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15 मंत्र जो हर सनातनी को सीखने चाहिए ।



1. श्री गणेश जी


वक्रतुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ 

निर्विघ्नम कुरू मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा!!


2. श्री महादेव जी


ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्!!


3. श्री हरि विष्णु जी


मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।

मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥


4. श्री ब्रह्मा जी


ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा नमस्ते परमात्ने।

निर्गुणाय नमस्तुभ्यं सदुयाय नमो नम:।।


5. श्री कृष्ण जी


वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।।


6. श्री राम जी


श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः !


7. मां दुर्गा जी


ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते


8. मां महालक्ष्मी जी


ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।।


9. मां सरस्वती जी


ॐ सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।

विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा।।


10. मां महाकाली जी


ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हलीं ह्रीं खं स्फोटय क्रीं 

क्रीं क्रीं फट !!


11. श्री हनुमान जी


मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठ।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥


12. श्री शनिदेव जी


ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।

छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ||


13. श्री कार्तिकेय जी


ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा, देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते


14. श्री काल भैरव


ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा


15. श्री गायत्री महामंत्र


ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

गोवर्धन पर्वत की रहस्य।

 


गोवर्धन पर्वत धीरे धीरे छोटा होता जा रहा है।


गोवर्धन पर्वत को लेकर धार्मिक मान्यता है कि यह पर्वत प्रतिदिन तिल भर घटता जाता है। 


यह केवल मान्यता नहीं है बल्कि *विशेषज्ञों ने भी बताया है कि 5 हजार साल पहले गोवर्धन पर्वत कई हज़ार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब यह पर्वत केवल 30 मीटर ही रह गया है।*


एक रोचक कहानी के अनुसार गोवर्धन पर्वत के प्रतिदिन घटने का कारण ऋषि पुलस्त्य का शाप है। कथा के अनुसार -


एक बार ऋषि पुलस्त्य गिरिराज पर्वत के पास से गुजर रहे थे तभी उनको इसकी सुंदरता इतनी पसंद आई कि वे मंत्रमुग्ध हो गए। 


ऋषि पुलस्त्य ने द्रोणांचल पर्वत से निवेदन किया - मैं काशी में रहता हूँ। आप अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दीजिए। मैं उसको काशी में स्थापित करूंगा और वहीं रहकर पूजा करूँगा।


पिता द्रोणांचल पुत्र गोवर्धन के विछोह से दुःखी हुए।


गोवर्धन ने कहा कि, हे महात्मा! मैं आपके साथ चलूँगा लेकिन मेरी एक शर्त है। शर्त यह है कि आप मुझे सबसे पहले जहाँ भी रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाऊँगा।


पुलस्त्य ने गोवर्धन की शर्त मान ली।  


गोवर्धन ने ऋषि से कहा कि, मैं दो योजन ऊँचा और पाँच योजन चौड़ा हूँ, आप मुझे काशी कैसे लेकर जाएँगे? 


ऋषि ने कहा कि, मैं अपने तपोबल के माध्यम से तुम्हें अपनी हथेली पर उठाकर ले जाऊँगा।


ऋषि पर्वत उठाए चलने लगे। रास्ते में ब्रज आया, तब गोवर्धन पर्वत को दिखा कि यहाँ पर भगवान कृष्ण अपने बाल्यकाल में लीला कर रहे हैं। बड़ा मनोहारी दृश्य और मनभावन स्थान है। उनकी वहाँ ठहरने की इच्छा हुई। गोवर्धन ऋषि के हाथों में अपना भार बढ़ाने लगे, जिससे ऋषि ने आराम और साधना के लिए पर्वत को नीचे रख दिया। ऋषि पुलस्त्य यह बात भूल गए थे कि उन्हें गोवर्धन पर्वत को कहीं पर भी रखना नहीं है।


साधना के बाद ऋषि ने पर्वत को उठाने का बहुत प्रयास किया लेकिन पर्वत हिला तक नहीं। इससे ऋषि पुलस्त्य बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने शाप दे दिया कि, तुमने मेरे मनोरथ को पूर्ण नहीं होने दिया इसलिए अब प्रतिदिन तिल भर तुम्हारा क्षरण होता रहेगा। 


माना जाता है कि उसी समय से गिरिराज पर्वत प्रतिदिन घट रहे हैं और कलयुग के अंत तक पूरी तरह विलीन हो जाएँगे।


हरे कृष्ण



                                                         

जय श्री गिरिराज जी

वीर सावरकर कौन थे..?

 



आइए जानते हैं एक ऐसे महान क्रांतिकारी के बारे में जिनका नाम इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया। जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा इतनी यातनाएं झेलीं की उसके बारे में कल्पना करके ही इस देश के करोड़ों भारत माँ के कायर पुत्रों में सिहरन पैदा हो जायेगी।


जिनका नाम लेने मात्र से आज भी हमारे देश के राजनेता भयभीत होते हैं क्योंकि उन्होंने माँ भारती की निस्वार्थ सेवा की थी। वो थे हमारे परमवीर सावरकर।


1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें? क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है?


2. वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ..!


3. विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी…!


4. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया, तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी जबकि इस घटना की दक्षिण अफ्रीका के अपने पत्र ‘इन्डियन ओपीनियन’ में गाँधी ने निंदा की थी…!


5. सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया…!


6. सावरकर पहले भारतीय थे जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुरमाना किया… इसके विरोध में हड़ताल हुई… स्वयं तिलक जी ने ‘केसरी’ पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा…!


7. वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफ़ादार होने की शपथ नहीं ली… इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नहीं दिया गया…!


8. वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया…!


9. सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे

इतिहास में छुपाया गया एक सच ....


45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आते हैं, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द होता है। अंग्रेज उससे दिन भर कोल्हू में बैल की जगह हाँकते हुए तेल पेरवाते हैं, रस्सी बटवाते हैं और छिलके कूटवाते हैं। वो तमाम कैदियों को शिक्षित कर रहा होता है, उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ प्रगाढ़ कर रहा होता है और साथ ही दीवालों कर कील, काँटों और नाखून से साहित्य की रचना कर रहा होता है। 

उसका नाम था- विनायक दामोदर सावरकर। 

वीर सावरकर।


उन्हें आत्महत्या के ख्याल आते। उस खिड़की की ओर एकटक देखते रहते थे, जहाँ से अन्य कैदियों ने पहले आत्महत्या की थी। पीड़ा असह्य हो रही थी। यातनाओं की सीमा पार हो रही थी। अंधेरा उन कोठरियों में ही नहीं, दिलोदिमाग पर भी छाया हुआ था। दिन भर बैल की जगह खटो, रात को करवट बदलते रहो। 11 साल ऐसे ही बीते। कैदी उनकी इतनी इज्जत करते थे कि मना करने पर भी उनके बर्तन, कपड़े वगैरह धो देते थे, उनके काम में मदद करते थे। सावरकर से अँग्रेज बाकी कैदियों को दूर रखने की कोशिश करते थे। अंत में बुद्धि को विजय हुई तो उन्होंने अन्य कैदियों को भी आत्महत्या से विमुख किया।


लेकिन नहीं, महा गँवारों का कहना है कि सावरकर ने मर्सी पेटिशन लिखा, सॉरी कहा, माफ़ी माँगी..ब्ला-ब्ला-ब्ला। मूर्खों, काकोरी कांड में फँसे क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने भी माफ़ी माँगी थी, तो? उन्हें भी 'डरपोक' करार दोगे? बताओ। उन्होंने भी माफ़ी माँगी थी अंग्रेजों से। क्या अब इस कसौटी पर क्रांतिकारियों को तौला जाएगा? शेर जब बड़ी छलाँग लगाता है तो कुछ कदम पीछे लेता ही है। उस समय उनके मन में क्या था, आगे की क्या रणनीति थी- ये आज कुछ लोग बैठे-बैठे जान जाते हैं। कौन ऐसा स्वतंत्रता सेनानी है जिसे 11 साल कालापानी की सज़ा मिली हो। नेहरू? गाँधी? कौन?


नानासाहब पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई और वीर कुँवर सिंह जैसे कितने ही वीर इतिहास में दबे हुए थे। 1857 को सिपाही विद्रोह बताया गया था। तब इसके पर्दाफाश के लिए 20-22 साल का एक युवक लंदन की एक लाइब्रेरी का किसी तरह एक्सेस लेकर और दिन-रात लग कर अँग्रेजों के एक के बाद एक दस्तावेज पढ़ कर सच्चाई की तह तक जा रहा था, जो भारतवासियों से छिपाया गया था। उसने साबित कर दिया कि वो सैनिक विद्रोह नहीं, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। उसके सभी अमर बलिदानियों की गाथा उसने जन-जन तक पहुँचाई। भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों ने मिल कर उसे पढ़ा, अनुवाद किया।


दुनिया में कौन सी ऐसी किताब है जिसे प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया था? अँग्रेज कितने डरे हुए थे उससे कि हर वो इंतजाम किया गया, जिससे वो पुस्तक भारत न पहुँचे। जब किसी तरह पहुँची तो क्रांति की ज्वाला में घी की आहुति पड़ गई। कलम और दिमाग, दोनों से अँग्रेजों से लड़ने वाले सावरकर थे। दलितों के उत्थान के लिए काम करने वाले सावरकर थे। 11 साल कालकोठरी में बंद रहने वाले सावरकर थे। हिंदुत्व को पुनर्जीवित कर के राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले सावरकर थे। साहित्य की विधा में पारंगत योद्धा सावरकर थे।


आज़ादी के बाद क्या मिला उन्हें? अपमान। नेहरू व मौलाना अबुल कलाम जैसों ने तो मलाई चाटी सत्ता की, सावरकर को गाँधी हत्या केस में फँसा दिया। गिरफ़्तार किया। पेंशन तक नहीं दिया। प्रताड़ित किया। 60 के दशक में उन्हें फिर गिरफ्तार किया, प्रतिबंध लगा दिया। उन्हें सार्वजनिक सभाओं में जाने से मना कर दिया गया। ये सब उसी भारत में हुआ, जिसकी स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपना जीवन खपा दिया। आज़ादी के मतवाले से उसकी आज़ादी उसी देश में छीन ली गई, जिसे उसने आज़ाद करवाने में योगदान दिया था। शास्त्री जी PM बने तो उन्होंने पेंशन का जुगाड़ किया। 


वो कालापानी में कैदियों को समझाते थे कि धीरज रखो, एक दिन आएगा जब ये जगह तीर्थस्थल बन जाएगी। आज भले ही हमारा पूरे विश्व में मजाक बन रहा हो, एक समय ऐसा होगा जब लोग कहेंगे कि देखो, इन्हीं कालकोठरियों में हिंदुस्तानी कैदी बन्द थे। सावरकर कहते थे कि तब उन्हीं कैदियों की यहाँ प्रतिमाएँ होंगी। आज आप अंडमान जाते हैं तो सीधा 'वीर सावरकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट' पर उतरते हैं। सेल्युलर जेल में उनकी प्रतिमा लगी है। उस कमरे में प्रधानमंत्री भी जाकर ध्यान धरता है, जिसमें सावरकर को रखा गया था। सावरकर का अपमान करने का अर्थ है अपने ही थूक को ऊँट के मूत्र में मिला कर पीना।


हजारो झूले थे फंदे पर, लाखों ने गोली खाई थी

क्यों झूठ बोलते थे साहब, चरखे से आजादी आई थी..

महान सम्राट कौन?


 


मकदूनिया में स्त्रियों को कतार बद्ध खड़ा कर दिया गया सौंदर्य - कमयिता के इस प्रदर्शन में जो सबसे खूबसूरत होगी उसे यूनान के शासक सिकंदर को दिया जायेगा बाकी सैनिकों को बाँट दिया जायेगा ।


पर्शिया कि इस हार ने एशिया के द्वार खोल दिया 

भागते पर्शियन शासकों का पीछा करते हुये सिकंदर हिंदुकुश तक पहुँच गया, चरवाहों , गुप्तचरों ने सूचना दी इसके पार एक महान सभ्यता है ।

 धन धान्य से भरपूर सन्यासियों, आचार्यों, गुरूकुलों, योद्धाओं, किसानों से विभूषित सभ्यता जो अभी तक अविजित है ।

सिकंदर ने जिसके पास अरबी, फ़रिशर्मिंन घोड़ों से सुसज्जित सेना थी ने भारत पर आक्रमण का आदेश दिया, झेलम के तट पर उसने पड़ाव डाल दिया आधीनता का आदेश दिया ।


महाराज पोरस कि सभा लगी थी 

गुप्तचरों ने सूचना दी आधे विश्व को परास्त कर देने वाला यूनान का सम्राट अलक्क्षेन्द्र भारत विजय हेतु सीमा पर पड़ाव डाल दिया ।


महामंत्री का प्रस्ताव था ; राजन तक्षशिला के आम्भीक ने आधीनता स्वीकार कर ली है, यह विश्व विजेता है, भारत के सभी महाजनपदों से वार्ता करके ही कोई उचित निर्णय ले ।


महाराज पोरस जो सात फिट लंबे थे जिनकी भुजाओं में इतना बल था कि सौ बलशाली योद्धा एक साथ युद्ध करने का साहस नहीं कर सकते थे !

उन्होंने महामंत्री को फटकार लगाई हम भारत के सीमांत क्षेत्र के शासक है यदि हम ही पराजय स्वीकार कर लिये तो भारत कैसे सुरक्षित रहेगा ! अपने पुत्र को सिकंदर कि शक्ति पता करने भेजते है ।


साहसी पुत्र ने सिकंदर पर हमला कर दिया. 23 वर्ष कि अवस्था में वीर बालक युद्ध भूमि में मारा गया, इस समाचार से महाराज पोरस विचलित नहीं हुये, उन्होंने सेनापति को झेलम तट पर पड़ाव का आदेश दिया यूनानी सैनिक इतनी छोटी सेना देखकर हैरान थे ।


21 दिन की प्रतीक्षा के बाद सिंकदर ने पोरस कि सेना पर हमला कर दिया अनुपात में कम क्षत्रिय हारने का नाम नहीं ले रहे थे ।


सेनापति महाराज पोरस को सूचना देता है, सिकंदर के तेज घोड़ों और बारूद के सामने क्षत्रिय योद्धा वीरगति को पा रहे है 

शिवभक्त पोरस महादेव कि आराधना कर रहे थे ! 


पोरस ने दोपहर तक सिकंदर को रोक रखने का आदेश दिया !


दोपहर तक पोरस कि आधी से अधिक सेना खत्म हो चूंकि थी यूनानी सैनिक जीत के जश्न में डूबने वाले ही थे, तभी पूर्व से भगवा पताका से आसमान लाल हो गया, हर हर महादेव के शंखनाद से पृथ्वी कांप उठी झेलम का पानी उफान मारने लगा जैसे अपने राजा का चरण छूने को व्याकुल हो ! 


10 हजार हाथियों से घिरे महाराज पोरस ऐसे लग रहे थे हाथी के उपर कोई सिंह युद्ध करने को आ रहा है बची सेना अपने राजा को देखकर पागल हो गई ।


सिकंदर अपने अभियान में बहुत से बड़े योद्धा को पराजित किया था लेकिन ऐसा दृश्य उसने कभी नहीं देखा था!


 क्या कोई व्यक्ति इतना भी विशाल और गर्वित हो सकता है ?

पोरस के एक संकेत पर हाथियों पर सुसज्जित योद्धा टूट पड़े यूनानी सैनिक मूली तरह काट दिये जा रहे थे हाथियों ने सैनिकों को फाड़ दिया ।


लेकिन महाराज पोरस कि निगाह कुछ और खोज रही थी उस दुष्ट को जिसने भारत से गद्दारी की थी आम्भीक को, जैसे ही वह सामने से निकला पोरस ने बरछी फेंक कर मारा लेकिन आम्भीक सिकंदर के सेनापति कि आड़ में छुप गया सेनापति का शरीर छलनी हो गया ।


पोरस ने अपने भाले से एक यूनानी के घोड़े पर वार किया उस घोड़े के चार खंड हो गये, सिकंदर समझ गया जब तक पोरस युद्ध भूमि है भारतीय सेना को हराया नहीं जा सकता ।


अभी भी यूनानी सैनिकों की संख्या पोरस के सैनिकों से अधिक थी लेकिन जिस तरह पोरस भीष्म कि तरह काट रहे है चारो तरफ भय का वातावरण है ।


सिकंदर ने सुनिश्चित किया अब पोरस को ही मारना होगा अपने विश्वसनीय घोड़े और 20 योद्धाओं के साथ सिकंदर पोरस कि तरफ बढ़ा, अपने राजा कि सुरक्षा में भारतीय सैनिकों ने मोर्चा संभाल लिया 20 में से 10 यूनानी योद्धा मार दिये गये लेकिन विश्व विजेता सिकंदर पोरस कि तरफ बढ़ता ही जा रहा था ।


अब सिकंदर और पोरस आमने सामने थे, उपर महादेव अपने भक्त कि वीरता देख रहे थे, हाथी के हौदे से एक बिजली चमकी जैसे लगा शिव का त्रिशूल हो ! महाराज पोरस अपने भाले को संधान कर चुकें थे, भाला सिकंदर कि तरफ बढ़ा चला आ रहा था 



घोड़े ने स्वामी भक्ति दिखाई वह भाले के सामने आ गया , चीरता भाला घोड़े के टुकड़े टुकड़े कर दिया ,घायल - मूर्छित सिकंदर जमीन पर गिर पड़ा, उसने पहली बार खुले में आसमान देखा था, घायल सिकंदर को लेकर उसके योद्धा शिविर की तरफ भागे ।


इधर झेलम का उफान धम सा गया, अपने राजा के चरणों को छूकर झेलम थम गई वापस सामान्य वेग से बहने लगी आखिर क्यों न उन्हें गर्व हो आज उनके सम्राट ने विश्व विजेता को पराजित किया है ।


जय हो सम्राट पौरस कटोच (यदुवंशी ) 


( स्रोत -प्लुकार्ड , पर्शियन इतिहासकार )

विश्व विजयी भारतीय संस्कृति

 


भारतीय संस्कृति

सिन्धु घाटी की लिपि : क्यों अंग्रेज़ और कम्युनिस्ट इतिहासकार नहीं चाहते थे कि इसे पढ़ाया जाए! 

▪️इतिहासकार अर्नाल्ड जे टायनबी ने कहा था - विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी है, तो वह भारत का इतिहास ही है।

भारतीय इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है, इसे हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है। बताया जाता है, कि वर्तमान सिन्धु नदी के तटों पर 3500 BC (ईसा पूर्व) में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी। मोहनजोदारो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि इस सभ्यता के नगर थे।


पहले इस सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, राजस्थान और गुजरात आदि बताया जाता था, किन्तु अब इसका विस्तार समूचा भारत, तमिलनाडु से वैशाली बिहार तक, आज का पूरा पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान तथा (पारस) ईरान का हिस्सा तक पाया जाता है। अब इसका समय 7000 BC  से भी प्राचीन पाया गया है।


इस प्राचीन सभ्यता की सीलों, टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट पाई जाती है उसे सिन्धु घाटी की लिपि कहा जाता है। इतिहासकारों का दावा है, कि यह लिपि अभी तक अज्ञात है, और पढ़ी नहीं जा सकी। जबकि सिन्धु घाटी की लिपि से समकक्ष और तथाकथित प्राचीन सभी लिपियां जैसे इजिप्ट, चीनी, फोनेशियाई, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई आदि सब पढ़ ली गयी हैं।


आजकल कम्प्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण कर मार्कोव विधि से प्राचीन भाषा को पढना सरल हो गया है।


सिन्धु घाटी की लिपि को जानबूझ कर नहीं पढ़ा गया और न ही इसको पढने के सार्थक प्रयास किये गए।

भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद (Indian Council of Historical Research) जिस पर पहले अंग्रेजो और फिर कम्युनिस्टों का कब्ज़ा रहा, ने सिन्धु घाटी की लिपि को पढने की कोई भी विशेष योजना नहीं चलायी।


आखिर ऐसा क्या था सिन्धु घाटी की लिपि में? अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकार क्यों नहीं चाहते थे, कि सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ा जाए?


अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों की नज़रों में सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्नलिखित खतरे थे -


1. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने के बाद उसकी प्राचीनता और अधिक पुरानी सिद्ध हो जायेगी। इजिप्ट, चीनी, रोमन, ग्रीक, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई से भी पुरानी. जिससे पता चलेगा, कि यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है। भारत का महत्व बढेगा जो अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों को बर्दाश्त नहीं होगा।

2. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने से अगर वह वैदिक सभ्यता साबित हो गयी तो अंग्रेजो और कम्युनिस्टों द्वारा फैलाये गए आर्य- द्रविड़ युद्ध वाले प्रोपगंडा के ध्वस्त हो जाने का डर है।

3. अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों द्वारा दुष्प्रचारित ‘आर्य बाहर से आई हुई आक्रमणकारी जाति है और इसने यहाँ के मूल निवासियों अर्थात सिन्धु घाटी के लोगों को मार डाला व भगा दिया और उनकी महान सभ्यता नष्ट कर दी। वे लोग ही जंगलों में छुप गए, दक्षिण भारतीय (द्रविड़) बन गए, शूद्र व आदिवासी बन गए’, आदि आदि गलत साबित हो जायेगा।

कुछ फर्जी इतिहासकार सिन्धु घाटी की लिपि को सुमेरियन भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे तो कुछ इजिप्शियन भाषा से, कुछ चीनी भाषा से, कुछ इनको मुंडा आदिवासियों की भाषा, और तो और, कुछ इनको ईस्टर द्वीप के आदिवासियों की भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे। ये सारे प्रयास असफल साबित हुए।


सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्लिखित समस्याए बताई जाती है - 

सभी लिपियों में अक्षर कम होते है, जैसे अंग्रेजी में 26, देवनागरी में 52 आदि, मगर सिन्धु घाटी की लिपि में लगभग 400 अक्षर चिन्ह हैं। सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में यह कठिनाई आती है, कि इसका काल 7000 BC से 1500 BC तक का है, जिसमे लिपि में अनेक परिवर्तन हुए साथ ही लिपि में स्टाइलिश वेरिएशन बहुत पाया जाता है। लेखक ने लोथल और कालीबंगा में सिन्धु घाटी व हड़प्पा कालीन अनेक पुरातात्विक साक्षों का अवलोकन किया।

भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक लिपि है जिसे ब्राह्मी लिपि कहा जाता है। इस लिपि से ही भारत की अन्य भाषाओँ की लिपियां बनी। यह लिपि वैदिक काल से गुप्त काल तक उत्तर पश्चिमी भारत में उपयोग की जाती थी। संस्कृत, पाली, प्राकृत के अनेक ग्रन्थ ब्राह्मी लिपि में प्राप्त होते है।

सम्राट अशोक ने अपने धम्म का प्रचार प्रसार करने के लिए ब्राह्मी लिपि को अपनाया। सम्राट अशोक के स्तम्भ और शिलालेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए और सम्पूर्ण भारत में लगाये गए।

सिन्धु घाटी की लिपि और ब्राह्मी लिपि में अनेक आश्चर्यजनक समानताएं है। साथ ही ब्राह्मी और तमिल लिपि का भी पारस्परिक सम्बन्ध है। इस आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि को पढने का सार्थक प्रयास सुभाष काक और इरावाथम महादेवन ने किया।

सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 400 अक्षर के बारे में यह माना जाता है, कि इनमे कुछ वर्णमाला (स्वर व्यंजन मात्रा संख्या), कुछ यौगिक अक्षर और शेष चित्रलिपि हैं। अर्थात यह भाषा अक्षर और चित्रलिपि का संकलन समूह है। विश्व में कोई भी भाषा इतनी सशक्त और समृद्ध नहीं जितनी सिन्धु घाटी की भाषा।

बाएं लिखी जाती है, उसी प्रकार ब्राह्मी लिपि भी दाएं से बाएं लिखी जाती है। सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 3000 टेक्स्ट प्राप्त हैं।

इनमे वैसे तो 400 अक्षर चिन्ह हैं, लेकिन 39 अक्षरों का प्रयोग 80 प्रतिशत बार हुआ है। और ब्राह्मी लिपि में 45 अक्षर है। अब हम इन 39 अक्षरों को ब्राह्मी लिपि के 45 अक्षरों के साथ समानता के आधार पर मैपिंग कर सकते हैं और उनकी ध्वनि पता लगा सकते हैं।


ब्राह्मी लिपि के आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि पढने पर सभी संस्कृत के शब्द आते है जैसे - श्री, अगस्त्य, मृग, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, कामधेनु, मूषिका, पग, पंच मशक, पितृ, अग्नि, सिन्धु, पुरम, गृह, यज्ञ, इंद्र, मित्र आदि।

निष्कर्ष यह है कि -

1. सिन्धु घाटी की लिपि ब्राह्मी लिपि की पूर्वज लिपि है।

2. सिन्धु घाटी की लिपि को ब्राह्मी के आधार पर पढ़ा जा सकता है।

3. उस काल में संस्कृत भाषा थी जिसे सिन्धु घाटी की लिपि में लिखा गया था।

4. सिन्धु घाटी के लोग वैदिक धर्म और संस्कृति मानते थे।

5. वैदिक धर्म अत्यंत प्राचीन है।

हिन्दू सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन व मूल सभ्यता है, हिन्दुओं का मूल निवास सप्त सैन्धव प्रदेश (सिन्धु सरस्वती क्षेत्र) था जिसका विस्तार ईरान से सम्पूर्ण भारत देश था।वैदिक धर्म को मानने वाले कहीं बाहर से नहीं आये थे और न ही वे आक्रमणकारी थे। आर्य - द्रविड़ जैसी कोई भी दो पृथक जातियाँ नहीं थीं जिनमे परस्पर युद्ध हुआ हो।

जय सनातन विश्व गुरु भारत 

अहंकार का नाश ।

 



कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा.

स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।

मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।

कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।


कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।

पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?

.

(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)


कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।

स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?

(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)


कालिदास बोले :- मैं हठी हूँ ।

.

स्त्री बोली :- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?

(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)


कालिदास ने कहा :- फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।

.

स्त्री ने कहा :- नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।

मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।

(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)


वृद्धा ने कहा :- उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)

माता ने कहा :- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।

.

कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।


शिक्षा :-

विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।

दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए.....

अन्न के कण को

"और"

आनंद के क्षण को...

(साभार)

विष्णु भगवान ने पृथ्वी को किस समुद्र से निकाला था ?

 


 जबकि समुद्र पृथ्वी पर ही है ?


बचपन से मेरे मन मे भी ये सवाल था , कि आखिर कैसे पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया जबकि समुद पृथ्वी पर ही है। 

 हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया था। फलस्वरूप भगवान बिष्णु ने  ' सूकर '  का रूप धारण करके हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को पुनः उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया।*

इस पौराणिक सत्य को आज के युग में एक दंतकथा के रूप में लिया जाता था। लोगों का ऐसा मानना था कि ये मनगढंत कहानी है । 

लेकिन अभी नासा के एक नवीन खोज के अनुसार

खगोल विज्ञान की दो टीमों ने ब्रह्मांड में अब तक खोजे गए पानी के सबसे बड़े और सबसे दूर के जलाशय की खोज की है ।

 उस जलाशय का पानी, हमारी पृथ्वी के समुद्र के  140 खरब गुना पानी के बराबर है। जो 12 बिलियन से अधिक प्रकाश-वर्ष दूर है। 

*जाहिर सी बात है कि उस राक्षस ने पृथ्वी को इसी जलाशय में छुपाया होगा।*

 हमारे वेद ग्रंथ इसे *"भवसागर"*  कहते हैं। 

 जब मैंने ये खबर पढ़ा तो मेरा भी भ्रम दूर हो गया। और अंत मे मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहुँगा की जो इस ब्रह्मांड का रचयिता है, जिसके मर्जी से ब्रह्मांड चलता है। उसकी शक्तियों की थाह लगाना  एक तुच्छ मानव के वश की बात नही है। मानव तो अपनी आंखों से उनके विराट स्वरूप को भी नही देख सकता।

 कुछ बेवकूफों को लगता है कि हमारा देश और यहाँ की सभ्यता गवांर है , उनके लिये मैं बता दूं कि 

सभ्यता, ज्ञान, विज्ञान, धर्म, सम्मान भारत से ही शुरू हुआ है। अगर आपको इसपर भी सवाल करना है तो आप इतिहास खंगाल कर देखिये। जिन सभ्यताओं की मान कर आप अपने ही धर्म पर सवाल कर रहे हैं उनके देश मे जाकर देखिये। उनके भगवान तथा (अ)धर्म पर कोई सवाल नही करता , बल्कि उन्होंने अपने धर्म का इतना प्रचार किया है कि मात्र 2000 साल में ही आज संसार मे सबसे ज्यादा ईसाई व मुस्लिम हैं। 

और हम जैसे बेवकूफों को धर्मपरिवर्तन कराते हैं। और हम बेवकूफ हैं , जो बिना धर्म-शास्त्रों के अध्ययन के , खुद अपने ही देश और धर्म पर सवाल करते हैं !!

 आपको बतला दे , नासा हमारे धर्मग्रंथों को आधार मानकर ही खोजो की दिशा तय करता है । हिन्दू धर्म कितना प्राचीन है इसका अनुमान भी नही लगा सकता नासा। 

जब इंग्लैंड में पहला स्कूल खुला था , तब भारत में लाखों गुरुकुल थे। और *हजारो साल पहले 4 वेद और 18 पुराण लिखे जा चुके थे। जब भारत मे प्राचीन राजप्रथा चल रही थी तब ये लोग कपड़े पहनना भी नही जानते थे।*

 खगोलशास्त्र के सबसे बड़े वैज्ञानिक आर्यभट्ट जो भारत के थे। उन्होंने दुनिया को इस बात से अवगत कराया कि ब्रह्मांड क्या है, पृथ्वी का आकार और व्यास कितना है। *सारे ग्रह-नक्षत्रों की गति , दूरी , उनका प्रभाव ...   ईसा से पूर्व ही विक्रमादित्य काल से पहले ही खोजा जा चुका था ।*

 कई अज्ञानी वामपंथी लोग मानते हैं कि कोई परमतत्व है ही नहीं।  हम ही हमारे भाग्य के निर्माता है। हम ही संचार चला रहे हैं। हम जो करते हैं, वही होता है। 

अ-विद्या से ग्रस्त ऐसे ईश्‍वर विरोधी लोग मृतक के समान है जो बगैर किसी आधार और तर्क के ईश्‍वर को नहीं मानते हैं।

 बाद के बने हुए क्रिश्चियन ओर इस्लाम धर्म आज भी पृथ्वी को गोल नही फ्लैट मानते है ।

जबकि हजारो साल पहले , सुकर अवतार में , पृथ्वी गोल बतलाई गई थी । 

 दिन और रात का सही समय पर होना। सही समय पर सूर्य अस्त और उदय होना। पेड़ पौधे, अणु परमाणु तथा मनुष्य की मस्तिष्क की कार्यशैली का ठीक ढंग से चलना ये अनायास ही नही हो रहा है।  *जीव के अंदर चेतना कहाँ से आती है , हर प्राणी अपने जैसा ही बीज कैसे उत्पन्न करता है ??* शरीर की बनावट उसके जरूरत के अनुसार ही कैसे होता है? बिना किसी निराकार शक्ति के ये अपने आप होना असंभव है। 

और अगर अब भी 

*ईश्वर और वेद पुराण के प्रति तर्क करना है,  तो विधर्मियों के जीवन का कोई महत्व नही है।*


सनातन धर्म की उत्पत्ति कब हुई?

 


सनातन धर्म की उत्पत्ति कब हुई बता पाना अत्यंत कठिन है । भारत में  सनातन धर्म को ही कालांतर में हिन्दू धर्म के नाम से जाना जाने लगा था । हिन्दू धर्म शाब्दिक रूप से बहुत पुराना नहीं है । इसे इसके वर्तमान स्वरुप में कई वर्ष पहले अस्तित्व में आना माना जाता है ।


हिन्दू शब्द की उत्पति सिन्धु से होना माना गया है । ईरानियों ने सिंधु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिंदू नाम से पुकारा करते थे । इस तरह हिंदुस्तान में भी इस समुदाय विशेष को लोग हिन्दू नाम से धीरे धीरे पुकारना शुरू कर दिया ।


हिन्दू लोग सनातन धर्म को मानने वाले थे, धीरे धीरे हिन्दुओं के द्वारा माने जाने वाले धर्म को हिन्दू धर्म के नाम से जाना जाने लगा । सनातन धर्म की उत्पत्ति या यूँ कहे की हिन्दू धर्म की उत्पति कब हुई, इस मामले में कुछ ठीक ठीक बता पाना कठिन है ।


एक अन्य मान्यता के अनुशार कुछ इतिहासकार सनातन धर्म की उत्पत्ति के संबंद्ध में यह मानते हैं कि चीनी यात्री हुएनसांग के समय हिन्दू शब्द का प्रयोग शुरू हुवा । चीनी लोग हिन्दुओं को इंदु नाम से पुकारते थे, इंदु यानि चन्द्रमा । भारतीय ज्योतिषीय शास्त्र का आधार चंद्रमास से ही माना गया है ।

 


सनातन धर्म की उत्पत्ति से अंक ६ और १० का हमेशा से ही विशेष महत्व रहा है ।

अंक 6:

छ: मुक्ति : 1) सार्ष्टि (ऐश्‍वर्य), (2) सालोक्य (लोक की प्राप्ती), (3) सारूप (ब्रह्म स्वरूप), (4) सामीप्य (ब्रह्म के पास), (5) साम्य (ब्रह्म जैसी समानता), (6) लीनता या सामुज्य (ब्रह्म में लीन हो जाना)। ब्रह्मलीन हो जाना ही पूर्ण मोक्ष है।

छ: शिक्षा : वेदांग, सांख्य, योग, निरुक्त, व्याकरण और छंद।

छ: ऋतु : बसंत, ग्रीष्म, शरद, हेमंत और शिशिर।

अंक 7:

सप्तऋषि : कष्यप, भारद्वाज, गौतम, अगस्त्य, वशिष्ट।

सात छंद : गायत्री, वृहत्ती, उष्ठिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति।

सात योग : ज्ञान, कर्म, भक्ति, ध्यान, राज, हठ, सहज।

सात भूत : भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल।

सात वायु : प्रवह, आवह, उद्वह, संवह, विवह, परिवह, परावह।

सात द्वीप : जम्बूद्वीप, प्लक्ष द्वीप, शाल्मली द्वीप, कुश द्वीप, क्रौंच द्वीप, शाक द्वीप एवं पुष्कर द्वीप।

सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, पाताल तथा रसातल।

सात लोक : भूर्लोक, भूवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, सत्यलोक। सत्यलोक को ही ब्रह्मलोक कहते है।

सात समुद्र : क्षीरसागर, दुधीसागर, घृत सागर, पयान, मधु, मदिरा, लहू।

सात पर्वत : सुमेरु, कैलाश, मलय, हिमालय, उदयाचल, अस्ताचल, सपेल? माना जाता है कि गंधमादन भी है।

सप्त पुरी : अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका।

अंक 8:

अष्‍ट विनायक : वक्रतुंड, एकदंत, मनोहर, गजानन, लम्बोदर, विकट, विध्नराज, धूम्रवर्ण।

आठ भैरव : रुद्र, संहार, काल, असिति, क्रौध, भीषण, महा, खट्वांग।

आठ योगांग : यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधी।

आठ नदी : गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, सिंधु, कावेरी, ब्रह्मपुत्र

आठ वसु : अहश, ध्रुव, सोम, धरा, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभाष। (यह रहने के आठ स्थान है तथा अग्नि के आठ प्रकार भी। यह अदिति के आठ पुत्रों के नाम भी है)

आठ धातु : सोना, चांदी, लोहा, तांबा, शीशा, कांसा, रांगा, पीतल।

आठ प्रहर : दिन के चार और रात के चार मिलाकर आठ प्रहर होते हैं। यानि एक पहर तीन घंटे का होता है। जैसे प्रात:काल, मध्यकाल, संध्याकाल, ब्रह्मकाल आदि।

अंक 9:

नवधा भक्ति : श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चना, वंदना, मित्र, दाम्य, आत्मनिवेदन।

नौ विधि : पक्ष, महापक्ष, शंख, मकर, कश्यप, कुकंन, मुकन्द, नील, बार्च।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंद, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिरात्रि। ऐसा भी कह सकते हैं- काली, कात्यायानी, ईशानी, चामुंडा, मर्दिनी, भद्रकाली, भद्रा, त्वरिता तथा वैष्णवी।

अंक 10:

दस दिशा : (दस दिग्पाल), पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, वायव, नैऋत्य, आग्नेय और ईशान।

दस अवतारी पुरुष : मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशु, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्की।

ब्रह्मा के दस मानस पुत्र : (मन से उत्पन्न) मरिचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, क्रतु, पुलस्य, प्रचेता, भृगु, नारद एवं महातपस्वी वशिष्ट।

साधुओं के दस संप्रदाय:- 1.गिरि, 2.पर्वत, 3.सागर, 4.पुरी, 5.भारती, 6.सरस्वती, 7.वन, 8.अरण्य, 9.तीर्थ और 10.आश्रम।

दस महाविद्या : काली, तारादेवी, ललिता-त्रिपुरसुन्दरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंकि और कमला।

देवी भागवत पुराण के दस नियम



 देवी भागवत पुराण में मां दुर्गा द्वारा बताये गये दस नियम

  "मानुश तन अनमोल ये ,तू माटी में ना रोल रे "


मनुष्य को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इसका वर्णन कई ग्रंथों और शास्त्रों में पाया जाता है। इन बातों को समझ कर, उनका पालन करने पर जीवन को सुखद बनाया जा सकता है। श्रीमद् देवी भागवत महापुराण में स्वयं देवी भगवती ने दस नियमों के बारे में बताया है। इन नियमों का पालन हर मनुष्य को अपने जीवन में करना ही चाहिए।


श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के अनुसार, ये है वह दस नियम जिन्हें हर मनुष्य को अपने जीवन में अपनाना चाहिए-


तपः सन्तोष आस्तिक्यं दानं देवस्य पूजनम्।

सिद्धान्तश्रवणं चैव ह्रीर्मतिश्च जपो हुतम्।।


अर्थात- तप, संतोष, आस्तिकता, दान, देवपूजन, शास्त्रसिद्धांतों का श्रवण, लज्जा, सद्बुद्धि, जप और हवन- ये दस नियम मेरे द्वारा (देवी भगवती) कहे गए है।


1. तप- तपस्या करने या ध्यान लगाने से मन को शांति मिलती है। मनुष्य को जीवन में कई बातें होती हैं, जिन्हें समझ पाना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है। तप करने या ध्यान लगाने से हमारा सारा ध्यान एक जगह केन्द्रित हो जाता है और मन भी शांत हो जाता है। शांत मन से किसी भी समस्या का हल निकाला जा सकता है। साथ ही ध्यान लगाने से कई मानसिक और शारीरिक रोगों का भी नाश होता है।


2. संतोष- मनुष्य के जीवन में कई इच्छाएं होती हैं। हर इच्छा को पूरा कर पाना संभव नहीं होता। ऐसे में मनुष्य को अपने मन में संतोष (संतुष्टि) रखना बहुत जरूरी होता है। असंतोष की वजह से मन में जलन, लालच जैसी भावनाएं जन्म लेने लगती हैं। जिनकी वजह से मनुष्य गलत काम तक करने को तैयार हो जाता है। सुखी जीवन के लिए इन भावनाओं से दूर रहना बहुत आवश्यक होता है। इसलिए, मनुष्य हमेशा अपने मन में संतोष रखना चाहिए।


3. आस्तिकता- आस्तिकता का अर्थ होता है- देवी-देवता में विश्वास रखना। मनुष्य को हमेशा ही देवी-देवताओं का स्मरण करते रहना चाहिए। नास्तिक व्यक्ति पशु के समान होता है। ऐसे व्यक्ति के लिए अच्छा-बुरा कुछ नहीं होता। वह बुरे कर्मों को भी बिना किसी भय के करता जाता है। जीवन में सफलता हासिल करने के लिए आस्तिकता की भावना होना बहुत ही जरूरी होता है।


4. दान- हिंदू धर्म में दान का बहुत ही महत्व है। दान करने से पुण्य मिलता है। दान करने पर ग्रहों के दोषों का भी नाश होता है। कई बार मनुष्य को उसकी ग्रह दशाओं की वजह से कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। दान देकर या अन्य पुण्य कर्म करके ग्रह दोषों का निवारण किया जा सकता है। मनुष्य को अपने जीवन में हमेशा ही दान कर्म करते रहना चाहिए।


5. देव पूजन- हर मनुष्य की कई कामनाएं होती हैं। अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कर्मों के साथ-साथ देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना भी की जाती है। मनुष्य अपने हर दुःख में, हर परेशानी में भगवान को याद अवश्य करता है। सुखी जीवन और हमेशा भगवान की कृपा अपने परिवार पर बनाए रखने के लिए पूरी श्रद्धा के साथ भगवान की पूजा करनी चाहिए।


6. शास्त्र सिद्धांतों का श्रवण- कई पुराणों और शास्त्रों में धर्म-ज्ञान संबंधी कई बातें बताई गई हैं। जो बातें न कि सिर्फ उस समय बल्कि आज भी बहुत उपयोगी हैं। अगर उन सिद्धान्तों का जीवन में पालन किया जाए तो किसी भी कठिनाई का सामना आसानी से किया जा सकता है। शास्त्रों में दिए गए सिद्धांतों से सीख के साथ-साथ पुण्य भी प्राप्त होता है। इसलिए, शास्त्रों और पुराणों का अध्यन और श्रवण करना चाहिए।


7. लज्जा- किसी भी मनुष्य में लज्जा (शर्म) होना बहुत जरूरी होता है। बेशर्म मनुष्य पशु के समान होता है। जिस मनुष्य के मन में लज्जा का भाव नहीं होता, वह कोई भी दुष्कर्म कर सकता है। जिसकी वजह से कई बार न की सिर्फ उसे बल्कि उसके परिवार को भी अपमान का पात्र बनना पड़ सकता है। लज्जा ही मनुष्य को सही और गलत में फर्क करना सिखाती है। मनुष्य को अपने मन में लज्जा का भाव निश्चित ही रखना चाहिए।


8. सदबुद्धि- किसी भी मनुष्य को अच्छा या बुरा उसकी बुद्धि ही बनाती है। अच्छी सोच रखने वाला मनुष्य जीवन में हमेशा ही सफलता पाता है। बुरी सोच रखने वाला मनुष्य कभी उन्नति नहीं कर पाता। मनुष्य की बुद्धि उसके स्वभाव को दर्शाती है। सदबुद्धि वाला मनुष्य धर्म का पालन करने वाला होता है और उसकी बुद्धि कभी गलत कामों की ओर नहीं जाती। अतः हमेशा सदबुद्धि का पालन करना चाहिए।


9. जप- पुराणों और शास्त्रों के अनुसार, जीवन में कई समस्याओं का हल केवल भगवान का नाम जपने से ही पाया जा सकता है। जो मनुष्य पूरी श्रद्धा से भगवान का नाम जपता हो, उस पर भगवान की कृपा हमेशा बनी रहती है। भगवान का भजन-कीर्तन करने से मन को शांति मिलती है और पुण्य की भी प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, कलियुग में देवी-देवताओं का केवल नाम ले लेने मात्र से ही पापों से मुक्ति मिल जाती है।


10. हवन- किसी भी शुभ काम के मौके पर हवन किया जाता है। हवन करने से घर का वातावरण शुद्ध होता है। कहा जाता है, हवन करने पर हवन में दी गई आहुति का एक भाग सीधे देवी-देवताओं को प्राप्त होता है। उससे घर में देवी-देवताओं की कृपा सदा बनी रहती है। साथ ही वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा भी बढ़ती है।


      !!!!! इति, शुभमस्तु !!!!!

Sab kuch

माँ पर शायरी

  "माँ के कदमों में बसी जन्नत की पहचान, उसकी दुआओं से ही रोशन है हर इंसान। जिंदगी की हर ठोकर से बचा लेती है, माँ की ममता, ये दुन...