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श्री अष्टलक्ष्मी माला मंत्र

 अष्टलक्ष्मीमालामंत्र        



   विनियोगः-अस्य श्री अष्टलक्ष्मी माला मन्त्रस्य भृगुऋषि: अनुस्टुप छंद: महालक्ष्मी देवताः श्री बीजं ह्रीं शक्ति ऐं कीलकं श्री अष्टलक्ष्मी प्रसाद प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।।                        


ॐ नमो भगवत्यै लोक वशीकर मोहिंन्यै ॐ ईं ऐं क्षीं श्री आदिलक्ष्मी संतानलक्ष्मी गजलक्ष्मी धनलक्ष्मी धान्यलक्ष्मी विजयलक्ष्मी वीरलक्ष्मी ऐश्वर्यलक्ष्मी अष्टलक्ष्मी इत्यादय: मम हृदये दृढ़तयां स्थिता सर्वलोक वशीकराय सर्वराज्य वशीकराय सर्वजन वशीकराय सर्वकार्यं सिद्धिदे कुरु कुरु सर्वारिष्टं जहि जहि सर्व सौभाग्यं कुरु कुरु ॐ नमो भगवत्यै श्री महालक्ष्मयै ह्रीं फट् स्वाहा।      


विधि विधान:-माला मंन्त्र एक माला (108बार) ही करने होते हैं शुक्रवार/पंचमी/पूर्णिमा को घी के दीपक जलाकर उसमें थोड़ा गुलाब इत्र डालकर कमलगट्टे की माला से,या कमल गट्टे की माला पहनकर् सफेद या लालआसन पर पश्चिम दिशा की तरफ मुख करके शाम 6 से 8 में संकल्प करके,गुरुदेव गणपति को प्रणाम करें। लक्ष्मी नारायण या गुरुदेव के यंत्र या चित्र का पंचोपचार पूजन गंध अक्षत गुलाब पुष्प धूप दीप एवं नैवैद्य(खीर,या दूध की मिठाई ) चढ़ा कर साधना करें।


विशेष:-ज्यादा समस्या में 21 दिन लगातार साधना करें।साधना की सफलता के लिए गुरु मंत्र की एक माला पहले और साधना के बाद जरुर करें।

श्रीहरिहराष्टोत्तर शतनाम_स्तोत्रम


 श्रीहरिहराष्टोत्तर शतनाम_स्तोत्रम

   “हरि” का अर्थ विष्णु भगवान से है और “हर” का अर्थ शिव से है। इस स्तोत्र में दोनों का वर्णन किया गया है। 


गोविन्दमाधवमुकुन्दहरेमुरारे ! शंभो ! शिवेश ! शशिशेखर ! शूलपाणे !


दामोदराच्युत ! जनार्दन ! वासुदेव ! त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ।।1।।


गंगाधरान्धकरिपो ! हर ! नीलकंठ ! वैकुंठ ! कैटभरिपो ! कमठाब्जपाणे !


भूतेश ! खण्डपरशो ! मृड ! चण्डिकेश !  त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ।।2।।


विष्णो ! नृसिंह ! मधुसूदन ! चक्रपाणे ! गौरीपते ! गिरिश ! शंकर ! चन्द्रचूड !


नारायणासुरनिबर्हण ! शांर्गपाणे ! त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ।।3।।


मृत्युंजयोग्रविषमेक्षण ! कामशत्रो ! श्रीकान्त ! पीतवसनाम्बुदनीलशौरे !


ईशान ! कृत्तिवसन ! त्रिदशैकनाथ ! त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ।।4।।


लक्ष्मीपते ! मधुरिपो ! पुरुषोत्तमाद्य ! श्रीकंठ ! दिग्वसन ! शांतपिनाकपाणे !


आनंंदकंद ! धरणीधर ! पद्मनाभ ! त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ।।5।।


सर्वेश्वर ! त्रिपुरसूदन ! देवदेव ! ब्रह्मण्यदेव ! गरुड़ध्वज ! शंखपाणे !


त्र्यक्षोरगाभरणबालमृगांकमौले ! त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ।।6।।


श्रीरामराघवरमेश्वर ! रावणारे ! भूतेश ! मन्मथरिपो ! प्रमथाधिनाथ !


चाणूरमर्दनहृषीकपते ! मुरारे ! त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ।।7।।


शूलिन ! गिरिश ! रजनीशकलावंतस ! कंसप्रणासन ! सनातन ! केशिनाश !


भर्ग ! त्रिनेत्र ! भव ! भूतपते ! पुरारे ! त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ।।8।।


गोपीपते ! यदुपते ! वसुदेवसूनो ! कर्पूरगौर ! वृषभध्वज ! भालनेत्र !


गोवर्द्धनोद्धरण ! धर्मधुरीण ! गोप ! त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ।।9।।


स्थाणो ! त्रिलोचन ! पिनाकधर ! स्मरारे ! कृष्णानिरुद्ध ! कमलाकर ! कल्मषारे !


विश्वेश्वर ! त्रिपथगार्द्रजटाकलाप ! त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ।।10।।


अष्टोत्तराधिकशतेन  सुचारुनाम्नां संदर्भितां ललितरत्नकदम्बकेन ।


सन्नायकां दृढगुणां द्विजकंठगां य:कुर्यादिमां स्रजमहो स यमं न पश्येत ।


इत्थं द्विजेन्द्रनिजभृत्यगणान सदैवसंशिक्षयेदवनिगान्सहि धर्मराज: ।


अन्येsपिे ये हरिहरांकधराधरायां ते दूरत:पुनरहो परिपर्जनीया:  ।।


अगस्तिउवाच

यो धर्मराजरचितां ललितप्रबन्धां नामावलीं सकलकल्मषबीजहन्त्रीम ।


धीरोsत्र कौस्तुभभृत: शशिभूषणस्य नित्यं जपेत्स्तनरसं स पिबेन्न मातु : ।।


इति श्रृण्वन्कथां रम्यां शिवशर्मा प्रियेsनघाम ।

प्रहृष्टवक्त्र: पुरतो ददर्शाप्सरसां पुरीम।।


।।श्री हरिहराष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम समाप्तम।। 


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माँ पर शायरी

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