल है, भोजन स्थूल है। 


सूक्ष्म यानी अग्नि, वायु और आकाश तत्व। 

शरीर स्थूल है किन्तु शरीर में व्याप्त प्राण और आत्मा सूक्ष्म है। 

भोजन और जल स्थूल है किन्तु भोजन और जल की ऊर्जा सूक्ष्म है। 

दवाई स्थूल है किन्तु दवाई के कंटेंट्स सूक्ष्म है। 


वाटर थेरापी, नई भोजन प्रथा, दवाई वगैरह सभी मरीज़ों पर एक समान असर क्यों नहीं करते? 

क्योंकि हर मरीज़ का सूक्ष्म यानी प्राण और आत्मा अलग अलग है। 


आप स्थूल में ठहर गए है उसकी वजह से सारी मुसीबतें आ रही है। 

आप बेकार की बातों में, दूसरों की बातों में पूरे दिन उलझे रहते है, आप उन बातों में ठहर गए है यही आपके दुःख का कारण है। 

आप जिस स्थिति में हो वहाँ से थोड़ा ऊपर उठो, अपना डायमेंशन चेंज कर दो तो कोई मुसीबत, कोई रोग, कोई कोरोना है ही नहीं। 


में कोई कल्पना की बात नहीं कर रहा, में बिल्कुल प्रेक्टिकल बात कर रहा हूँ। 

मैंने जो लिखा वो हमनें करके दिखाया है। 


पिछले कुछ सालों में हमने हर एक रोग को कॉस्मिक हिलिंग से मिटा दिया है, जड़ से मिटा दिया है। 

वैसे रोगों को जड़ से मिटाया है जिनको एलोपैथी और आयुर्वेदिक मेडिसिन कई सालों से मिटा नहीं पा रही थी। 

वैसे रोग ठीक किए है जिनको मेडिकल सायन्स इंक्योरेबल मानती है। 


कैसे संभव हुआ ये? 

क्योंकि आप रोग को रोग मानते है। 


हम रोग को रोग नहीं मानते बल्कि नेगेटिव एनर्जी मानते है। 


दरअसल होता यूं है कि पहले सूक्ष्म खराब होता है। 

सूक्ष्म यानी प्राण में नेगेटिव एनर्जी आने के बाद स्थूल शरीर रोगग्रस्त होता है। 


हमारे शरीरमें कई सारे ऊर्जा के सूक्ष्म केंद्र है जिसे ऊर्जा चक्र कहते है। 

इन ऊर्जा चक्रों में सात मुख्य ऊर्जा चक्र है। 


यह सात ऊर्जा चक्र स्पाइनल कॉर्ड के बीचमें स्थित सुषुम्ना नाड़ी में स्थित है। 


इन ऊर्जा चक्रों के बिगड़ने से स्थूल शरीर रोगग्रस्त होता है। 

ऊर्जा चक्रों को कॉस्मिक हिलिंग से ठीक कर दें तो स्थूल शरीर के रोग चमत्कारी ढंग से ठीक हो जाएंगे। 


यह सारा सूक्ष्म का विज्ञान है। 

ये सूक्ष्म का विज्ञान बहोत ही कम लोग समझते है। 


आप स्थूल का विज्ञान जानते है, 

इसलिए एक रोगी के शरीर में चार पांच प्रकार के रोग है तो आप चार पांच अलग अलग स्पेशियलिस्ट डॉक्टर्स के पास इलाज कराते है। 


इसके बिल्कुल विपरीत हम सारे के सारे रोग मात्र कॉस्मिक हिलिंग से दूर कर देते है, बिना कोई दवाई या योगा के हर एक रोग को दूर कर देते है। 

दर असल रोग का मूल कारण ऊर्जा चक्र में होता है और ऊर्जा चक्र को कॉस्मिक हिलिंग मिलते ही उसमें पॉजिटिव एनर्जी फैलने लगती है और वे रोग ठीक हो जाते है। 

सभी रोग ठीक हो जाते है। 


वास्तव में ये आध्यात्मिक प्रक्रिया है जो वर्तमान समय में शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य प्रदान करने में काम आ रही है। 


सूक्ष्म का विज्ञान स्थल और काल से परे है। 

कॉस्मिक हिलिंग की दीक्षा प्राप्त हीलर हज़ारों किलोमीटर दूर बैठे मरीज़ को भी हिलिंग से ठीक कर सकता है। 


दरअसल हीलर को कुछ करना नहीं होता। जो करता है वो गुरु करता है। गुरु की कृपा से सब होता है। वास्तव में गुरु को भी कुछ करना नहीं होता। जो करता है वो शिव करता है। 


ये सारी सूक्ष्म बातें है जो अनुभव से नहीं अनुभूति से समझ में आती है,, गुरु की अनुकंपा से समझ में आती है। 


जैसा कि आप जानते है  DURGA SAPTSHATI बिजमंत्रात्मक साधना में साधको को अपने घर पर निश्चित समय पर निश्चित साधना करने को कहा गया था। 

साधक अपने घर पर निश्चित समय पर ध्यान, प्राण क्रिया करके  हिलिंग धारण करने को तैयार थे। 


पांच तत्वों की साधना सूक्ष्म की साधना है। 

शिव और शक्ति की साधना सूक्ष्म की साधना है। 

ऊर्जा चक्रों की साधना सूक्ष्म की साधना है। 

एक सामान्य बारूद से बना बम सीमित दायरे में विनाश करता है, जब कि उसी बारूद के सूक्ष्म परमाणु को तोड़कर बनाया गया परमाणु बम असीमित विनाश करता है। 

अणु, परमाणु और ऊर्जा की साधना सूक्ष्म की साधना है। 

कॉस्मिक हिलिंग सूक्ष्म की साधना है, सूक्ष्म का विज्ञान है। 


कोरोना, कोविड19 सूक्ष्म है। 

वो वायरस है, वो प्रकृति है। 

हर मौसम में वायरस अपना रूप बदलता है। 

जैसे शर्दी का वायरस 32 प्रकार के रूप बदलता है वैसे ही कोविड19 अपने रूप बदल रहा है, उसके स्पाइक मज़बूत हो रहे है। 

वायरस कभी भी एक रूप में नहीं रहता। वो हमेशा बहुरूपिया होता है। व्यक्ति दर व्यक्ति वो अपना रूप बदलता रहता है। 


इसीलिए, कोरोना से डरिए मत, कॉस्मिक हिलिंग से अपनी इम्युनिटी स्ट्रॉग कीजिए। 

कोरोना से उन्ही लोगों की मृत्यु हो रही है जिनकी इम्युनिटी बहोत ही वीक है और वे अन्य रोगों से पहले  से ही ग्रसित है। 

इसीलिए, कोरोना से ध्यान हटाइए, अपनी स्पिरिचुअल हेल्थ को मजबूत करने पर ध्यान दीजिए। 

नमः शिवाय

पतिव्रता सुलोचना (रामायण)

 

सुलोचना वासुकी नाग की पुत्री और लंका के राजा रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी थी। लक्ष्मण के साथ हुए एक भयंकर युद्ध में मेघनाद का वध हुआ। उसके कटे हुए शीश को भगवान श्रीराम के शिविर में लाया गया था। अपने पती की मृत्यु का समाचार पाकर सुलोचना ने अपने ससुर रावण से राम के पास जाकर पति का शीश लाने की प्रार्थना की। किंतु रावण इसके लिए तैयार नहीं हुआ। उसने सुलोचना से कहा कि वह स्वयं राम के पास जाकर मेघनाद का शीश ले आये। क्योंकि राम पुरुषोत्तम हैं, इसीलिए उनके पास जाने में तुम्हें किसी भी प्रकार का भय नहीं करना चाहिए।

मेघनाद का वध

रावण के महापराक्रमी पुत्र इन्द्रजीत (मेघनाद) का वध करने की प्रतिज्ञा लेकर लक्ष्मण जिस समय युद्ध भूमि में जाने के लिये प्रस्तुत हुए, तब राम उनसे कहते हैं- "लक्ष्मण, रण में जाकर तुम अपनी वीरता और रणकौशल से रावण-पुत्र मेघनाद का वध कर दोगे, इसमें मुझे कोर्इ संदह नहीं है। परंतु एक बात का विशेष ध्यान रखना कि मेघनाद का मस्तक भूमि पर किसी भी प्रकार न गिरे। क्योंकि मेघनाद एकनारी-व्रत का पालक है और उसकी पत्नी परम पतिव्रता है। ऐसी साध्वी के पति का मस्तक अगर पृथ्वी पर गिर पड़ा तो हमारी सारी सेना का ध्वंस हो जाएगा और हमें युद्ध में विजय की आशा त्याग देनी पड़ेगी। लक्ष्मण अपनी सैना लेकर चल पड़े। समरभूमि में उन्होंने वैसा ही किया। युद्ध में अपने बाणों से उन्होंने मेघनाद का मस्तक उतार लिया, पर उसे पृथ्वी पर नहीं गिरने दिया। हनुमान उस मस्तक को रघुनंदन के पास ले आये।

कटी भुजा द्वारा सुलोचना को प्रमाण

मेघनाद की दाहिनी भुजा आकाश में उड़ती हुर्इ उसकी पत्नी सुलोचना के पास जाकर गिरी। सुलोचना चकित हो गयी। दूसरे ही क्षण अन्यंत दु:ख से कातर होकर विलाप करने लगी। पर उसने भुजा को स्पर्श नहीं किया। उसने सोचा, सम्भव है यह भुजा किसी अन्य व्यकित की हो। ऐसी दशा में पर-पुरुष के स्पर्श का दोष मुझे लगेगा। निर्णय करने के लिये उसने भुजा से कहा- "यदि तू मेरे स्वामी की भुजा है, तो मेरे पतिव्रत की शक्ति से युद्ध का सारा वृतान्त लिख दे। भुजा में दासी ने लेखनी पकड़ा दी। लेखिनी ने लिख दिया- "प्राणप्रिये, यह भुजा मेरी ही है। युद्ध भूमि में श्रीराम के भार्इ लक्ष्मण से मेरा युद्ध हुआ। लक्ष्मण ने कर्इ वर्षों से पत्नी, अन्न और निद्रा छोड़ रखी है। वे तेजस्वी तथा समस्त दैवी गुणों से सम्पन्न है। संग्राम में उनके साथ मेरी एक नहीं चली। अन्त में उन्हीं के बाणों से विद्ध होने से मेरा प्राणान्त हो गया। मेरा शीश श्रीराम के पास है।

सुलोचना की रावण से प्रार्थना

पति की भुजा-लिखित पंकितयां पढ़ते ही सुलोचना व्याकुल हो गयी। पुत्र-वधु के विलाप को सुनकर लंकापति रावणने आकर कहा- 'शोक न कर पुत्री। प्रात: होते ही सहस्त्रों मस्तक मेरे बाणों से कट-कट कर पृथ्वी पर लोट जाऐंगे। मैं रक्त की नदियां बहा दूंगा। करुण चीत्कार करती हुर्इ सुलोचना बोली- "पर इससे मेरा क्या लाभ होगा, पिताजी। सहस्त्रों नहीं करोड़ों शीश भी मेरे स्वामी के शीश के आभाव की पूर्ती नहीं कर सकेंगे।[1] सुलोचना ने निश्चय किया कि 'मुझे अब सती हो जाना चाहिए।' किंतु पति का शव तो राम-दल में पड़ा हुआ था। फिर वह कैसे सती होती? जब अपने ससुर रावण से उसने अपना अभिप्राय कहकर अपने पति का शव मँगवाने के लिए कहा, तब रावण ने उत्तर दिया- "देवी ! तुम स्वयं ही राम-दल में जाकर अपने पति का शव प्राप्त करो। जिस समाज में बालब्रह्मचारी हनुमान, परम जितेन्द्रिय लक्ष्मण तथा एकपत्नीव्रती भगवान श्रीराम विद्यमान हैं, उस समाज में तुम्हें जाने से डरना नहीं चाहिए। मुझे विश्वास है कि इन स्तुत्य महापुरुषों के द्वारा तुम निराश नहीं लौटायी जाओगी।"

पति के शीश की प्राप्ति

सुलोचना के आने का समाचार सुनते ही श्रीराम खड़े हो गये और स्वयं चलकर सुलोचना के पास आये और बोले- "देवी, तुम्हारे पति विश्व के अन्यतम योद्धा और पराक्रमी थे। उनमें बहुत-से सदगुण थे; किंतु विधी की लिखी को कौन बदल सकता है। आज तुम्हें इस तरह देखकर मेरे मन में पीड़ा हो रही है। सुलोचना भगवान की स्तुति करने लगी। श्रीराम ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा- "देवी, मुझे लज्जित न करो। पतिव्रता की महिमा अपार है, उसकी शक्ति की तुलना नहीं है। मैं जानता हूँ कि तुम परम सती हो। तुम्हारे सतित्व से तो विश्व भी थर्राता है। अपने स्वयं यहाँ आने का कारण बताओ, बताओ कि मैं तुम्हारी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ? सुलोचना ने अश्रुपूरित नयनों से प्रभु की ओर देखा और बोली- "राघवेन्द्र, मैं सती होने के लिये अपने पति का मस्तक लेने के लिये यहाँ पर आर्इ हूँ। श्रीराम ने शीघ्र ही ससम्मान मेघनाद का शीश मंगवाया और सुलोचना को दे दिया।

पति का छिन्न शीश देखते ही सुलोचना का हृदय अत्यधिक द्रवित हो गया। उसकी आंखें बड़े जोरों से बरसने लगीं। रोते-रोते उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा- "सुमित्रानन्दन, तुम भूलकर भी गर्व मत करना की मेघनाथ का वध मैंने किया है। मेघनाद को धराशायी करने की शक्ति विश्व में किसी के पास नहीं थी। यह तो दो पतिव्रता नारियों का भाग्य था। आपकी पत्नी भी पतिव्रता हैं और मैं भी पति चरणों में अनुरक्ती रखने वाली उनकी अनन्य उपसिका हूँ। पर मेरे पति देव पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे और उन्हीं के लिये युद्ध में उतरे थे, इसी से मेरे जीवन धन परलोक सिधारे।

सुग्रीव की जिज्ञासा

सभी योद्धा सुलोचना को राम शिविर में देखकर चकित थे। वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि सुलोचना को यह कैसे पता चला कि उसके पति का शीश भगवान राम के पास है। जिज्ञासा शान्त करने के लिये सुग्रीव ने पूछ ही लिया कि यह बात उन्हें कैसे ज्ञात हुर्इ कि मेघनाद का शीश श्रीराम के शिविर में है। सुलोचना ने स्पष्टता से बता दिया- "मेरे पति की भुजा युद्ध भूमि से उड़ती हुर्इ मेरे पास चली गयी थी। उसी ने लिखकर मुझे बता दिया। व्यंग्य भरे शब्दों में सुग्रीव बोल उठे- "निष्प्राण भुजा यदि लिख सकती है फिर तो यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है। श्रीराम ने कहा- "व्यर्थ बातें मन करो मित्र। पतिव्रता के महाम्तय को तुम नहीं जानते। यदि वह चाहे तो यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है।

महान पतिव्रता स्त्री

श्रीराम की मुखकृति देखकर सुलोचना उनके भावों को समझ गयी। उसने कहा- "यदि मैं मन, वचन और कर्म से पति को देवता मानती हूँ, तो मेरे पति का यह निर्जीव मस्तक हंस उठे। सुलोचना की बात पूरी भी नहीं हुर्इ थी कि कटा हुआ मस्तक जोरों से हंसने लगा। यह देखकर सभी दंग रह गये। सभी ने पतिव्रता सुलोचना को प्रणाम किया। सभी पतिव्रता की महिमा से परिचित हो गये थे। चलते समय सुलोचना ने श्रीराम से प्रार्थना की- "भगवन, आज मेरे पति की अन्त्येष्टि क्रिया है और मैं उनकी सहचरी उनसे मिलने जा रही हूँ। अत: आज युद्ध बंद रहे। श्रीराम ने सुलोचना की प्रार्थना स्वीकार कर ली। सुलोचना पति का सिर लेकर वापस लंका आ गर्इ। लंका में समुद्र के तट पर एक चंदन की चिता तैयार की गयी। पति का शीश गोद में लेकर सुलोचना चिता पर बैठी और धधकती हुई अग्नि में कुछ ही क्षणों में सती हो गई।

मकान का सुख और ज्योतिष विश्लेषण

 

घर का सुख देखने के लिए मुख्यत: चतुर्थ स्थान को देखा जाता है। फिर गुरु, शुक्रऔर चंद्र के बलाबल का विचार प्रमुखता से किया जाता है। जब-जब मूल राशि स्वामी या चंद्रमा से गुरु, शुक्र या चतुर्थ स्थान के स्वामी का शुभ योग होता है, तब घर खरीदने, नवनिर्माण या मूल्यवान घरेलू वस्तुएँ खरीदने का योग बनता है। व्यक्ति के जीवन पुरुषार्थ, पराक्रम एवं अस्तित्व की पहचान उसका निजी मकान है। महंगाई और आबादी के अनुरूप हर व्यक्ति को मकान मिले यह संभव नहीं है। आधी से ज्यादा दुनिया किराये के मकानों मेंं रहती है। कुछ किरायेदार, जबरदस्ती मकान मालिक बने बैठे हैं। कुछ लोगों को मकान हर दृष्टि से फलदायी है। कोई टूटे-फूटे मकानों मेंं रहता है तो कोई आलिशान बंगले का स्वामी है। सुख-दुख जीवन के अनेक पहलुओं पर मकान एक परमावश्यकता बन गई है।

जन्मपत्री मेंं भूमि का कारक ग्रह मंगल है। जन्मपत्री का चौथा भाव भूमि व मकान से संबंधित है। चतुर्थेश उच्च का, मूलत्रिकोण, स्वग्रही, उच्चाभिलाषी, मित्रक्षेत्री शुभ ग्रहों से युत हो या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो अवश्य ही मकान सुख मिलेगा।

साथ ही मंगल की स्थिति का सुदृढ़ होना भी आवश्यक है। मकान सुख के लिये मंगल और चतुर्थ भाव का ही अध्ययन पर्याप्त नहीं है। भवन सुख के लिये लग्न व लग्नेश का बल होना भी अनिवार्य है। इसके साथ ही दशमेंश, नवमेंश और लाभेश का सहयोग होना भी जरूरी है।

1. स्वअर्जित भवन सुख (परिवर्तन से):

निष्पत्ति- लग्नेश चतुर्थ स्थान मेंं हो चतुर्थेश लग्न मेंं हो तो यह योग बनता है।

परिणाम- इस योग मेंं जन्म लेने वाला जातक पराक्रम व पुरुषार्थ से स्वयं का मकान बनाता है।

2. उत्तम ग्रह योग:

निष्पत्ति- चतुर्थेश किसी शुभ ग्रह के साथ युति करे, केंद्र-त्रिकोण (1,4,7,9,10) मेंं हो तो यह योग बनता है।

परिणाम- ऐसे व्यक्ति को अपनी मेहनत से कमाये रुपये का मकान प्राप्त होता है। मकान से सभी प्रकार की सुख सुविधायें होती है।

3. अकस्मात घर प्राप्ति योग:

निष्पत्ति- चतुर्थेश और लग्नेश दोनों चतुर्थ भाव मेंं हो तो यह योग बनता है।

परिणाम- अचानक घर की प्राप्ति होती है। यह घर दूसरों का बनाया होता है।

4. एक से अधिक मकानों का योग:

निष्पत्ति- चतुर्थ स्थान पर चतुर्थेश दोनों चर राशियों मेंं (1,4,7,10) हो। चतुर्थ भाव के स्वामी पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो एक से अधिक मकान प्राप्ति के योग बनते हैं।

परिणाम- ऐसे व्यक्ति के अलग-अलग जगहों पर मकान होते हैं। वह मकान बदलता रहता है।

5 वाहन, मकान व नौकर सुख योग (परिवर्तन से):

निष्पत्ति- नवमेंश, दूसरे भाव मेंं और द्वितीयेश नवम भाव मेंं परस्पर स्थान परिवर्तन करें तो यह योग बनता है।

परिणाम- इस योग मेंं जन्मेंं जातक का भाग्योदय 12वें वर्ष मेंं होता है। 32वें वर्ष के बाद जातक को वाहन, मकान और नौकर-चाकर का सुख मिलता है।

6. बड़े बंगले का योग:

निष्पत्ति- चतुर्थ भाव मेंं यदि चंद्र और शुक्र हो अथवा चतुर्थ भाव मेंं कोई उच्च राशिगत ग्रह हो तो यह योग बनता है।

परिणाम- ऐसा जातक बड़े बंगले व महलों का स्वामी होता है। घर के बाहर बगीचा जलाशय एवं सुंदर कलात्मक ढंग से भवन बना होता है।

7. बिना प्रयत्न प्राप्ति योग:

निष्पत्ति- लग्नेश व सप्तमेंश लग्न मेंं हो तथा चतुर्थ भाव पर गुरु, शुक्र या चंद्रमा का प्रभाव हो।

परिणाम- ऐसा जातक बड़े बंगले व महलों का स्वामी होता है। घर के बाहर बगीचा, जलाशय एवं सुंदर कलात्मक ढंग से भवन बना होता है।

8. बिना प्रयत्न ग्रह प्राप्ति का दूसरा योग:

निष्पत्ति- चतुर्थ भाव का स्वामी उच्च, मूल त्रिकोण या स्वग्रही हो तथा नवमेंश केंद्र मेंं हो तो ये योग बनता है।

परिणाम- ऐसे जातक को बिना प्रयत्न के घर मिल जाता है।

9. ग्रहनाश योग:

निष्पत्ति- चतुर्थेश के नवमांश का स्वामी 12वें चला गया हो तो, यह दोष बनता है।

परिणाम- ऐसे जातक को अपनी स्वयं की संपत्ति व घर से वंचित होना पड़ता है।

10. उत्तम कोठी योग:

निष्पत्ति- चतुर्थेश और दशमेंश एक साथ केंद्र त्रिकोण मेंं हो तो उत्तम व श्रेष्ठ घर प्राप्त होता है।

परिणाम- कोठी, बड़ा मकान व संपत्ति प्राप्ति होती है।

घर सुख संबंधी मुख्य ज्योतिषीय सिद्धांत:

1. चतुर्थ स्थान मेंं शुभ ग्रह हों तो घर का सुख उत्तम रहता है।

2. चंद्रमा से चतुर्थ मेंं शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं।

3. चतुर्थ स्थान पर गुरु-शुक्र की दृष्टि उच्च कोटि का गृह सुख देती है।

4. चतुर्थ स्थान का स्वामी 6, 8, 12 स्थान मेंं हो तो गृह निर्माण मेंं बाधाएँ आती हैं। उसी तरह 6, 8, 12 भावों मेंं स्वामी चतुर्थ स्थान मेंं हो तो गृह सुख बाधित हो जाता है।

5. चतुर्थ स्थान का मंगल घर मेंं आग से दुर्घटना का संकेत देता है। अशांति रहती है।

6. चतुर्थ मेंं शनि हो, शनि की राशि हो या दृष्टि हो तो घर मेंं सीलन, बीमारी व अशांति रहती है।

7. चतुर्थ स्थान का केतु घर मेंं उदासीनता देता है।

8. चतुर्थ स्थान का राहु मानसिक अशांति, पीड़ा, चोरी आदि का डर देता है।

9. चतुर्थ स्थान का अधिपति यदि राहु से अशुभ योग करे तो घर खरीदते समय या बेचते समय धोखा होने के संकेत मिलते हैं।

10. चतुर्थ स्थान का पापग्रहों से योग घर मेंं दुर्घटना, विस्फोट आदि के योग बनाता है।

11. चतुर्थ स्थान का अधिपति 1, 4, 9 या 10 मेंं होने पर गृह-सौख्य उच्च कोटि का मिलता है।

उपरोक्त संकेतों के आधार पर कुंडली का विवेचन कर घर खरीदने या निर्माण करने की शुरुआत की जाए तो लाभ हो सकता है। इसी तरह पति, पत्नी या घर के जिस सदस्य की कुंडली मेंं गृह-सौख्य के शुभ योग हों, उसके नाम से घर खरीदकर भी कई परेशानियों से बचा जा सकता है।

गुरु का योग घर बनाने वाले कारकों से होता है तो रहने के लिये घर बनता है । शनि का योग जब घर बनाने वाले कारकों से होता है तो कार्य करने के लिये घर बनने का योग होता है जिसे व्यवसायिक स्थान भी कहा जाता है। बुध किराये के लिये बनाये जाने वाले घरों के लिये अपनी सूची बनाता है तो मंगल कारखाने और डाक्टरी स्थान आदि बनाने के लिये अपनी अपनी तरह से बल देता है। लेकिन घर बनाने के लिये मुख्य कारक शुक्र का अपना बल देना भी मुख्य है।

वर्षफल के हिसाब से शुक्र जब राहु, केतु के सम्बन्ध से अछूता हो और शुभ ग्रहों के साथ बैठा हो तो मकान ही मकान बनवायेगा लेकिन जब केवल राहु, केतु के साथ हो तो मकान बनने से बर्बाद होगा और हानि देगा। पुष्य नक्षत्र से शुरू कर इसी नक्षत्र मेंं पूर्ण किया मकान अति उत्तम होता है तथा पूर्ण होने पर मकान की प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।

शुभ लग्न मेंं शुरू किये मकान के लिए निम्न सावधानियां जरूरी हैं:

कोने: जमीन के टुकड़ों को एक गिन उस के कोने देखें। चार कोने वाला (90 डिग्री) का मकान सर्वोत्त्म है, आठ कोनो वाला मातमी या बीमारी देने वाला, अठारह कोनों वाला हो तो सोना, चांदी देने वाला होता है। तीन या तेरह कोनों वाला हो तो भाई बन्धुओं को मौतें, आग, फांसी देने वाला होता है। पांच कोनों वाला हो तो सन्तान का दुख व बरबादी, मध्य से बाहर या मछली की पेट की तरह उठा हुआ मकान हो तो खानदान घटेगा यानी दादा तीन, बाप दो, स्वयं अकेला और नि:सन्तान होता है।

दीवारें: कोने देखने के बाद, मकान बनाने के पहले दीवारों का क्षेत्रफल और नींव छोड़कर हरेक हिस्सा या कमरे का अंदरूनी क्षेत्रफल अलग-अलग देखा जाए तो जातक (मालिक मकान) के अपने हाथों का क्षेत्रफल भी देखा जाए। उस का हाथ चाहे 18,19 या 17 इंच का हो पैमाना उस के हाथ की लम्बाई का हो।

मुख्य द्वार: 1 पूर्व मेंं उत्तम, नेक व्यक्ति आए जाए, सुख हो। 2 पश्चिम मेंं दूसरे दर्जे का उत्तम। 3 उत्तर मेंं नेक, लम्बे सफर, पूजा पाठ नेक कार्य के लिए आने जाने का रास्ता जो परलोक सुधारे। 4 दक्षिण मेंं हानिकारक, मौत की जगह।

निम्न सावधानियां रखें नया मकान बनवाते समय:

हमारे ग्रंथ पुराणों आदि मेंं वास्तु एवं ज्योतिष से संबंधित गूढ़ रहस्यों तथा उसके सदुपयोग सम्बंधी ज्ञान का अथाह समुद्र व्याप्त है जिसके सिद्धान्तों पर चलकर मनुष्य अपने जीवन को सुखी, समृद्ध, शक्तिशाली और निरोगी बना सकता है।

सुखी परिवार अभियान मेंं वास्तु एक स्वतंत्र इकाई के रूप मेंं गठित की गयी है और उस पर श्रेष्ठ वातावरण और परिणाम के लिए वास्तु के अनुसार जीवनशैली और ग्रह का निर्माण अति आवश्यक है। इस विद्या मेंं विविधताओं के बावजूद वास्तु सम्यक उस भवन को बना सकते हैं, जिसमेंं कि कोई व्यक्ति पहले से निवास करता चला आ रहा है। वास्तु ज्ञान वस्तुत: भूमि व दिशाओं का ज्ञान है।

कब प्रारंभ करें मकान बनवाना ?

शुक्ल पक्ष मेंं करें गृह निर्माण: वास्तुशास्त्र मेंं प्राचीन मनीषियों ने सूर्य के विविध राशियों पर भ्रमण के आधार पर उस माह मेंं घर निर्माण प्रारंभ करने के फलों की विवेचना की है।

1. मेष राशि मेंं सूर्य होने पर घर बनाना प्रारंभ करना अति लाभदायक होता है।

2. वृषभ राशि मेंं सूर्य संपत्ति बढऩा, आर्थिक लाभ

3. मिथुन राशि मेंं सूर्य गृह स्वामी को कष्ट

4. कर्क राशि मेंं सूर्य धन-धान्य मेंं वृद्धि

5. सिंह राशि का सूर्य यश, सेवकों का सुख

6. कन्या राशि का सूर्य रोग, बीमारी आना

7. तुला राशि का सूर्य सौख्य, सुखदायक

8. वृश्चिक राशि का सूर्य धन लाभ

9. धनु राशि का सूर्य हानि, विनाश

10. मकर राशि का सूर्य धन, संपत्ति वृद्धि

11. कुंभ राशि का सूर्य रत्न, धातु लाभ

12. मीन राशि का सूर्य चौतरफा नुकसान

घर बनाने का प्रारंभ हमेशा शुक्ल पक्ष मेंं करना चाहिए। फाल्गुन, वैशाख, माघ, श्रवण और कार्तिक माहों मेंं शुरू किया गया गृह निर्माण उत्तम फल देता है।


यह भी पढ़े

वर्जित: मंगलवार व रविवार, प्रतिपदा, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या तिथियाँ, ज्येष्ठा, रेवती, मूल नक्षत्र, वज्र, व्याघात, शूल, व्यतिपात, गंड, विषकुंभ, परिध, अतिगंड, योग – इनमेंं घर का निर्माण या कोई जीर्णोद्धार भूलकर भी नहीं करना चाहिए अन्यथा घर फलदायक नहीं होता।

अति शुभ योग: शनिवार, स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, शुभ योग और श्रावण मास ये सभी यदि एक ही दिन उपलब्ध हो सके, तो ऐसा घर दैवी आनंद व सुखों की अनुभूति कराने वाला होता है।

घर किस नगर, मोहल्ले मेंं बनवाना शुभ है। इस हेतु तीन विधियों से विचार करने का मत हमारे प्राचीन वास्तुशास्त्रियों ने दिये हैं-

नक्षत्र विधि: सर्वप्रथम अपने जन्म नक्षत्र का ज्ञान करें जो कि जन्मकुंडली से जाना जा सकता है और यदि जन्मकुंडली न हो तो जो प्रचलित नाम हो उसके प्रथम अक्षर से ज्ञात कर लें। इसी प्रकार जिस नगर, ग्राम, मोहल्ले मेंं घर बनवाना हो उसका भी नक्षत्र नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार जान लें। अब ग्राम, नगर, मोहल्ले की नक्षत्र संख्या से अपने जन्म नक्षत्र की संख्या तक गिनें और फल इस प्रकार जानें यदि- संख्या फल 1 से 5 लाभदायक, 6से 8धन हानि, 9 से 13 समृद्धि धन लाभ, यश, 14 से 19 पत्नीकष्ट, हानि, विवाह सुख का अभाव 20 अंग भंग 21 से 24 सुखदायक, संपति से बढ़ोश्ररी 25 कष्टकारक तथा भयकारक 26कष्टकारी, शोककारी 27 ग्राम, नगर, मोहल्ले वालों से बैर इसमेंं अभिजित को संज्ञान मेंं लिया गया है। उदाहरण- माना कि आपका नाम मनमोहन सिंह तथा आप दिल्ली मेंं घर बनवाना चाहते हैं तो उपरोक्त विधि से विचार करने पर दिल्ली का नक्षत्र है पूर्वाभाद्रपद जिसकी नक्षत्र संख्या 25 है तथा नाम नक्षत्र मघा की नक्षत्र संख्या 10 है नगर नक्षत्र से नाम नक्षत्र तक गणना करने पर 13 अंक आ रहा है विवरण अनुसार यह अंक आपके लिए समृद्धि, धन लाभ एवं लाभ कारक है। अर्थात शुभ है।

वर्ग विचार विधि: इस विधि मेंं अपना तथा ग्राम, नगर, मोहल्ले का नाम लेने का विधान है। इस विधि मेंं यह विचारा जाता है कि अपना नाम एवं ग्राम, नगर, मोहल्ले का नाम किस वर्ग मेंं है। किस अक्षर का किस अक्षर तक क्या वर्ग है उसका विवरण इस प्रकार है- अक्षर वर्ग अ से अं तक अ वर्ग में जिसका स्वामी गरुण। क से ड. तक क वर्ग में जिसका स्वामी बिल्ली। च से ञ तक च वर्ग जिसका स्वामी सिंह। ट से ण तक ट वर्ग जिसका स्वामी श्वान। त से न तक त वर्ग का स्वामी सांप। प से म तक प वर्ग का स्वामी चूहा। य से व तक य वर्ग जिसका स्वामी हिरन। श से ह तक श वर्ग का स्वामी बकरी। अपने नाम की वर्ग संख्या को दो से गुणा कर उसमेंं नगर, ग्राम, मोहल्ले आदि वर्ग संख्या जोड़ दें फिर इसमेंं आठ का भाग दें।

अब नगर, ग्राम, मोहल्ले की वर्ग संख्या को दूना करके उसमेंं अपने वर्ग की संख्या जोड़ दें। अब यदि ग्राम, नगर, मोहल्ले की संख्या कम और नाम अधिक है तो यह ग्राम, नगर, मोहल्ला आपके 4, 8, 12 होने पर स्वास्थ्य की दृष्टि से शुभ नहीं है। घर किस ग्राम/नगर/मोहल्ले मेंं बनवाना है निश्चित हो जाने के बाद प्रश्न यह उठता है कि घर स्थान के किस भाग मेंं बनवाया जाये। राशि के अनुसार वृष, मकर, सिंह, मिथुन राशि के जातकों को बीच मेंं, वृश्चिक राशि वालों को पूर्व मेंं, मीन वाले को पश्चिम मेंं, तुला वालों को वायव्य मेंं, उत्तर दिशा मेंं मेष वालों को तथा कुंभ वालों को ईशान दिशा मेंं घर बनवाना चाहिए।

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नवग्रह बिजात्मक दुर्लभ प्रयोग

 


नवग्रह मतलब 9 ग्रह जो है ....


1.सूर्य

2.चंद्र

3.भौम या मंगल 

4.बूध

5.बृहस्पति

6.शुक्र 

7.शनि

8.राहु

9.केतु


इस तरह से पूरे नो ग्रह होते है और कहते है व्यक्ति के दुख सुख और उनकी सफलता असफलता के लिए काफी हद तक संबंधित ग्रह जिम्मेदार होते है.....


सो आप समझ ही सकते है कि ग्रहों का प्रभाव किस हद तक हम पे रहता है....


तो काफी गुरुभाई इस कड़ी में नवग्रह साधना खोजते है....


वैसे तो काफी विधान है नवग्रह साधना के पर यहां मे आपको सबसे उपयुक्त सबसे आसान और दुर्लभ साधना .....


पोस्ट कर रहा हु सद्गुरुदेब निखिलं प्रदत....


सामग्री 

नवग्रह माला

नवग्रह यंत्र

ओर नवग्रह गुटिका या पारद गुटिका


आसन वैसे सफेद रहे तो बेहतर बाकी पिला आसान भी चलेगा...


वस्त्र धोती ओर गुरुचादर


9 दिन की साधना है.....


नित्य एक माला गुरुजी ने कहा लेकिन आप 9 दिनों में 10 हजार जाप कर ले इस साधना का...


सबसे पहले सुबह मे गुरु पूजन पश्चात सद्गुरुदेब से आशीर्वाद ले के इसे शुरू कर सकते है......


सामने प्राण प्रतिस्ठा युक्त नवग्रह यंत्र का पंचामृत से स्नान कर उसे एक प्लेट पे स्थापित करे....


उसके साथ गुटिका भी रखे फिर उनका पनचोपाचर पूजन कर...


निम्न मंत्रो का एक माला नवग्रह माला से जाप करे ...


मंत्र है....


ॐ सम् चम् भम् बुम् ब्रम् शुम् शम् राम् केम् ॐ


यह नवग्रह के बिजातमक मंत्र है ....


कैसे समझता हूं ....


सम्- यहां स सूर्य ग्रह को रिप्रेजेंट कर रहा है ओर उसमे म् कार का प्रयोग किया गया है...


चम्- यहां च चंद्र ग्रह को रिप्रेजेंट कर रहा है ओर इसमे म् कार का प्रयोग किया गया है....


भम् यहाँ भ भोम ग्रह यानी मंगल ग्रह को संबोधित किया गया है....


कई लोग यहां भम् की जगह मम् का उच्चारण करते है जो पूरी तरह से सही ना है...


कारण तंत्र ग्रंथो में मंगल को भोम ग्रह से संबोद्धित किया है इसलिए मम् के जगह भम् का उच्चारण सही है और उपयुक्त है....


ऊपर से सद्गुरुदेब भी मंत्र मे भम् बोल रहे है इस विषय मे शंशय ना रखना आप....


बुम्- यहां बु बुध ग्रह को रिप्रेजेंट कर रहा है ओर इसमे म् कार का प्रयोग किया गया है....


ब्रम्- यहां ब्र बृहस्पति ग्रह को रिप्रेजेंट कर रहा है ओर इसमे म् कार का प्रयोग किया गया है....


शुम्- यहां शु शुक्र ग्रह को रिप्रेजेंट कर रहा है ओर इसमे म् कार का प्रयोग किया गया है...


शम्- यहाँ श शनि ग्रह को रिप्रेजेंट कर रहा है ओर इसमे म् कार का प्रयोग किया गया है....


राम् यहां रा राहु ग्रह को रिप्रेजेंट कर रहा है ओर इसमे म् कार का प्रयोग किया गया है....


केम्- यहां के केतु ग्रह को रिप्रेजेंट कर रहा है ओर इसमे म् कार का प्रयोग किया गया है....


सो आप समझ ही गए होंगे कि नवग्रह का यह बिजतामक साधना है.....


साथ ही इस मंत्र की महत्ता आप इस बात से जान सकते है कि माताजी स्वयम इस मंत्र का नित्य जाप करती थी....


ओर यह सद्गुरुदेव स्वयम वीडियो में बोल रहे है आप सुन लीजिए....


सो आपका कोई एक ग्रह कमजोर हो या अधिक ....


एक बार 9 दिन का अनुश्ठान पूर्ण करने के बाद....


आप नित्य दैनिक पूजन पश्चात सिर्फ 11 या 21 बार भी इस मंत्र का जाप करते है....


तो सभी ग्रह जो कमजोर भी है आपका वो सब जीवन मे आगे बढ़ने और लक्ष्य प्राप्ति मे आपके सहायक होंगे ....


सो नवग्रह के किसी विशेष मंत्रो के चक्कर मे ना पर के इस मंत्रो का 9 दिन एक बार अनुश्ठान कर इसे अपने दैनिक स्थान दे के इसका लाभ ले ....


आशा है इस साधना से आप लाभ लेंगे .....



जय सद्गुरुदेब जय माँ भगवती


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