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परमात्मा की लाठी

 


एक साधु वर्षा के जल में प्रेम और मस्ती से भरा चला जा रहा था, कि उसने एक मिठाई की दुकान को देखा जहां एक कढ़ाई में गरम दूध उबाला जा रहा था तो मौसम के हिसाब से दूसरी कढ़ाई में गरमा गरम जलेबियां तैयार हो रही थीं।  साधु कुछ क्षणों के लिए वहाँ रुक गया, शायद भूख का एहसास हो रहा था या मौसम का असर था। साधु हलवाई की भट्ठी को बड़े गौर से देखने लगा साधु कुछ खाना चाहता था लेकिन साधु की जेब ही नहीं थी तो पैसे भला कहां से होते, साधु कुछ पल भट्ठी से हाथ सेंकनें के बाद चला ही जाना चाहता था कि नेक दिल हलवाई से रहा न गया और एक प्याला गरम दूध और कुछ जलेबियां साधु को दे दीं। मलंग ने गरम जलेबियां गरम दूध के साथ खाई और फिर हाथों को ऊपर की ओर उठाकर हलवाई के लिए प्रार्थना की, फिर आगे चल दिया।  साधु बाबा का पेट भर चुका था दुनिया के दु:खों से बेपरवाह, वो फिर एक नए जोश से बारिश के गंदले पानी के छींटे उड़ाता चला जा रहा था।

वह इस बात से बेखबर था कि एक युवा नव विवाहिता जोड़ा भी वर्षा के जल से बचता बचाता उसके पीछे चला आ रहा है। एक बार इस मस्त साधु ने बारिश के गंदले पानी में जोर से लात मारी। बारिश का पानी उड़ता हुआ सीधा पीछे आने वाली युवती के कपड़ों को भिगो गया उस औरत के कीमती कपड़े कीचड़ से लथपथ हो गये। उसके युवा पति से यह बात बर्दाश्त नहीं हुई। 


इसलिए वह आस्तीन चढ़ाकर आगे बढ़ा और साधु के कपड़ो को पकड़ कर खींच कर कहने लगा -"अंधा है?तुमको नज़र नहीं आता तेरी हरकत की वजह से मेरी पत्नी के कपड़े गीले हो गऐ हैं और कीचड़ से भर गऐ हैं?"

 साधु हक्का-बक्का सा खड़ा था जबकि इस युवा को साधु का चुप रहना नाखुशगवार गुज़र रहा था। 

महिला ने आगे बढ़कर युवा के हाथों से साधु को छुड़ाना भी चाहा, लेकिन युवा की आंखों से निकलती नफरत की चिंगारी देख वह भी फिर पीछे खिसकने पर मजबूर हो गई। 


राह चलते राहगीर भी उदासीनता से यह सब दृश्य देख रहे थे लेकिन युवा के गुस्से को देखकर किसी में इतनी हिम्मत नहीं हुई कि उसे रोक पाते और आख़िर जवानी के नशे मे चूर इस युवक ने, एक जोरदार थप्पड़ साधु के चेहरे पर जड़ दिया। बूढ़ा मलंग थप्पड़ की ताब ना झेलता हुआ लड़खड़ाता हुआ कीचड़ में जा गिरा।

युवक ने जब साधु को नीचे गिरता देखा तो मुस्कुराते हुए वहां से चल दिया।

बूढ़े साधु ने आकाश की ओर देखा और उसके होठों से निकला वाह मेरे भगवान कभी गरम दूध जलेबियां और कभी गरम थप्पड़!!!

लेकिन जो तू चाहे मुझे भी वही पसंद है।

यह कहता हुआ वह एक बार फिर अपने रास्ते पर चल दिया।

दूसरी ओर वह युवा जोड़ा अपनी मस्ती को समर्पित अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो गया। थोड़ी ही दूर चलने के बाद वे एक मकान के सामने पहुंचकर रुका। वह अपने घर पहुंच गए थे।

 वो युवा अपनी जेब से चाबी निकाल कर अपनी पत्नी से हंसी मजाक करते हुए ऊपर घर की सीढ़ियों तय कर रहा था। बारिश के कारण सीढ़ियों पर फिसलन हो गई थी। अचानक युवा का पैर फिसल गया और वह सीढ़ियों से नीचे गिरने लगा।

महिला ने बहुत जोर से शोर मचा कर लोगों का ध्यान अपने पति की ओर आकर्षित करने लगी जिसकी वजह से काफी लोग तुरंत सहायता के लिये युवा की ओर लपक, लेकिन देर हो चुकी थी।

 युवक का सिर फट गया था और कुछ ही देर में ज्यादा खून बह जाने के कारण इस नौजवान युवक की मौत हो चुकी थी। कुछ लोगों ने दूर से आते साधु बाबा को देखा तो आपस में कानाफूसी होने लगी कि निश्चित रूप से इस साधु बाबा ने थप्पड़ खाकर युवा को श्राप दिया है अन्यथा ऐसे नौजवान युवक का केवल सीढ़ियों से गिर कर मर जाना बड़े अचम्भे की बात लगती है।  कुछ मनचले युवकों ने यह बात सुनकर साधु बाबा को घेर लिया।

 एक युवा कहने लगा कि 

- "आप कैसे भगवान के भक्त हैं जो केवल एक थप्पड़ के कारण युवा को श्राप दे बैठे। भगवान के भक्त में रोष व गुस्सा हरगिज़ नहीं होता। आप तो जरा सी असुविधा पर भी धैर्य न कर सकें।" साधु बाबा कहने लगा -"भगवान की क़सम! मैंने इस युवा को श्राप नहीं दिया।" -"अगर आप ने श्राप नहीं दिया तो ऐसा नौजवान युवा सीढ़ियों से गिरकर कैसे मर गया?"

तब साधु बाबा ने दर्शकों से एक अनोखा सवाल किया कि 

-"आप में से कोई इस सब घटना का चश्मदीद गवाह मौजूद है?" 

एक युवक ने आगे बढ़कर कहा -"हाँ! मैं इस सब घटना का चश्मदीद गवाह हूँ।"

साधु ने अगला सवाल किया-"मेरे क़दमों से जो कीचड़ उछला था क्या उसने युवा के कपड़ों को दागी किया था?"

युवा बोला- "नहीं। लेकिन महिला के कपड़े जरूर खराब हुए थे।"

मलंग ने युवक की बाँहों को थामते हुए पूछा- "फिर युवक ने मुझे क्यों मारा?" युवा कहने लगा

- "क्योंकि वह युवा इस महिला का प्रेमी था और यह बर्दाश्त नहीं कर सका कि कोई उसके प्रेमी के कपड़ों को गंदा करे। इसलिए उस युवक ने आपको मारा।"

युवा की बात सुनकर साधु बाबा ने एक जोरदार ठहाका बुलंद किया और यह कहता हुआ वहाँ से विदा हो गया.....

*तो! भगवान की क़सम! मैंने श्राप कभी किसी को नहीं दिया लेकिन कोई है जो मुझसे प्रेम रखता है।अगर उसका यार सहन नहीं कर सका तो मेरे यार को कैसे बर्दाश्त होगा कि कोई मुझे मारे? और वो मेरा यार इतना शक्तिशाली है कि दुनिया का बड़े से बड़ा राजा भी उसकी लाठी से डरता है।*

सच है। उस परमात्मा की लाठी दीख़ती नहीं और आवाज भी नहीं करती लेकिन पड़ती है तो बहुत दर्द देती है। हमारे कर्म ही हमें उसकी लाठी से बचाते हैं, बस कर्म अच्छे होने चाहियें।


श्रीगणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त 2020

 अभिजित मुहूर्त और स्थिर लग्न में घर-घर में विराजेगे भगवान  श्री गणेश ।



भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह के समय विघ्न विनायक भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था अतः यह तिथि मध्यान्ह व्यापिनी लेनी चाहिए गणेश जी हिंदुओं के प्रथम पूज्य देवता है सनातन धर्मानुयायी स्मार्तो के पंच देवताओं में गणेश जी प्रमुख है हिंदुओं के घर में चाहे जैसी पूजा या क्रिया कर्म हो सर्वप्रथम श्री गणेश जी का आवाहन और पूजन किया जाता है शुभ कार्यों में गणेश जी की स्तुति का अत्यंत महत्व माना गया है गणेश जी विघ्नों को दूर करने वाले देवता हैं इनका मुख हाथी का उदर लंबा तथा शेष शरीर मनुष्य के समान है मोदक इन्हें विशेष प्रिय हैं धर्माधिकारी पंडित विनोद शास्त्री ने बताया कि भगवान श्री गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को मध्यम काल में हुआ था इस कारण इस व्रत में मध्यान्ह व्यापिनी तिथि लेनी चाहिए इस वर्ष 22 अगस्त शनिवार को अभिजीत मुहूर्त और वृश्चिक लग्न स्थिर लग्न में घर-घर में विराजेगे  श्री गणेश भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर अपनी शक्ति के अनुसार सोने चांदी ताबे मिट्टी पीतल अथवा गोबर से निर्मित गणेश की प्रतिमा बनाएं या बनी हुई प्रतिमा का पूजन करना चाहिए भगवान गणेश जी को दूर्वा सिंदूर लाल पुष्प रक्त चंदन शमी पत्र मोदक अति प्रिय है इस कारण गणेश पूजन में दूर्वा सिंदूर मोदक से पूजन करना चाहिए गणेश जी को 21 दूर्वा चढ़ाना चाहिए एवं 21 लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए उन 21 लड्डुओं में से पांच लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाना चाहिए पांच लड्डू किसी ब्राह्मण को देना चाहिए शेष लड्डू प्रसाद स्वरूप स्वयं ले एवं परिवार में बांटना चाहिए भगवान श्री गणेश का पूजन बुद्धि विद्या तथा रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति एवं विघ्नों के नाश के लिए किया जाता है गणेश चतुर्थी पर गणेश सहस्त्र नामावली से भगवान गणेश जी को दूर्वा चढ़ाना चाहिए एवं लड्डुओं से हवन करना चाहिए भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए संकटनाशक गणेश स्त्रोत का पाठ गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ गणेश चालीसा गणेश पुराण का पाठ आदि करना चाहिए शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी सिद्धिविनायक चतुर्थी के नाम से जानी जाती है इसमें किया गया दान स्नान उपवास और पूजन अर्चना करने से गणेश जी की कृपा से 100 गुना हो जाता है परंतु इस चतुर्थी को चंद्र दर्शन का निषेध किया गया है इस दिन चंद्र दर्शन से मिथ्या कलंक लगता है इस कारण इस तिथि को चंद्र दर्शन ना हो ऐसी सावधानी रखना चाहिए भारतीय मानक समय के अनुसार विदिशा के स्थानीय समय से

श्री गणेश स्थापना एवं पूजन का शुभ मुहूर्त 22 अगस्त शनिवार को अभिजित मुहूर्त 11:55 से 12:46 तक एवं स्थिर वृश्चिक लग्न दोपहर में 12:17 से 2:33 तक

चर की चौघड़िया 12 से 1:30 तक 1:30 से 4:30 तक लाभ अमृत की चौघड़िया स्थापना के लिए शुभ है शाम को 6 से 7:30 तक लाभ की चौघड़िया गणेश स्थापना के लिए शुभ है रात्रि में 7:30 से 9वजेतक लाभ की चौघड़िया स्थापना के लिए शुभ है प्रातः 7:30 से 9वजे तक शुभ की चौघड़िया में भी स्थापना की जा सकती है


भगवान श्री गणेश स्थापना इस साल 22 अगस्त 2020 शनिवार को होगी। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी होती है...

इस वर्ष यह बडी गणेश चतुर्थी 22 अगस्त,

 शनिवार को आ रही है। पौराणिक कथाओं के अनुसार विघ्नहर्ता श्रीगणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन ही हुआ था, इसलिए 11 दिनों तक गणेश उत्सव मनाया जाता है

 गणेश जन्मोत्सव के दिनों में गणपति देवता की विशेष अर्चना की जाती है...आइए जानते हैं कि इस वर्ष गणेश चतुर्थी पूजा का मुहूर्त क्या है। कब करें श्री गणेश की स्थापना ...

श्रीगणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी ति​थि का प्रारंभ 21 अगस्त दिन शुक्रवार की रात 11 बजकर 02 मिनट से हो रहा है, जो 22 अगस्त दिन शनिवार को शाम 07 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। श्रीगणेश चतुर्थी की पूजा हमेशा दोपहर के मुहूर्त में की जाती है क्योंकि गणेश जी का जन्म दोपहर में हुआ था 11:55 से 4:30 तक गणेश स्थापना एवं पूजन का शुभ मुहूर्त है अभिजित मुहूर्त स्थिर लग्न लाभ अमृत की चौघड़िया स्थापना के लिए शुभ है


इस बार कोरोना काल में सार्वजनिक जगहों पर गणपति स्थापना की मनाही हो सकती है। आप अपने घर पर ही गणपति की स्थापना करें। अगर संभव हो तो श्री गणेश की प्रतिमा का निर्माण घर पर ही करें....।

ग्रह नाराज क्यों हो जाते हैं ?


जानिए क्या है कारण


सूर्य: सूर्य का संबंध आत्मा से होता है। यदि आपकी आत्मा, आपका मन पवित्र है और आप किसी का दिल दुखाने वाला कार्य नहीं करते हैं तो सूर्यदेव आपसे प्रसन्न रहेंगे। लेकिन किसी का दिल दुखाने (कष्ट देने), किसी भी प्रकार का टैक्स चोरी करने एवं किसी भी जीव की आत्मा को ठेस पहुंचाने पर सूर्य अशुभ फल देता है। कुंडली में सूर्य चाहे जितनी मजबूत स्थिति में हो लेकिन यदि ऐसा कोई कार्य किया है, तो वह अपना शुभ प्रभाव नहीं दे पाता। सूर्य की प्रतिकूलता के कारण व्यक्ति की मान-प्रतिष्ठा में कमी आती है और उसे पिता की संपत्ति से बेदखल होना पड़ता है।

 

चंद्र

परिवार की स्त्रियों जैसे, मां, नानी, दादी, सास एवं इनके समान पद वाली स्त्रियों को कष्ट देने से चंद्र का बुरा प्रभाव प्राप्त होता है। किसी से द्वेषपूर्वक ली गई वस्तु के कारण चंद्रमा अशुभ फल देता है। चंद्रमा अशुभ हो तो व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहता है। उसके कार्यों में रुकावट आने लगती है और तरक्की रूक जाती है। जल घात की आशंका बढ़ जाती है। यहां तक कि व्यक्ति मानसिक रोगी भी हो सकता है।

  

मंगल

मंगल का संबंध भाई-बंधुओं और राजकाज से होता है। भाई से झगड़ा करने, भाई के साथ धोखा करने से मंगल अशुभ फल देता है। अपनी पत्नी के भाई का अपमान करने पर भी मंगल अशुभ फल देता है। मंगल की प्रतिकूलता के कारण व्यक्ति जीवन में कभी स्वयं की भूमि, भवन, संपत्ति नहीं बना पाता। जो संपत्ति संचय की होती है वह भी धीरे-धीरे हाथ से छूटने लगती है।


बुध-गुरु

बुध: बहन, बेटी और बुआ को कष्ट देने, साली एवं मौसी को दुखी करने से बुध अशुभ फल देता है। किसी किन्नर को सताने से भी बुध नाराज हो जाता है और अशुभ फल देने लगता है। बुध की अशुभता के कारण व्यक्ति का बौद्धिक विकास रूक जाता है। शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए अशुभ बुध विकट स्थितियां पैदा कर सकता है।

गुरु: अपने पिता, दादा, नाना को कष्ट देने अथवा इनके समान सम्मानित व्यक्ति को कष्ट देने एवं साधु संतों को सताने से गुरु अशुभ फल देने लगता है। जीवन में मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा के कारक ग्रह बृहस्पति के रूठ जाने से जीवन अंधकारमय होने लगता है। व्यक्ति को गंभीर बीमारियां घेरने लगती है और उसका जीवन पल-प्रतिपल कष्टकारी होने लगता है। धन हानि होने लगती है और उसका अधिकांश पैसा रोग में लगने लगता है।

   

शुक्र-शनि

शुक्र: अपने जीवनसाथी को कष्ट देने, किसी भी प्रकार के गंदे वस्त्र पहनने, घर में गंदे एवं फटे पुराने वस्त्र रखने से शुक्र अशुभ फल देता है। चूंकि शुक्र भोग-विलास का कारक ग्रह है अतः शुक्र के अशुभ फलों के परिणामस्वरूप व्यक्ति गरीबी का सामना करता है। जीवन के समस्त भोग-विलास के साधन उससे दूर होने लगते हैं। लक्ष्मी रूठ जाती है। वैवाहिक जीवन में स्थिति विवाह विच्छेद तक पहुंच जाती है। शुक्र की अशुभता के कारण व्यक्ति अपने से निम्न कुल की स्त्रियों के साथ संबंध बनाता है।

शनि: ताऊ एवं चाचा से झगड़ा करने एवं किसी भी मेहनतकश व्यक्ति को कष्ट देने, अपशब्द कहने एवं इसी के साथ शराब, मांस खाने से शनि देव अशुभ फल देते हैं। कुछ लोग मकान एवं दुकान किराये से लेने के बाद खाली नहीं करते अथवा उसके बदले पैसा मांगते हैं तो शनि अशुभ फल देने लगता है। शनि के अशुभ फल के कारण व्यक्ति रोगों से घिर जाता है। उसकी संपत्ति छिन जाती है और वह वाहनों के कारण लगातार दुर्घटनाग्रस्त होने लगता है।

   


राहु-केतु

राहु: सर्प की हत्या या उसे सताने, बड़े भाई का अपमान करने से, ननिहाल पक्ष वालों का अपमान करने से राहु अशुभ फल देता है। किसी मूक प्राणी, जानवर, पंछियों की हत्या करने, उन्हें पीटने, मारने से राहु का अशुभ परिणाम प्राप्त होता है। इससे व्यक्ति पर कोई कलंक लगता है उसे कारावास की सजा तक भोगना पड़ती है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी स्थायी नहीं हो पाता और उसे यहां-वहां भटकना पड़ता है।


केतु: भतीजे एवं भांजे का दिल दुखाने एवं उनका हक छीनने पर केतु अशुभ फल देना है। कुत्ते को मारने एवं किसी के द्वारा मरवाने पर, किसी भी मंदिर को तोड़ने अथवा ध्वजा नष्ट करने पर, इसी के साथ ज्यादा कंजूसी करने पर केतु अशुभ फल देता है। किसी से धोखा करने व झूठी गवाही देने पर भी राहु-केतु अशुभ फल देते हैं।


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नाथ सम्प्रदाय का परिचय

 




यह सम्प्रदाय विश्व का परम प्राचीन, उदार,

ऊँच-नीच की भावना से परे समतावादी,

एंव अवधूत अथवा योगियों का सम्प्रदाय है।

इसका आरम्भ आदिनाथ शिव से हुआ है और इसका वर्तमान रुप देने वाले योगाचार्य बालयति

जगतगुरु श्री गोरक्षनाथ भगवान शिव के ही 

अनादि स्वरूप है।

इनके प्रादुर्भाव और विलय का

कोई लेख अब तक प्राप्त नही हुआ।

पद्म, स्कन्द शिव ब्रह्मण्ड आदि पुराण, तंत्र महापर्व आदि तांत्रिक ग्रंथ बृहदारण्याक आदि उपनिषदों में तथा और

दूसरे प्राचीन ग्रंथ रत्नों में श्री जगतगुरु गोरक्षनाथ जी की कथायें बडे सुचारु रुप से मिलती है।

श्री नाथजी गोरक्ष ने चारो युगों में चार भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में प्रगट होकर 

योग मार्ग का प्रचार किया, और सामान्य मनुष्य, चक्रवर्ती सम्राटो और साथ ही अनेक दैवीय अवतारों को भी उपदेशित किया

. सतयुग में पंजाब के पेशावर में, त्रेता युग में गोरक्षपुर में, द्वापर युग में द्वारिका के आगे हुरभुज में और कलिकाल में काठियावाड की गोरखमढ़ी में प्रादर्भूत हुये थे. 

श्री गोरक्षनाथ वर्णाश्रम धर्म से परे पंचमाश्रमी अवधूत हुए है जिन्होने योग क्रियाओं द्वारा मानव शरीरस्थ महा शक्तियों का विकास करने के अर्थ संसार को उपदेश दिया और हठ योग की प्रक्रियाओं का प्रचार करके भयानक रोगों से बचने के अर्थ जन समाज को एक बहुत बड़ा साधन प्रदान किया।


श्री गोरक्षनाथ ने योग सम्बन्धी अनेकों ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे जिनमे बहुत से प्रकाशित हो चुके है और कई अप्रकाशित रुप में योगियों के आश्रमों में सुरक्षित हैं।

श्री गोरक्षनाथ की शिक्षा एंव चमत्कारों से प्रभावित होकर अनेकों बड़े-बड़े राजा इनसे दीक्षित हुए। उन्होंने अपने अतुल वैभव को त्याग कर निजानन्द प्राप्त किया तथा जन-कल्याण में अग्रसर हुए। इन राजर्षियों द्वारा बड़े-बड़े कार्य हुए।

श्री गोरक्षनाथ ने संसारिक और गुरु शिष्य परंपरा मर्यादा की रक्षा के अर्थ श्री मत्स्येन्द्रनाथ को अपना गुरु माना और चिरकाल तक इन दोनों में शंका समाधान के रुप में संवाद चलता रहा।


नाथ सम्प्रदाय मेंं प्रचलित नवनाथ ध्यान, वन्दना व स्तुति मंत्रों

जिन नामों का प्रचलन है और सम्प्रदाय के संतो, साधुओ और 

योगीजनो द्वारा जिन नामों का अपने योग ग्रन्थों मेंं वर्णन किया है वे नवनाथ क्रमष -

१- आदिनाथ शिव,

२- उदयनाथ पार्वती,

३- सत्यनाथ ब्रह्मा,

४- संतोषनाथ विष्णु,

५- अचल अचम्भेनाथ शेषनाग,

६- गजकंथडनाथ गणेश,

७- चौरंगी नाथ चन्द्रमा,

८- मत्स्येन्द्रनाथ माया स्वरूप,

९- गुरु गोरक्षनाथ शिव बाल स्वरूप.


भारत के प्रायः सभी प्रान्तों में योगी सम्प्रदाय के बड़े-बड़े वैभवशाली आश्रम है और उच्च कोटि के विद्वान इन आश्रमों के संचालक हैं।

श्री गोरक्षनाथ का नाम नेपाल प्रान्त में बहुत बड़ा था और अब तक भी नेपाल का राजा इनको प्रधान गुरु के रुप में मानते है और वहाँ पर इनके बड़े-बड़े प्रतिष्ठित आश्रम हैं। यहाँ तक कि नेपाल की राजकीय मुद्रा (सिक्के) पर श्री गोरक्ष का नाम है और वहाँ के निवासी गोरक्ष ही कहलाते हैं। काबुल- गान्धर सिन्ध, विलोचिस्तान, कच्छ और अन्य देशों तथा प्रान्तों में यहा तक कि मक्का मदीने तक

श्री गोरक्षनाथ ने दीक्षा दी थी और ऊँचा मान पाया था।


इस सम्प्रदाय में कई भाँति के गुरु होते हैं यथाः-

सदगुरु, चोटी गुरु, चीरा गुरु,

उपदेशी गुरु, भस्मी गुरु, लंगोट गुरु आदि।


श्री गोरक्षनाथ ने कर्ण छेदन- या चीरा चढ़ाने की प्रथा प्रचलित की थी, यह एक योगिक क्रिया के साथ दिव्य साधना रूप परीक्षा भी है,

कान चिराने को तत्पर होना कष्ट सहन की शक्ति, दृढ़ता और वैराग्य का बल प्रकट करता है।

श्री गुरु गोरक्षनाथ ने यह प्रथा प्रचलित करके अपने अनुयायियों शिष्यों के लिये एक कठोर परीक्षा नियत कर दी।

कान फडाने के पश्चात मनुष्य बहुत से सांसारिक झंझटों से स्वभावतः या लज्जा से बचता हैं।

चिरकाल तक परीक्षा करके ही कान फाड़े जाते थे और अब भी ऐसा ही होता है।

बिना कान चिरे साधु को 'ओघड़' कहते है और इसका आधा मान होता है।


भारत में श्री गोरक्षनाथ जी के नाम पर कई विख्यात स्थान हैं और इसी नाम पर कई महोत्सव मनाये जाते हैं।

यह सम्प्रदाय अवधूत सम्प्रदाय है।


अवधूत शब्द का अर्थ होता है "माया प्रपंच से रहित"

जैसा कि " सिद्ध सिद्धान्त पद्धति" में लिखा हैः-


सर्वान् प्रकृति विकारन वधु नोतीत्यऽवधूतः।

अर्थात् जो समस्त प्रकृति विकारों को त्याग देता है

या झाड़ देता है वह अवधूत है। 


पुनश्चः-

वचने वचने वेदास्तीर्थानि च पदे पदे।

इष्टे इष्टे च कैवल्यं सोऽवधूतः श्रिये स्तुनः।

एक हस्ते धृतस्त्यागो भोगश्चैक करे

स्वयम्अलिप्तस्त्याग भोगाभ्यां सोऽवधूतः श्रियस्तुनः॥

उपर्युक्त लेखानुसार इस सम्प्रदाय में नव नाथ पूर्ण अवधूत हुए थे और अब भी अनेक अवधूत विद्यमान है।


नाथ योगी अलख (अलक्ष) शब्द से अपने

इष्ट देव का ध्यान करते है।

परस्पर आदेश शब्द से अभिवादन करते हैं।

अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या परम पुरुष होता है जिसका वर्णन वेद और उपनिषद आदि में

किया गया है।


आत्मेति परमात्मेति जीवात्मेति विचारणे।

त्रयाणामैकयसंभूतिरादेश इति किर्तितः।।

आदेश इति सद्‌वाणिं सर्वद्वंद्व्‌क्षयापहाम्‌।

यो योगिनं प्रतिवदेत्‌ सयात्यात्मानमैश्वरम्‌।।

- सिद्ध सिद्धांतपद्धति


"आ" आत्मा

"दे" देवात्मा/परमात्मा

"श" शरीरात्मा/जीवात्मा

आत्मा, परमात्मा और जीवात्मा की अभेदता ही सत्य है, इस सत्य का अनुभव या दर्शन ही “आदेश कहलाता है. व्यावहारिक चेतना की आध्यात्मिकता प्रबुद्धता जीवात्मा और आत्मा तथा परमात्मा की अभिन्नता के साक्षात्कार मे निहितहै. इन तथ्यों का ध्यान रखते हुए जब योगी एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं अथवा गुरुपद मे प्रणत होते हैं तो “आदेश-आदेश” का उच्चारण का जीवात्मा, विश्वात्मा और परमात्मा के तादात्म्य का स्मरण करते हैं.


एक और रूप में "आदेश" का अर्थ

= आदि+ ईश, आदि से आशय है महान या प्रथम,

और ईश से आशय ईश्वर अथवा देवता से है,

अर्थात प्रथम देव या "महादेव" आदिनाथ भगवान शिव द्वारा प्रवर्तित होने के कारण "नाथ सम्प्रदाय" के योगियो तथा अनुयायिओ द्वारा "आदेश" का

संबोधन किया जाता है।


नाथ योगी अपने गले में काली ऊन का

तीन तंतुओं एक जनेऊ रखते है।

गले में एक लकड़ी अथवा धातु की

नादी और पवित्री रखते है।

इन दोनों को "नादी जनेऊ" भी कहते है,

नाथ योगी मूलतः शैव हैं

अर्थात शिव की उपासना करते है।

षट् दर्शनों में योग का स्थान अत्युच्च है और नाथ योगी,

योग मार्ग पर चलते हैं अर्थात योग क्रिया करते है जो कि आत्म दर्शन का प्रधान साधन है।

जीव ब्रह्म की एकता का नाम योग है।

चित्त वृत्ति के पूर्ण निरोध का योग कहते है।


नाथ संप्रदाय के योगी एवं अनुयायी मुख्यतः बारह शाखाओं में विभक्त हैं, जिसे बारह पंथ कहते हैं ।

इन बारह पंथों के कारण नाथ संप्रदाय को ‘बारह-पंथी’ योगी भी कहा जाता है । प्रत्येक पंथ का एक-एक विशेष स्थान है, जिसे नाथ लोग अपना पुण्य क्षेत्र मानते हैं । प्रत्येक पंथ एक पौराणिक देवता अथवा सिद्ध योगी को अपना आदि प्रवर्तक मानता है l


ॐ नमः शिवाय


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भर्तृहरि

 

भर्तृहरि ने घर छोड़ा। देखा लिया सब। पत्‍नी का प्रेम, उसका छलावा, अपने ही हाथों आपने छोटे भाई विक्रमादित्‍य की हत्‍या का आदेश। मन उस राज-पाट से वैभव से थक गया। उस भोग में केवल पीड़ा और छलावा ही मिला। सब कुछ को खूब देख-परख कर छोड़ा। बहुत कम लोग इतने पक कर छोड़ते हैं, इस संसार को, जितना भर्तृहरि ने छोड़ा है। अनूठा आदमी रहा होगा भर्तृहरि, खूब भोगा। ठीक-ठीक उपनिषद के सूत्र को पूरा किया: ‘’तेन त्‍यक्‍तेन भुंजीथा:‘’_ खूब भोगा।* 

   *एक-एक बूँद निचोड़ ली संसार की। लेकिन तब पाया कि कुछ भी नहीं है। अपने ही सपने है, शून्‍य में भटकना है।*

   भोगने के दिनों में श्रृंगार पर अनूठा शास्‍त्र लिखा, *"श्रृंगार-शतक"*, कोई मुकाबला नहीं। बहुत लोगों ने श्रृंगार की बातें लिखी हैं। पर भर्तृहरि जैसा स्‍वाद किसी ने श्रृंगार का कभी नहीं लिखा। भोग के अनुभव से श्रृंगार के शास्‍त्र का जन्‍म हुआ। यह कोई कोरे विचारक की बकवास न थी। एक अनुभोक्‍ता की अनुभव-सिद्ध वाणी थी। *श्रृंगार-शतक बहुमूल्‍य है।* संसार का सब सार उसमें है।

  लेकिन फिर आखिर में पाया वह भी व्‍यर्थ हुआ। छोड़-कर जंगल चले गए। फिर _*"वैराग्‍य-शतक"*_ लिखा, फिर वैराग्‍य का शास्‍त्र लिखा। उसका भी कोई मुकाबला नहीं है। भोग को जाना तो भोग की पूरी बात की, फिर वैराग्‍य को जाना तो वैराग्‍य की पूरी बात की। 


   जंगल में एक दिन बैठे हैं। अचानक आवाज आई। दो घुड़सवार भागते हुए चले आ रहे है। दोनों दिशाओं से। चट्टान पर बैठे है, भर्तृहरि देखते है उस छोटी सी पगडंडी की ओर। घोड़ों की हिनहिनाहट से उसकी आँखें खुल गई। सामने सूरज डूबने की तैयारी कर रहा है। उसकी सुनहरी किरणें पेड़-पत्‍ते, पगडंडी जिस को भी छू रही है, वह स्वर्णिम लग रहा है। पर अचानक तीनों की निगाह उस चमकदार चीज पर एक साथ पड़ी। दोनों घुड़सवारों और भर्तृहरि की। 


           एक बहुमूल्य हीरा, धूल में पड़ा हुआ भी चमक रहा है। हीरे की चमक अदभुत थी! हजारों हीरे देखे थे भर्तृहरि ने, पर यह अनोखा ही था। वासना एक क्षण में उस हीरे पर गई। और जैसे ही भर्तृहरि ने अपनी वासना को देखा, वह तत्क्षण लौट आई। एक क्षण में मन भूल गया सारे अनुभव विषाद के। वह सारा अनुभव भोग का। वह तिक्‍तता, वह वासना उठ गई। 

   एक क्षण को ऐसा लगा कि अब उठे-उठे, और उसी क्षण ख्‍याल आ गया अरे पागल! क्‍या कर रहा है!! ये सब छोड़ कर तू आया है!!! देखा है जीवन में इसके महत्‍व को, भोगी है पीड़ा उस में रह कर। फिर उसी में जाना चाहता है। 

पर ये बातें उसके मन को मथती, कि सामने से आते दो घुड़सवार आ कर उस हीरे के दोनों ओर खड़े हो गये। दोनों ने एक दूसरे को देखा और तलवारें निकाल ली। दोनों ने कहा मेरी नजर पहले पड़ी थी इस लिए यह हीरा मेरा है। दूसरा भी यही कह रहा था। अब बातों से निर्णय होना असम्‍भव था। तलवारें खिंच गयीं। क्षण भर में दो लाशें पड़ी थी, तड़पती, लहू-लुहान। और हीरा अपनी जगह पड़ा था।

उधर भर्तृहरि अपनी जगह केवल देखते रह गये। एक निर्जीव और एक जीवित। सूरज की किरणें अब भी चमक रही थी, पर कुछ कोमल हो गई थी। हीरा बेचारा यह जान भी नहीं पाया कि क्षण भर में उसके आस-पास क्‍या घट गया! 

सब कुछ हो गया वहाँ। एक आदमी का संसार उठा और वैराग्‍य हो गया। दो आदमी का संसार उठा और मौत हो गई। दो आदमी अभी-अभी जीवित थे, उनकी धमनियों में खून प्रवाहित हो रहा था। श्वांस चल रही थी, दिल धड़क रहा था, मन सपने बुन रहा था। पर क्षण में प्राण गँवा दिये एक पत्‍थर के पीछे। और बेचारा निर्दोष पत्‍थर जानता भी नहीं कि ये सब उसके कारण हो रहा है। 

  *एक आदमी वहाँ बैठा-बैठा जीवन के सारे अनुभव से गुजर गया। भोग के और वैराग्‍य के; और पार हो गया! साक्षी भाव जाग गया उस का!!*


       भर्तृहरि ने आँखें बन्द कर ली। और वे फिर ध्‍यान में डूब गए। जीवन का सबसे गहरा सत्‍य क्‍या है? तुम्‍हारा चैतन्‍य। सारा खेल वहाँ है। सारे खेल की जड़ें वहाँ है। सारे! संसार के सूत्र वहाँ है।


ओशो - "एस धम्‍मो सनंतनो"

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प्राणायाम

 


हमारे फेफड़े में कोई छह हजार छिद्र होते हैं। साधारणतः जो हम श्वास लेते हैं, वह मुश्किल से हजार छिद्रों तक पहुंचती है, आम तौर से छह सौ छिद्रों तक पहुंचती है। अगर हम दौड़ते भी हैं और तेजी से भी श्वास लेते हैं, व्यायाम भी करते हैं तो भी श्वांस दो हजार छिद्रों से ज्यादा नहीं पहुंचती। इसका मतलब हुआ कि हमारे फेफड़ों के चार हजार छिद्र सदा ही कार्बन डाइआक्साइड की गंदगी से भरे रहते हैं। शायद आपको पता न हो कि हमारे फेफड़ों में जितनी ज्यादा कार्बन डाइआक्साइड होगी उतना ही तमस हमारे चित्त में होगा। इसलिए दिन को सोना मुश्किल होता है, रात को सोना आसान हो जाता है, क्योंकि रात सूरज के ढल जाने के बाद हवाओं में कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है, और आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। सुबह सारी दुनिया जाग जाती है, वृक्ष जागते हैं, पशु जागते हैं, पौधे जागते हैं। कोई अलार्म घड़ियां उनके पास नहीं हैं। कैसे जाग जाते हैं, सूरज के आने की घड़ी भर पहले। सारा जगत कैसे उठने लगता है, बात क्या है? यह नींद टूटने का क्या कारण है? जैसे ही वातावरण में आक्सीजन की मात्रा बढ़नी शुरू होती है, नींद टूटनी शुरू हो जाती है। क्योंकि नींद के लिए कार्बन डाइआक्साइड का बहुत होना जरूरी है, वह जैसे ही कम हुआ कि नींद गई। नींद जितनी ज्यादा आपको चाहिए उतना कार्बन चाहिए।

अब ध्यान का जो प्रयोग है, वह नींद को तोड़ने का प्रयोग है। अंततः समक्ष मूच्र्छा टूट जाए इसलिए दस मिनट तक भस्त्रिका का प्रयोग करें। इतने जोर से श्वास फेंकनी है कि पूरे फेफड़े अपनी गंदगी को बाहर कर दें और नयी हवाओं से भर जाए। अगर पूरा फेफड़ा नयी हवाओं से भर जाए तो आपके भीतर शक्ति का नया जागरण शुरू हो जाएगा जो कि वर्षोें भी साधारण बैठ कर नहीं हो सकता है। मनुष्य के भीतर जैसे मनुष्य के जागने के नियम हैं, कि सुबह सूरज उगने पर हवाओं में आक्सीजन बढ़ने पर जागना शुरू होता है, ऐसी ही हमारी अंतर-चेतना भी, अगर फेफड़ों में आक्सीजन की मात्रा बढ़ा दी जाए तो जागना शुरू हो जाती है। अब जिस दिन विज्ञान और सफल हो सकेगा, और जिस दिन हम धर्म में विज्ञान का प्रयोग कर सकेंगे  I


चालीस मिनट मनुष्य के मन की फैलने की क्षमता की सीमा है, इसलिए चालीस मिनट। और चालीस मिनट में जो मैंने चार, दस-दस मिनट के विभाजन किए हैं, उन्हें भी थोड़ा समझ लेना उपयोगी है। दस मिनट तक भस्त्रिका का प्रयोग, भस्त्रिका का अर्थ है फेफड़ों को इस भांति चलाना जैसे कि लोहार अपनी धौंकनी को चलाता है। वह इतनी तेजी से श्वास को बाहर और भीतर फेंकना है, कि भीतर की सारी गंदी वायु बाहर फेंकी.  


काम का अंत है, सीमा है; प्रेम का कोई अंत नहीं, कोई सीमा नहीं! प्रेम आदि-अनादि है। प्रेम जैसा पहले दिन होता है, वैसा ही अंतिम दिन भी होगा! जो चुक जाए, उसे तुम प्रेम ही मत समझना; वह वासना रही होगी। जिसका अंत आ जाए, वह शरीर से संबंधित है! आत्मा से जिस चीज का भी संबंध है, उसका कोई अंत नहीं है।


अगर मंजिल हो तो मृत्यु हो जाएगी! प्रेम का जो अधूरापन है, वह उसकी शाश्वतता है। इसे ध्यान में रखना कि जो भी चीज पूरी हो जाती है, वह मर जाती है। पूर्णता मृत्यु है! सिर्फ वही जी सकता है शाश्वत, जो शाश्वत रूप से अपूर्ण है, अधूरा है, आधा है; और तुम कितना ही भरो, वह अधूरा रहेगा, आधा होना उसका स्वभाव है।


तुम कितने ही तृप्त होते जाओ, फिर भी तुम पाओगे कि हर तृप्ति और अतृप्त कर जाती है। यह ऐसा जल नहीं है कि तुम पी लो और तृप्त हो जाओ, यह ऐसा जल है कि तुम्हारी प्यास को और बढ़ाएगा। इसलिए प्रेमी कभी तृप्त नहीं होता, और इसीलिए उसके आनंद का कोई अंत नहीं है। क्योंकि आनंद का वहीं अंत हो जाता है, जहां चीजें पूरी हो जाती हैं। शरीर भी मिटता है, मन भी मिटता है; पर आत्मा तो चलती चली जाती है, निरन्तर, लगातार! वह यात्रा अनंत की है, कोई मंजिल नहीं है l


"लोग खुशी चाहते हैं - लेकिन सिर्फ चाहने से, तुम इसे प्राप्त नहीं कर सकते। चाहना काफी नहीं है। तुम्हें अपने दुख की घटना को देखना होगा, तुम इसे कैसे बनाते हैं - सबसे पहले तुम कैसे दुखी हो गए हो, कैसे तुम हर दिन दुखी होते चले जाते हैं - तुम्हारी तकनीक क्या है? क्योंकि खुशी एक प्राकृतिक घटना है - अगर कोई खुश है तो उसमें कोई कुशलता नहीं है, अगर कोई खुश है तो उसे खुश होने के लिए किसी विशेषज्ञता की आवश्यकता नहीं है।


“जानवर खुश हैं, पेड़ खुश हैं, पक्षी खुश हैं। आदमी को छोड़कर पूरा अस्तित्व खुश है। केवल मनुष्य इतना चालाक है कि वह दुख पैदा करता है - कोई और इतना कुशल नहीं मालूम होता। इसलिए जब तुम खुश होते हो तो यह सरल घटना है।


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श्रीपुरम मंदिर

 

..मित्रो 15000 KG शुद्ध सोने से बना --

श्रीपुरम_मंदिर


100 एकड़ से ज़्यादा क्षेत्र में फैला यह मंदिर चारों तरफ से हरियाली से घिरा हुआ है, ओर हरियाली के बीच बना है, पंद्रह हजार किलो शुद्ध सोने से बना मंदिर ।। अमृतसर स्थित पवित्र स्थल स्वर्ण मन्दिर (हरि मन्दिर) में भी 750 किलो सोना लगा  है, लेकिन श्रीपुरम मंदिर में उससे कई गुणा ज़्यादा सोना लगा है ।  यह मंदिर माता लक्ष्मी का निवास स्थल है ।। अगर ऊपर से इस मंदिर को देखा जाए, तो इसकी आकृति स्टार जैसी है ।। इतनी समृद्ध विरासत का मालिक भारत_देश , अहिस्ता अहिस्ता लूट खसोट  की राजनीती का शिकार हो गया। अभी भी समय है जाति पाति के आडम्बर से निकल जाईये। ये एक सोची समझी और बहुत ही कूटनीतिक चाल थी अधर्मियो की जिसमे वो शत प्रतिशत सफल रहे। समय कभी भी 1 सा नही रह्ता। आज फिर से बदलाव आया है। एक सूत्र मे बन्ध जाईये। कोई कैसा भी जहर घोले आपके जहन मे उस स्थिति मे pushpendrakulshresthaa 15000 KG शुद्ध सोने से बना 


100 एकड़ से ज़्यादा क्षेत्र में फैला यह मंदिर चारों तरफ से हरियाली से घिरा हुआ है, ओर हरियाली के बीच बना है, पंद्रह हजार किलो शुद्ध सोने से बना मंदिर ।। अमृतसर स्थित पवित्र स्थल स्वर्ण मन्दिर (हरि मन्दिर) में भी 750 किलो सोना लगा  है, लेकिन श्रीपुरम मंदिर में उससे कई गुणा ज़्यादा सोना लगा है ।  यह मंदिर माता लक्ष्मी का निवास स्थल है ।। अगर ऊपर से इस मंदिर को देखा जाए, तो इसकी आकृति स्टार जैसी है ।। इतनी समृद्ध विरासत का मालिक #भारत_देश , अहिस्ता अहिस्ता लूट खसोट  की राजनीती का शिकार हो गया। अभी भी समय है जाति पाति के आडम्बर से निकल जाईये। ये एक सोची समझी और बहुत ही कूटनीतिक चाल थी अधर्मियो की जिसमे वो शत प्रतिशत सफल रहे। समय कभी भी 1 सा नही रह्ता। आज फिर से बदलाव आया है। एक सूत्र मे बन्ध जाईये। कोई कैसा भी जहर घोले आपके जहन मे उस स्थिति मे अपनी अंतरात्मा और गहरे चिंतन मनन के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचिए।



श्रीपुरम मंदिर वेल्लोर तमिलनाडु ( भारत ) अंतरात्मा और गहरे चिंतन मनन के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचिए।



श्रीपुरम मंदिर वेल्लोर तमिलनाडु ( भारत )


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Sab kuch

माँ पर शायरी

  "माँ के कदमों में बसी जन्नत की पहचान, उसकी दुआओं से ही रोशन है हर इंसान। जिंदगी की हर ठोकर से बचा लेती है, माँ की ममता, ये दुन...