गोवर्धन पर्वत धीरे धीरे छोटा होता जा रहा है।
गोवर्धन पर्वत को लेकर धार्मिक मान्यता है कि यह पर्वत प्रतिदिन तिल भर घटता जाता है।
यह केवल मान्यता नहीं है बल्कि *विशेषज्ञों ने भी बताया है कि 5 हजार साल पहले गोवर्धन पर्वत कई हज़ार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब यह पर्वत केवल 30 मीटर ही रह गया है।*
एक रोचक कहानी के अनुसार गोवर्धन पर्वत के प्रतिदिन घटने का कारण ऋषि पुलस्त्य का शाप है। कथा के अनुसार -
एक बार ऋषि पुलस्त्य गिरिराज पर्वत के पास से गुजर रहे थे तभी उनको इसकी सुंदरता इतनी पसंद आई कि वे मंत्रमुग्ध हो गए।
ऋषि पुलस्त्य ने द्रोणांचल पर्वत से निवेदन किया - मैं काशी में रहता हूँ। आप अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दीजिए। मैं उसको काशी में स्थापित करूंगा और वहीं रहकर पूजा करूँगा।
पिता द्रोणांचल पुत्र गोवर्धन के विछोह से दुःखी हुए।
गोवर्धन ने कहा कि, हे महात्मा! मैं आपके साथ चलूँगा लेकिन मेरी एक शर्त है। शर्त यह है कि आप मुझे सबसे पहले जहाँ भी रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाऊँगा।
पुलस्त्य ने गोवर्धन की शर्त मान ली।
गोवर्धन ने ऋषि से कहा कि, मैं दो योजन ऊँचा और पाँच योजन चौड़ा हूँ, आप मुझे काशी कैसे लेकर जाएँगे?
ऋषि ने कहा कि, मैं अपने तपोबल के माध्यम से तुम्हें अपनी हथेली पर उठाकर ले जाऊँगा।
ऋषि पर्वत उठाए चलने लगे। रास्ते में ब्रज आया, तब गोवर्धन पर्वत को दिखा कि यहाँ पर भगवान कृष्ण अपने बाल्यकाल में लीला कर रहे हैं। बड़ा मनोहारी दृश्य और मनभावन स्थान है। उनकी वहाँ ठहरने की इच्छा हुई। गोवर्धन ऋषि के हाथों में अपना भार बढ़ाने लगे, जिससे ऋषि ने आराम और साधना के लिए पर्वत को नीचे रख दिया। ऋषि पुलस्त्य यह बात भूल गए थे कि उन्हें गोवर्धन पर्वत को कहीं पर भी रखना नहीं है।
साधना के बाद ऋषि ने पर्वत को उठाने का बहुत प्रयास किया लेकिन पर्वत हिला तक नहीं। इससे ऋषि पुलस्त्य बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने शाप दे दिया कि, तुमने मेरे मनोरथ को पूर्ण नहीं होने दिया इसलिए अब प्रतिदिन तिल भर तुम्हारा क्षरण होता रहेगा।
माना जाता है कि उसी समय से गिरिराज पर्वत प्रतिदिन घट रहे हैं और कलयुग के अंत तक पूरी तरह विलीन हो जाएँगे।
हरे कृष्ण
जय श्री गिरिराज जी
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