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ब्रह्मचर्य - वीर्य रक्षण - योग-साधना
ब्रह्मचर्य - वीर्य रक्षण - योग-साधना"।
1. वीर्य के बारें में जानकारी -
आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शरीर में सात धातु होते हैं- जिनमें अन्तिम धातु वीर्य (शुक्र) है। वीर्य ही मानव शरीर का सारतत्व है।
40 बूंद रक्त से 1 बूंद वीर्य होता है।
एक बार के वीर्य स्खलन से लगभग 15 ग्राम वीर्य का नाश होता है । जिस प्रकार पूरे गन्ने में शर्करा व्याप्त रहता है उसी प्रकार वीर्य पूरे शरीर में सूक्ष्म रूप से व्याप्त रहता है।
सर्व अवस्थाओं में मन, वचन और कर्म तीनों से मैथुन का सदैव त्याग हो, उसे ब्रह्मचर्य कहते है ।।
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2. वीर्य को पानी की तरह रोज बहा देने से नुकसान -
शरीर के अन्दर विद्यमान ‘वीर्य’ ही जीवन शक्ति का भण्डार है।
शारीरिक एवं मानसिक दुराचर तथा प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक मैथुन से इसका क्षरण होता है। कामुक चिंतन से भी इसका नुकसान होता है।
मैथून के द्वारा पूरे शरीर में मंथन चलता है और शरीर का सार तत्व कुछ ही समय में बाहर आ जाता है।
रस निकाल लेने पर जैसे गन्ना छूंट हो जाता है कुछ वैसे ही स्थित वीर्यहीन मनुष्य की हो जाती है। ऐसे मनुष्य की तुलना मणिहीन नाग से भी की जा सकती है। खोखला होता जाता है इन्सान ।
स्वामी शिवानंद जी ने मैथुन के प्रकार बताए हैं जिनसे बचना ही ब्रह्मचर्य है -
1. स्त्रियों को कामुक भाव से देखना।
२. सविलास की क्रीड़ा करना।
3. स्त्री के रुप यौवन की प्रशंसा करना।
4. तुष्टिकरण की कामना से स्त्री के निकट जाना।
5. क्रिया निवृत्ति अर्थात् वास्तविक रति क्रिया।
इसके अतिरिक्त विकृत यौनाचार से भी वीर्य की भारी क्षति हो जाती है। हस्तक्रिया आदि इसमें शामिल है।
शरीर में व्याप्त वीर्य कामुक विचारों के चलते अपना स्थान छोडऩे लगते हैं और अन्तत: स्वप्रदोष आदि के द्वारा बाहर आ जाता है।
ब्रह्मचर्य का तात्पर्य वीर्य रक्षा से है। यह ध्यान रखने की बात है कि ब्रह्मचर्य शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार से होना जरूरी है। अविवाहित रहना मात्र ब्रह्मचर्य नहीं कहलाता।
धर्म कर्तव्य के रूप में सन्तानोत्पत्ति और बात है और कामुकता के फेर में पडक़र अंधाधुंध वीर्य नाश करना बिलकुल भिन्न है।
मैथुन क्रिया से होने वाले नुकसान निम्रानुसार है-
* शरीर की जीवनी शक्ति घट जाती है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
* आँखो की रोशनी कम हो जाती है।
* शारीरिक एवं मानसिक बल कमजोर हो जाता है।
* जिस तरह जीने के लिये ऑक्सीजन चाहिए वैसे ही ‘निरोग’ रहने के लिये ‘वीर्य’।
* ऑक्सीजन प्राणवायु है तो वीर्य जीवनी शक्ति है।
* अधिक मैथुन से स्मरण शक्ति कमजोर हो जाता है।
* चिंतन विकृत हो जाता है।
वीर्यक्षय से विशेषकर तरूणावस्था में अनेक रोग उत्पन्न होते हैं -
चेहरे पर मुँहासे , नेत्रों के चतुर्दिक नीली रेखाएँ, दाढ़ी का अभाव, धँसे हुए नेत्र, रक्तक्षीणता से पीला चेहरा, स्मृतिनाश, दृष्टि की क्षीणता, मूत्र के साथ वीर्यस्खलन, दुर्बलता, आलस्य, उदासी, हृदय-कम्प, शिरोवेदना, संधि-पीड़ा, दुर्बल वृक्क, निद्रा में मूत्र निकल जाना, मानसिक अस्थिरता, विचारशक्ति का अभाव, दुःस्वप्न, स्वप्नदोष व मानसिक अशांति।
अगर ग्रुप में किसी भाई को ये समस्याएँ हैं तो उपाय भी लिख रहा हूँ -
लेटकर श्वास बाहर निकालें और अश्विनी मुद्रा अर्थात् 30-35 बार गुदाद्वार का आकुंचन-प्रसरण श्वास रोककर करें।
ऐसे एक बार में 30-35 बार संकोचन विस्तरण करें। तीन चार बार श्वास रोकने में 100 से 120 बार हो जायेगा।
यह ब्रह्मचर्य की रक्षा में खूब मदद करेगी। इससे व्यक्तित्व का विकास होगा ही, व ये रोग भी दूर होंगे समय के साथ ।।
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3. वीर्य रक्षण से लाभ -
शरीर में वीर्य संरक्षित होने पर आँखों में तेज, वाणी में प्रभाव, कार्य में उत्साह एवं प्राण ऊर्जा में अभिवृद्धि होती है।
ऐसे व्यक्ति को जल्दी से कोई रोग नहीं होता है उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है ।
पहले के जमाने में हमारे गुरुकुल शिक्षा पद्धति में ब्रह्मचर्य अनिवार्य हुआ करता था। और उस वक्त में यहाँ वीर योद्धा, ज्ञानी, तपस्वी व ऋषि स्तर के लोग हुए|
ऋषि दयानंद ने कहा ब्रह्मचर्य ब्रत का पालन करने बाले ब्यक्ति का अपरिमित शक्ति, प्राप्त होता है एक ब्रह्मचारी संसार का जितना उपकार कर सकता है दूसरा कोई नही कर सकता.
भगवान बुद्ध ने कहा है - ‘‘भोग और रोग साथी है और ब्रह्मचर्य आरोग्य का मूल है।’’
स्वामी रामतीर्थ ने कहा है - ‘‘जैसे दीपक का तेल-बत्ती के द्वारा ऊपर चढक़र प्रकाश के रूप में परिणित होता है, वैसे ही ब्रह्मचारी के अन्दर का वीर्य सुषुम्रा नाड़ी द्वारा प्राण बनकर ऊपर चढ़ता हुआ ज्ञान-दीप्ति में परिणित हो जाता है।
पति के वियोग में कामिनी तड़पती है और वीर्यपतन होने पर योगी पश्चाताप करता है।
भगवान शंकर ने कहा है-
'इस ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही मेरी ऐसी महान महिमा हुई है।'
कुछ उपाय -
ब्रह्मचर्य जीवन जीने के लिये सबसे पहले ‘मन’ का साधने की आवश्यकता है।
भोजन पवित्र एवं सादा होना चाहिए, सात्विक होना चाहिए।
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1. प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाएँ।
2. तेज मिर्च मसालों से बचें। शुद्ध सात्विक शाकाहारी भोजन करें।
3. सभी नशीले पदार्थों से बचें।
4. गायत्री मन्त्र या अपने ईष्ट मन्त्र का जप व लेखन करें।
5. नित्य ध्यान (मेडिटेशन) का अभ्यास करें।
6. मन को खाली न छोड़ें किसी रचनात्मक कार्य व लक्ष्य से जोड़ रखें।
7. नित्य योगाभ्यास करें। निम्न आसन व प्राणायाम अनिवार्यत: करें-
आसन-पश्चिमोत्तासन, सर्वांगासन, भद्रासन प्राणायाम- भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम विलोम।
जो हम खाना खाते हैं उससे वीर्य बनने की काफी लम्बी प्रक्रिया है।खाना खाने के बाद रस बनता है जो कि नाडियों में चलता है।फिर बाद में खून बनता है।इस प्रकार से यह क्रम चलता है और अंत में वीर्य बनता है।
वीर्य में अनेक गुण होतें हैं।
क्या आपने कभी यह सोचा है कि शेर इतना ताकतवर क्यों होता है?वह अपने जीवन में केवल एक बार बच्चॉ के लिये मैथुन करता है।जिस वजह से उसमें वीर्य बचा रहता है और वह इतना ताकतवर होता है।
जो वीर्य इक्कठा होता है वह जरूरी नहीं है कि धारण क्षमता कम होने से वीर्य बाहर आ जायेगा।वीर्य जहाँ इक्कठा होता है वहाँ से वह नब्बे दिनों बाद पूरे शरीर में चला जाता है।
फिर उससे जो सुंदरता,शक्ति,रोग प्रतिरोधक क्षमता आदि बढती हैं उसका कोई पारावार नहीं होता है।
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4. पत्नी का त्याग नहीं करना है -
ब्रह्मचर्य में स्त्री और पुरुष का कोई लेना देना ही नहीं है।
प्राचीन काल में ऋषि मुनि गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे, ऋषि पत्नियां भी बहुत जागृत और ग्यानी होती थी। आत्मसाक्षात्कार का जितना अधिकार पुरुषो को था उतना ही स्त्रियों को भी था।
ब्रह्मचर्य को पूर्ण गरिमा प्राचीन काल में ही मिली थी। मैंने एक कथा सुनी थी, एक ऋषि ने अपने पुत्र को दुसरे ऋषि के पास सन्देश लेकर भेजा था, पुत्र ने पिता से कहा की राह में एक नदी पड़ती है, कैसे पार करूँगा।
ऋषि ने कहा जाकर नदी से कहना,अगर मेरे पिता ने एक पल भी ब्रह्मचर्य का व्रत ना त्यागा हो, स्वप्न में भी नहीं, तो हे नदी तू मुझे रास्ता दे दे।
कथा कहती है की नदी ने रास्ता दे दिया। कैसा विरोधाभास है, एक पुत्र का पिता और ब्रह्मचारी , कैसे ?
जाहिर है कि संभोग एक बार सन्तानोपत्ति के लिए किया गया था , आनंद के लिए नहीं ।
बुद्ध और महावीर के बाद हज़ारों युवक अपनी पत्नियों को घर को छोड़ कर भिक्षु बन गए , तब ब्रह्मचर्य का अर्थ सिर्फ स्त्री निषेध बन गया।
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नर और नारी के घनिष्ठ सहयोग के बिना सृष्टि का व्यवस्थाक्रम नहीं चल सकता।
दोनों का मिलन कामतृप्ति एवं प्रजनन जैसे पशु प्रयोजन के लिए नहीं होता, वरन घर बसाने से लेकर व्यक्तियों के विकास और सामाजिक प्रगति तक समस्त सत्प्रवित्तियों का ढांचा दोनों के सहयोग से ही सम्भव होता है।
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अध्यात्म के मंच से एक और बेसुरा राग अलापा गया कि नारी ही दोष दुर्गुणों की, पाप-पतन की जड़ है।
इसलिए उससे सर्वथा दूर रहकर ही स्वर्ग मुक्ति और सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
इस सनक में लोग घर छोडक़र भागने में, स्त्री बच्चे को बिलखता छोडक़र भीख माँगने और दर-दर भटकने के लिए निकल पड़े।
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तंत्र के पथिको ने आज्ञा चक्र में अर्ध नारीश्वर की कल्पना की है, यह कल्पना नहीं यथार्थ है, विज्ञान भी स्वीकारता है, की, हर स्त्री में एक पुरुष विद्यमान है और हर पुरुष में एक स्त्री।
जब साधक या साधिका की चेतना आज्ञा चक्र में प्रवेश करती है, जब कुण्डलिनी आज्ञा चक्र का भेदन करती है तो काम ऊर्जा राम ऊर्जा में रूपांतरित हो जाती है, साधक जीव संज्ञा से शिव संज्ञा में प्रविष्ट हो जाता है।
आज्ञा चक्र में पुरुष साधक को अपने भीतर की स्त्री का दर्शन होता है और स्त्री साधक को अपने भीतर के पुरुष का, जैसे ही यह दर्शन मिलता है, वैसे ही बाहर की स्त्री या पुरुष विलीन हो जाता है, खो जाता है।
बाहर की स्त्री या पुरुष में रस ख़त्म हो जाता है, आप अपने भीतर के पुरुष या स्त्री को पा लेते हैं, और साथ ही आप आतंरिक या आध्यात्मिक सम्भोग के रहस्य को जान लेते हैं, जो पंचमकार का एक सूक्ष्म मकार है।
यह बिलकुल उसी तरह होता है , जैसे खेचरी मुद्रा में साधक ललना चक्र से टपकने वाली मदिरा का पान करके आनंद में रहता है। जैसे ही आपको भीतर का सौंदर्य मिलता है, बाहर का सौंदर्य खो जाता है ।
संसार की स्त्री या पुरुष में कोई आकर्षण नहीं रह जाता है, कोई रस नहीं रह जाता है, यही वो घडी है, जब ब्रह्मचर्य आपके भीतर से प्रस्फूटित होता है. अब आप वो नहीं रहे आप रूपांतरित हो जाते हैं, यही वो जगह है जहाँ शिवत्व घटता है ।
5. कमेन्टस में चर्चा -
एक बात ध्यान रखना है चर्चा में कि यहाँ माता-बहने भी हैं तो शब्दों का ख्याल रखना है , कामुक या गंदे शब्दों से परहेज करना है जहां तक हो सके ।
शादीशुदा व्यक्ति पूर्ण ब्रह्मचर्य ना रख सकें तो भी संयमित जीवन अवश्य व्यतीत करना चाहिए ।
अगर कोई कहता है कि यौन इच्छाओं को दबाने से नपुंसकता आ जाएगी या दबाने से अच्छा है भोग लो , तो भाई ऐसा है कि उपर लिखी दिनचर्या अपनाओगे तो यौन इच्छाएँ पैदा ही नहीं होगी ,
मन निर्मल तो तन निर्मल ।।
अगर कोई कहे कि संभोग 8-10 दिन इतना ज्यादा करो कि घृणा हो जाए , तो भाई ऐसा है कि नसें उभर आएंगी , पीड़ा भी महसूस करोगे , संभोग से मन उचट भी जाएगा , परन्तु .....
महिने 2-3 में वीर्य बनने पर , कामुक साहित्य , नेट पर अशलील चीजें देखने पर , नारी को गलत भावना से देखने पर फिर से काम वेग उठेगा , तुम फिर बह जाओगे।
इसलिए ये सोचना बिल्कुल गलत होगा कि 8-10 दिन जमकर करो तो घृणा हो जाएगी सदा के लिए । ।
साधना पर भी प्रभाव पडेगा , जो व्यक्ति कामुक है , उसके विचार भी वैसे चलेंगे , ज्यादा वीर्य नष्ट करने से शरीर में शक्ति का संचार कम होगा , वह 1 घण्टे तक ज्ञान मुद्रा में ही नहीं बैठ पाएगा ।
जनेऊ
जनेऊ का नाम सुनते ही सबसे पहले जो चीज़ मन मे आती है वो है धागा दूसरी चीज है ब्राम्हण ।। जनेऊ का संबंध क्या सिर्फ ब्राम्हण से है , ये जनेऊ पहनाए क्यों है , क्या इसका कोई लाभ है, जनेऊ क्या ,क्यों ,कैसे आज आपका परिचय इससे ही करवाते है ----
जनेऊ_को_उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र के नाम से भी जाना जाता है ।।
हिन्दू धर्म के 24 संस्कारों में से एक ‘उपनयन संस्कार’ के अंतर्गत ही जनेऊ पहनी जाती है जिसे ‘यज्ञोपवीतधारण करने वाले व्यक्ति को सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। उपनयन का शाब्दिक अर्थ है "सन्निकट ले जाना" और उपनयन संस्कार का अर्थ है --
"ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना"
हिन्दू_धर्म_में प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। हर हिन्दू जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे। ब्राह्मण ही नहीं हिन्दू समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म। मतलब सीधा है जनेऊ संस्कार के बाद ही शिक्षा का अधिकार मिलता था ।।
लड़की_जिसे_आजीवन_ब्रह्मचर्य का पालन करना हो, वह जनेऊ धारण कर सकती है। ब्रह्मचारी तीन और विवाहित छह धागों की जनेऊ पहनता है। यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के बतलाए गए हैं।
जनेऊ_का_आध्यात्मिक_महत्व --
जनेऊ_में_तीन-सूत्र – त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक – देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक – सत्व, रज और तम के प्रतीक होते है। साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक है तो तीन आश्रमों के प्रतीक भी। जनेऊ के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। अत: कुल तारों की संख्या नौ होती है। इनमे एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। इनका मतलब है – हम मुख से अच्छा बोले और खाएं, आंखों से अच्छा देंखे और कानों से अच्छा सुने। जनेऊ में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष का प्रतीक है। ये पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों के भी प्रतीक है।
जनेऊ_की_लंबाई : जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होती है क्यूंकि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। 32 विद्याएं चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर होती है। 64 कलाओं में वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि आती हैं।
जनेऊ_के_लाभ --
प्रत्यक्ष_लाभ जो आज के लोग समझते है -
"जनेऊ बाएं कंधे से दाये कमर पर पहनना चाहिये"।
जनेऊ_में_नियम_है_कि -
मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका मूल भाव यह है कि जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। यह बेहद जरूरी होता है।
मतलब साफ है कि जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति ये ध्यान रखता है कि मलमूत्र करने के बाद खुद को साफ करना है इससे उसको इंफेक्शन का खतरा कम से कम हो जाता है
वो_लाभ_जो_अप्रत्यक्ष_है जिसे कम लोग जानते है -
शरीर में कुल 365 एनर्जी पॉइंट होते हैं। अलग-अलग बीमारी में अलग-अलग पॉइंट असर करते हैं। कुछ पॉइंट कॉमन भी होते हैं। एक्युप्रेशर में हर पॉइंट को दो-तीन मिनट दबाना होता है। और जनेऊ से हम यही काम करते है उस प्वाइंट को हम एक्युप्रेश करते है ।।
कैसे आइये समझते है
कान_के_नीचे_वाले_हिस्से (इयर लोब) की रोजाना पांच मिनट मसाज करने से याददाश्त बेहतर होती है। यह टिप पढ़नेवाले बच्चों के लिए बहुत उपयोगी है।अगर भूख कम करनी है तो खाने से आधा घंटा पहले कान के बाहर छोटेवाले हिस्से (ट्राइगस) को दो मिनट उंगली से दबाएं। भूख कम लगेगी। यहीं पर प्यास का भी पॉइंट होता है। निर्जला व्रत में लोग इसे दबाएं तो प्यास कम लगेगी।
इसके अलावा इसके कुछ अन्य लाभ जो क्लीनिकली प्रोव है -
1. बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से ऐसे स्वप्न नहीं आते।
2. जनेऊ_के हृदय के पास से गुजरने से यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है, क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होने लगता है।
3. जनेऊ_पहनने वाला व्यक्ति सफाई नियमों में बंधा होता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जीवाणुओं के रोगों से बचाती है।
4. जनेऊ_को_दायें कान पर धारण करने से कान की वह नस दबती है, जिससे मस्तिष्क की कोई सोई हुई तंद्रा कार्य करती है।
5. दाएं_कान_की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।
6. कान_में_जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।
7. कान_पर_जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है।
।।साभार।।
छोटी छोटी खुशियाँ बाँटे ,( लघु कथा)
बहुत दिनो से #Pleasure🛵 गाडी का उपयोग नही होने से, वह पडी पडी खराब होने जैसी स्थिति में पहुंच रही थी।
विचार आया Olx पे बेच दे
Add डाला किमत *Rs 30000/-
बहुत आफर आये 15 से 28 हजार तक।
मुझे लगा यदि 28 मिल रहे तो, कोई 29-30 देगा भी।
एक का 29 का प्रस्ताव आया।
उसे भी waiting में रखा।
एक सुबह काल आया, उसने कहा-
*साहब नमस्कार 🙏 , आपकी गाडी का add देखा। पसंद भी आयी है। परंतु 30 जमाने का बहुत प्रयत्न किया, 24 ही इकठ्ठा कर पाया हूँ। बेटा इंजिनियरिंग के अंतिम वर्ष में है। बहुत मेहनत किया है उसने। कभी पैदल, कभी सायकल, कभी बस, कभी किसी के साथ। सोचा अंतिम वर्ष तो वह अपनी गाडी से ही जाये। आप कृपया Pleasure 🛵 मुझे ही दिजीएगा। नयी गाडी दुगनी किमत से भी ज्यादा है। मेरी हैसियत से बहुत ज्यादा है। थोडा समय दिजीए। मै पैसो का इंतजाम करता हूँ। मोबाइल बेच कर कुछ रुपये मिलेंगें। परंतु हाथ जोड़कर कर निवेदन है साहब, Pleasure मुझे ही दिजीएगा।
मैने औपचारिकता में मात्र Ok 👌 बोलकर फोन रख दिया।
कुछ विचार मन में आये।
वापस काल बैक किया और कहा आप अपना मोबाइल मत बेचिए, कल सुबह केवल 24 हजार लेकर आईए, गाडी आप ही ले जाईए वह भी मात्र 24 में ही
मेरे पास 29 का प्रस्ताव होने पर भी 24 में किसी अपरिचित व्यक्ति को मै Pleasure🛵 देने जा रहा था।
सोचा उस परिवार में आज कितने Pleasure🛵 या आनंद का निर्माण हुआ होगा।
कल उनके घर Pleasure🛵 आएगी।
और मुझे ज्यादा नुकसान भी नहीं हो रहा था।
ईश्वर ने बहुत दिया है और सबसे बडा धन #समाधान है जो कूट-कूटकर दिया है।
अगली सुबह उसने कम से कम 6-7 बार फोन किया साहब कितने बजे आऊ, आपका समय तो नही खराब होगा। पक्का लेने आऊं, बेटे को लेकर या अकेले आऊ। पर साहब Pleasure🛵 गाडी किसी को और नही दिजीएगा।
वह 2000, 500, 200, 100, 50 के नोटों का संग्रह लेकर आया, साथ में बेटा भी था। ऐसा लगा, पता नही कहा कहा से निकाल कर या मांग कर या इकठ्ठा कर यह पैसे लाया है।
बेटा एकदम आतुरता और कृतज्ञता से Pleasure🛵 को देख रहा था। मैने उसे दोनो चाबियां दी, कागज दिये। बेटा गाडी पर विनम्रतापूर्वक हाथ फेर रहा था। रुमाल निकास कर पोछ रहा था।
उसनें पैसे गिनने कहा, मैने कहा आप गिनकर ही लाये है, कोई दिक्कत नहीं।
जब जाने लगे, तो मैने उन्हे 500 का एक नोट वापस करते कहाँ, घर जाते मिठाई लेते जाएगा। सोच यह थी कि कही तेल के पैसे है या नही। और यदि है तो मिठाई और तेल दोनो इसमें आ जायेंगें।
आँखों में कृतज्ञता के आंसु लिये उसने हमसे विदा ली और अपनी Pleasure🛵 ले गया। जाते समय बहुत ही आतुरता और विनम्रता से झुककर अभिवादन किया। बार बार आभार व्यक्त किया।
हम लोग सहज भाव में कहते है it's my pleasure
परंतु आज Pleasure🛵 बेचते समय ही पता चला कि वास्तव में #Pleasure होता क्या है।
जीवन में कुछ व्यवहार करते समय नफा नुकसान नहीं देखना चाहिए।
अपने माध्यम से किसी को क्या सचमें कुछ आनंद प्राप्त हुआ यह देखना भी होता है।
करबद्ध निवेदन है कि ईश्वर ने आपको कुछ देने लायक बनाया हो या नही,
किसी एक व्यक्ति को सुख देने या खुशी देने लायक तो बनाया ही है।
आज सब्जी वाली किसी बुजुर्ग महिला या पुरुष को अपनी ओर से केवल 5 या 10 रुपये अधिक देकर देखिएगा,
वही #Pleasure न आये तो कहना।
#जयजयभारत
Har har mahadev
मेरे समूह से साभार
एक मशहूर धनुर्धर थिम्मन एक दिन शिकार के लिए गए। जंगल में उन्हें एक मंदिर मिला, जिसमें एक शिवलिंग था। थिम्मन के मन में शिव के लिए एक गहरा प्रेम भर गया और उन्होंने वहां कुछ अर्पण करना चाहा। लेकिन उन्हें समझ नहीं आया कि कैसे और किस विधि ये काम करें। उन्होंने भोलेपन में अपने पास मौजूद मांस शिवलिंग पर अर्पित कर दिया और खुश होकर चले गए कि शिव ने उनका चढ़ावा स्वीकार कर लिया।
उस मंदिर की देखभाल एक ब्राह्मण करता था जो उस मंदिर से कहीं दूर रहता था। हालांकि वह शिव का भक्त था लेकिन वह रोजाना इतनी दूर मंदिर तक नहीं आ सकता था इसलिए वह सिर्फ पंद्रह दिनों में एक बार आता था। अगले दिन जब ब्राह्मण वहां पहुंचा, तो शिव लिंग के बगल में मांस पड़ा देखकर वह भौंचक्का रह गया। यह सोचते हुए कि यह किसी जानवर का काम होगा, उसने मंदिर की सफाई कर दी, अपनी पूजा की और चला गया। अगले दिन, थिम्मन और मांस अर्पण करने के लिए लाए। उन्हें किसी पूजा पाठ की जानकारी नहीं थी, इसलिए वह बैठकर शिव से अपने दिल की बात करने लगे। वह मांस चढ़ाने के लिए रोज आने लगे। एक दिन उन्हें लगा कि शिवलिंग की सफाई जरूरी है लेकिन उनके पास पानी लाने के लिए कोई बरतन नहीं था। इसलिए वह झरने तक गए और अपने मुंह में पानी भर कर लाए और वही पानी शिवलिंग पर डाल दिया।
जब ब्राह्मण वापस मंदिर आया तो मंदिर में मांस और शिवलिंग पर थूक देखकर घृणा से भर गया। वह जानता था कि ऐसा कोई जानवर नहीं कर सकता। यह कोई इंसान ही कर सकता था। उसने मंदिर साफ किया, शिवलिंग को शुद्ध करने के लिए मंत्र पढ़े। फिर पूजा पाठ करके चला गया। लेकिन हर बार आने पर उसे शिवलिंग उसी अशुद्ध अवस्था में मिलता। एक दिन उसने आंसुओं से भरकर शिव से पूछा, “हे देवों के देव, आप अपना इतना अपमान कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं।” शिव ने जवाब दिया, “जिसे तुम अपमान मानते हो, वह एक दूसरे भक्त का अर्पण है। मैं उसकी भक्ति से बंधा हुआ हूं और वह जो भी अर्पित करता है, उसे स्वीकार करता हूं। अगर तुम उसकी भक्ति की गहराई देखना चाहते हो, तो पास में कहीं जा कर छिप जाओ और देखो। वह आने ही वाला है। ”ब्राह्मण एक झाड़ी के पीछे छिप गया। थिम्मन मांस और पानी के साथ आया। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि शिव हमेशा की तरह उसका चढ़ावा स्वीकार नहीं कर रहे। वह सोचने लगा कि उसने कौन सा पाप कर दिया है। उसने लिंग को करीब से देखा तो पाया कि लिंग की दाहिनी आंख से कुछ रिस रहा है। उसने उस आंख में जड़ी-बूटी लगाई ताकि वह ठीक हो सके लेकिन उससे और रक्त आने लगा। आखिरकार, उसने अपनी आंख देने का फैसला किया। उसने अपना एक चाकू निकाला, अपनी दाहिनी आंख निकाली और उसे लिंग पर रख दिया। रक्त टपकना बंद हो गया और थिम्मन ने राहत की सांस ली।
लेकिन तभी उसका ध्यान गया कि लिंग की बाईं आंख से भी रक्त निकल रहा है। उसने तत्काल अपनी दूसरी आंख निकालने के लिए चाकू निकाल लिया, लेकिन फिर उसे लगा कि वह देख नहीं पाएगा कि उस आंख को कहां रखना है। तो उसने लिंग पर अपना पैर रखा और अपनी आंख निकाल ली। उसकी अपार भक्ति को देखते हुए, शिव ने थिम्मन को दर्शन दिए। उसकी आंखों की रोशनी वापस आ गई और वह शिव के आगे दंडवत हो गया। उसे कन्नप्पा नयनार के नाम से जाना गया। कन्ना यानी आंखें अर्पित करने वाला नयनार यानी शिव भक्त।
हर हर महादेव 🔱🕉️
दिशाशूल
दिशाशूल क्या होता है ? इसके बारे मे सम्पूर्ण जानकारी
दिशाशूल क्या होता है ? क्यों बड़े बुजुर्ग तिथि देख कर आने जाने की रोक टोक करते हैं ? आज की युवा पीढ़ी भले हि उन्हें आउटडेटेड कहे ..लेकिन बड़े सदा बड़े हि रहते हैं ..इसलिए आदर करे उनकी बातों का ;दिशाशूल समझने से पहले हमें दस दिशाओं के विषय में ज्ञान होना आवश्यक है| हम सबने पढ़ा है कि दिशाएं ४ होती हैं |१) पूर्व२) पश्चिम३) उत्तर४) दक्षिण
परन्तु जब हम उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं तो ज्ञात होता है कि वास्तव मेंदिशाएँ दस होती हैं |१) पूर्व२) पश्चिम३) उत्तर४) दक्षिण५) उत्तर - पूर्व६) उत्तर - पश्चिम७) दक्षिण – पूर्व८) दक्षिण – पश्चिम९) आकाश१०) पातालहमारे सनातन धर्म के ग्रंथो में सदैव १० दिशाओं का ही वर्णन किया गया है,जैसे हनुमान जी ने युद्ध इतनी आवाज की किउनकी आवाज दसों दिशाओं में सुनाईदी | हम यह भी जानते हैं कि प्रत्येक दिशा के देवता होते हैं |
दसों दिशाओं को समझने के पश्चात अब हम बात करते हैं वैदिक ज्योतिष की |ज्योतिष शब्द “ज्योति” से बना है जिसका भावार्थ होता है “प्रकाश” |वैदिक ज्योतिष में अत्यंत विस्तृत रूप में मनुष्य के जीवन की हरपरिस्तिथियों से सम्बन्धित विश्लेषण किया गया है कि मनुष्य यदि इसको तनिकभी समझले तो वह अपने जीवन में उत्पन्न होने वाली बहुत सी समस्याओं से बचसकता है और अपना जीवन सुखी बना सकता है |
दिशाशूल क्या होता है ?
दिशाशूल वह दिशा है जिस तरफ यात्रा नहीं करनाचाहिए | हर दिन किसी एक दिशा की ओर दिशाशूल होता है |
१) सोमवार और शनिवार को पूर्व
२) रविवार और शुक्रवार को पश्चिम
३) मंगलवार और बुधवार को उत्तर
४) गुरूवार को दक्षिण
५) सोमवार और गुरूवार को दक्षिण-पूर्व
६) रविवार और शुक्रवार को दक्षिण-पश्चिम
७) मंगलवार को उत्तर-पश्चिम
८) बुधवार और शनिवार को उत्तर-पूर्व
परन्तु यदि एक ही दिन यात्रा करके उसी दिन वापिस आ जाना हो तो ऐसी दशामें दिशाशूल का विचार नहीं किया जाता है | परन्तु यदि कोई आवश्यक कार्यहो ओर उसी दिशा की तरफ यात्रा करनी पड़े, जिस दिन वहाँ दिशाशूल हो तो यहउपाय करके यात्रा कर लेनी चाहिए
रविवार – दलिया और घी खाकर
सोमवार – दर्पण देख कर
मंगलवार – गुड़ खा कर
बुधवार – तिल, धनिया खा कर
गुरूवार – दही खा कर
शुक्रवार – जौ खा कर
शनिवार – अदरक अथवा उड़द की दाल खा कर
साधारणतया दिशाशूल का इतना विचार नहीं किया जाता परन्तु यदि व्यक्ति केजीवन का अति महत्वपूर्ण कार्य है तो दिशाशूल का ज्ञान होने से व्यक्तिमार्ग में आने वाली बाधाओं से बच सकता है | आशा करते हैं कि आपके जीवनमें भी यह ज्ञान उपयोगी सिद्ध होगा तथा आप इसका लाभ उठाकर अपने दैनिक जीवनमें सफलता प्राप्त करेंगे |
गुरु मंत्र से लाभ
विषेश :- कोई भी मंत्र जप करने से पहले गुरु आज्ञा से लेना जरूरी है।और बिना गुरु दिक्षा लिए गुरु मंत्रउच्चारण नहीं करनी चाहिए।
સमस्त देवता मंत्र के अधीन होते है और
यदि गुरु मंत्र का जप हो, तो किसी अन्य मंत्र को जपने की आवश्यकता ही शेष
नहीं रह जाती, हमारे यहां जितने भी शास्त्र, वेद. पुराण लिखे
गये, वे सब "गुरु" इन दो अक्षरों पर ही आधारित है जो
देवताओं से भी उच्च एवं पूजनीय है, सम्पूर्ण ब्रह्मांड का तेज
जिनके भीतर समाहित है
गुरु मंत्र अपने आपमें छोटा होते हुए भी अत्यधिक
क्षमताओं से ओत-प्रोत होता है, क्योंकि इसके एक-एक
शब्द का अर्थ अपने आपमें मूल्यवान है, पूरे शरीर को सूर्य
के समान बना देने की क्षमता उसमें समाहित है. जो अचूक है,तीक्ष्ण एवं प्रभावकारी है. पर शरीर को चैतन्यता प्रदान करने में सक्षम है... यह किसी को यूँही नहीं प्राप्त हो जाता है, इसके पीछे एक गहन चितँन, धारण छिपी होती है, पूर्ण चेतना युक्त इस गुरु मंत्र में शिव ही की पूर्णता निहित है। जो कार्य किसी
अन्य देवी-देवता के लम्बे-चौडे श्लोक य स्तुति गान से नहीं हो पाता,उसे गुरु मंत्र तत्कालकर दिखाता है मानव की आवश्यकताओं के अनुसार ही यंत्रों की रचना प्राचीन काल में की गई, परन्तु क्लिष्ट होने के कारण, सस्वर व रचित उच्चारण न कर पाने के कारण इनका विपरीत प्रभाव ही अधिक देखने को मिला और
मानव की समस्याएं, परेशानियां, बाधाएं रह गई वहीं की वहीं। आशा को निराशा में बदलते हुए देखा, तभी हमारे
ऋषि इस विषय पर गम्भीरता से विचार का इस निष्कर्ष पर पहुंचे, कि गुरु मंत्र ही सबसे श्रेष्ठ और तीब्र प्रभावकारी है, जिसका सस्वर उच्चारण भी आसानी से किया जा सकता है,
जो अन्य मंत्रों की अपेक्षा महत्वपूर्ण भी है।
यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ जप किया
जाये,तो समस्याओं से पार पाने के लिए अन्य कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती, क्योंकि गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश में भी अधिक तेजस्वी कहा गया है, वे ही ज्ञान व सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं, भोग और मोक्ष दोनों को प्रदान करने वाले हैं.समस्त देवी-देवता तो उन्हीं के इंगित पर
नृत्य करते रहते हैं। प्रत्येक गृहस्थ साधक के लिए गुरु मंत्र
आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है, जो उनके कष्टों को
हमेशा के लिए दूर करने वाला अचूक मंत्र है। जो जिस
कामना से जिस भाव से इसे जपता है, उसे उसके अनुसार ही
फल सिद्धि प्राप्त होती है। यदि इसे पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से जपा जाय, तो सफलता निश्चय ही प्राप्त होती है। इसके माध्यम से विभिन्न पुरुषार्थो की सिद्धि होती ही है, जो इस
प्रकार है
स्वयं_के_अभ्युदय_के_लिए
जीवन में यदि आप चाहते हैं कि सफलता आपके
कदम चूमे और यदि उन्नति के उच्च शिकार पर पहुंचना है, तो गुरु मंत्र से उत्तम और कोई प्रदर्शक नहीं, जो तुम्हें उच्चता प्रदान कर सके, श्रेष्ठता प्रदान कर सके, तुम्हारे जीवन का अभ्युदय कर सके। साधक "अभ्युदय माला"से निम्न मंत्र का सवा लाख जप करें-
मंत्र
ॐवं परम तत्त्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
विपत्तियों के नाश के लि ए
मानव जीवन है, तो दुःख भी होंगे, कठिनाइयां भी
होगी और विपत्तियां भी आयेंगी ही, पर वदि अन्य कहीं
भटकने की अपेक्षा गुरु मंत्र जप पूर्ण निष्ठा के साथ कर लिया जाय, तो समस्त विपत्तियों का नाश स्वतः ही होने लगता है। निम्न मंत्र का "आपदहन्ता माला" से सवा लाख जप करें
मंत्र
ॐ खं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
रोग नाश के लिए
गुरु मंत्र से कैसा भी रोग हो, जड़-मूल से समाप्त
किया जा सकता है। इससे श्रेष्ठ अन्य कोई उपचार नहीं है, जो कि मनुष्य को रोग मुक्त कर पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान कर सके। निम्न मंत्र का "रुद्र माला" से सवा लाख जप करें मंत्र
ॐरं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
सौभाग्य प्राप्ति के लिए
यदि बार-बार प्रयल करने पर भी भाग्य साथ न दे,
तो उस व्यक्ति से दुर्भाग्यशाली दूसरा कोई नहीं होता कि
यदि व्यक्ति,"सौभाग्य माला" से निम्न मंत्र का सवा लाख
जप कर ले तो उससे ज्यादा सौभाग्यशाली भी अन्य कोई नहीं होता, क्योंकि यह दुर्भाग्य की लकीरों को मिटाकर सौभाग्य के अक्षर अंकित कर देने वाला अत्यन्त तेजस्वी मन्त्र है।
मंत्र
ॐ क्लीं परम् तत्वाव नारायणाय गुरुभ्यो नमः
सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिए
इस मंत्र के माध्यम से अपनी इच्छानुकूल पत्नी को प्राप्त
किया ज सकता है, जो सुलक्षणा हो, सौन्दर्यती हो, साक्षात् लक्ष्मी हो, प्रीया हो, परन्तु सम्पूर्ण जीवन ही तनाव ग्रस्त हो जाता है. निम्न मंत्र का "स्निग्धा माला" से सवा लाख जप करें-
मंत्र
ॐ सुं हुं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
दारिद्रय, दुःखादि के नाश के लिए
इस मंत्र के माध्यम से जीवन में व्याप्त दुःख,
दैत्यता, दरिद्रता जैसे शत्रुओं का नाश कर जीवन में सुख,
समृद्धि, सम्पन्नता प्राप्त करते हुए जीवन को उल्लासित व प्रफुल्लित बनाया जा सकता है। “ऐश्वर्यबर्द्धिनी माला" से निम्न मंत्र का सवा लाखा जप करें
मंत्र
ॐ क्रीं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
समस्त साधनाओं में सफलत प्राप्ति के लिए
इससे बड़ा और सर्वश्रेष्ठ उपाय अब नहीं है, जो
कि बड़ी-बड़ी उच्चकोटि की साधनाओं में सफलता प्रदान
करने में सक्षम हो, क्योंकि गुरु ही मात्र ऐसे व्यक्ति है, जो शुभ और लाभ के प्रदाता है और समस्त न्यूनताओं को समाप्त करने वाले हैं। कैसी भी साधना हो या जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, सफला निश्चित प्राप्त होती ही है। निम्न मंत्र का 'साफल्य माला" से सवा लाख जप करें -
मंत्र
ॐहीं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
इन वीजाक्षरों से यूक्त गुरु मंत्र के सवा लाख
जप से निश्चित हो उपरोक्त लाभ साधक को प्राप्त होने
है। यह एक संन्यासी के द्वारा बताये गये तेजस्वी
प्रयोग हैं, जो अचूक है. पूर्ण लक्ष्य भेदन में समर्थ हैं।
मंत्र जप पूरा होने पर माला नदी, तालाब का मंदिर में।
विसर्जित कर दें।
प्रेम
जय श्री सद्गुरू देव निखिल जी
प्रेम शब्द जितना मिसअंडरस्टुड है, जितना गलत समझा जाता है, उतना शायद मनुष्य की भाषा में कोई दूसरा शब्द नहीं! प्रेम के संबंध में जो गलत-समझी है, उसका ही विराट रूप इस जगत के सारे उपद्रव, हिंसा, कलह, द्वंद्व और संघर्ष हैं। प्रेम की बात इसलिए थोड़ी ठीक से समझ लेनी जरूरी है। जैसा हम जीवन जीते हैं, प्रत्येक को यह अनुभव होता होगा कि शायद जीवन के केंद्र में प्रेम की आकांक्षा और प्रेम की प्यास और प्रेम की प्रार्थना है। जीवन का केंद्र अगर खोजना हो, तो प्रेम के अतिरिक्त और कोई केंद्र नहीं मिल सकता है।
समस्त जीवन के केंद्र में एक ही प्यास है, एक ही प्रार्थना है, एक ही अभीप्सा है--वह अभीप्सा प्रेम की है।
और वही अभीप्सा असफल हो जाती हो तो जीवन व्यर्थ दिखायी पड़ने लगे--अर्थहीन, मीनिंगलेस, फस्ट्रेशन मालूम पड़े, विफलता मालूम पड़े, चिंता मालूम पड़े तो कोई आश्चर्य नहीं है। जीवन की केंद्रीय प्यास ही सफल नहीं हो पाती है! न तो हम प्रेम दे पाते हैं और न उपलब्ध कर पाते हैं। और प्रेम जब असफल रह जाता है, प्रेम का बीज जब अंकुरित नहीं हो पाता, तो सारा जीवन व्यर्थ-व्यर्थ, असार-असार मालूम होने लगता है।
जीवन की असारता प्रेम की विफलता का फल है।
जब प्रेम सफल होता है, तो जीवन सार बन जाता है। प्रेम विफल होता है तो जीवन प्रयोजनहीन मालूम होने लगता है। प्रेम सफल होता है, जीवन एक सार्थक, कृतार्थता और धन्यता में परिणित हो जाता है।
लेकिन यह प्रेम है क्या? यह प्रेम की अभीप्सा क्या है? यह प्रेम की पागल प्यास क्या है? कौन-सी बात है, जो प्रेम के नाम से हम चाहते हैं और नहीं उपलब्ध कर पाते हैं?
जीवन भर प्रयास करते हैं? सारे प्रयास प्रेम के आसपास ही होते हैं। युद्ध प्रेम के आसपास लड़े जाते हैं। धन प्रेम के आसपास इकट्ठा किया जाता है। यश की सीढ़ियां प्रेम के लिए पार की जाती हैं। संन्यास प्रेम के लिए लिया जाता है। घर-द्वार प्रेम के लिए बसाये जाते हैं और प्रेम के लिए छोड़े जाते हैं। जीवन का समस्त क्रम प्रेम की गंगोत्री से निकलता है।
जो लोग महत्वाकांक्षा की यात्रा करते हैं, पदों की यात्रा करते हैं, यश की कामना करते हैं, क्या आपको पता है, वे सारे लोग यश के माध्यम से जो प्रेम से नहीं मिला है, उसे पा लेने की कोशिश करते हैं! जो लोग धन की तिजोरियां भरते चले जाते हैं, अंबार लगाते जाते हैं, क्या आपको पता है, जो प्रेम से नहीं मिला, वह पैसे के संग्रह से पूरा करना चाहते हैं! जो लोग बड़े युद्ध करते हैं और बड़े राज्य जीतते हैं, क्या आपको पता है, जिसे वे प्रेम में नहीं जीत सके, उसे भूमि जीतकर पूरा करना चाहते हैं!
शायद आपको खयाल में न हो, लेकिन मनुष्य-जीवन का सारा उपक्रम, सारा श्रम, सारी दौड़, सारा संघर्ष अंतिम रूप से प्रेम पर ही केंद्रित है। लेकिन यह प्रेम की अभीप्सा क्या है? पहले इसे हम समझें तो और बात समझी जा सकेगी।
मनुष्य का जन्म होता है, मां से टूट जाता है संबंध शरीर का। अलग एक इकाई अपनी यात्रा शुरू कर देती है। अकेली एक इकाई जीवन के इस विराट जगत में अकेली यात्रा शुरू कर देती है! एक छोटी-सी बूंद समुद्र से छलांग लगा गयी है और अनंत आकाश में छूट गयी है। एक छोटे-से रेत का कण तट से उड़ गया है और हवाओं में भटक गया है। मां से व्यक्ति अलग होता है। एक बूंद टूट गयी सागर से और अनंत आकाश में भटक गयी है। वह बूंद वापस सागर से जुड़ना चाहती है। वह जो व्यक्ति है, वह फिर समष्टि के साथ एक होना चाहता है। वह जो अलग हो जाना है, वह जो पार्थक्य है, वह फिर से समाप्त होना चाहता है।
प्रेम की आकांक्षा--एक हो जाने की, समस्त के साथ एक हो जाने की आकांक्षा है।
प्रेम की आकांक्षा, अद्वैत की आकांक्षा है।
प्रेम की एक ही प्यास है, एक हो जाये सबसे; जो है, समस्त से संयुक्त हो जाये।
जो पार्थक्य है, जो व्यक्ति का अलग होना है, वही पीड़ा है व्यक्ति की। जो व्यक्ति का सबसे दूर खड़े हो जाना है, वही दुख है, वही चिंता है। वापस बूंद सागर के साथ एक होना चाहती है।
प्रेम की आकांक्षा समस्त जीवन के साथ एक हो जाने की प्यास और प्रार्थना है। प्रेम का मौलिक भाव एकता खोजना है।
तप
उत्तम मंगल है--"तप"
तप का वास्तविक अर्थ है संयम से तपना।
शरीर, वाणी और चित्त को तपाने के लिये किये गए परिश्रम, पुरुषार्थ और पराक्रम द्वारा इन्द्रियों पर लगाम लगाना, वाणी पर लगाम लगाना, कायिक कर्मो पर लगाम लगाना।
विकार जगाने वाले दृश्यों को देखने से आँख पर रोक लगाना, विकार जगाने वाले शब्दों को सुनने से कान पर, विकार जगाने वाले रस के चखने से जीभ पर, विकार जगाने वाली गंध से नाक पर, विकार जगाने वाले स्पर्श से तन पर लगाम लगाना।
यही वास्तविक तप है।
इस तप द्वारा अपनी इन्द्रियों की रक्षा करता है।उन्हें विषयो में लिप्त होने से बचाता है।
वाणी द्वारा झूठ बोलने से, कटु वचन बोलने से, चुगली के वचन बोलने से, निरर्थक वचन बोलने पर रोक लगाता है।रोक लगाकर वाणी के दुष्कर्मो से बचता है।
हिंसा, चोरी, व्यभिचार जैसे शारीरिक दुष्कर्मो से बचता है।
और इन सबसे बढ़कर मन को मैला न होने देने के लिये प्रत्यनशील होता है।उसे विकारो से विकृत नही होने देता। इस सच्चाई के प्रति हमेशा सजग रहता है कि मन में विकार जागते ही, मन को मैला करते ही शरीर, वाणी और इन्द्रियों के संयम का तप क्षीण हो जायेगा।निष्फल हो जाएगा।
मन को संयमित करते ही शरीर और वाणी के कर्म अपने आप संयमित हो जाएंगे।
तभी कहा गया--
मन के कर्म सुधार लें,
मन ही प्रमुख प्रधान।
कायिक वाचिक कर्म तो,
मन की ही संतान।।
विकारो से व्याकुल हुए मानस के ऊपरी ऊपरी हिस्से किसी रोचक आलंबन की और मोड़कर उसे शांत कर लेना सरल है।
लेकिन अंतर्मन की गहराईओं में उलझी हुई विकारो की जड़ो को काटकर मन का स्वभाव बदल देना बहुत कठिन है।इसके लिये बहुत परिश्रम करना पड़ता है।
अन्तर्मन का विकृत स्वभाव बदलना ही सही माने में अंतर्तप है।
सबका मंगल हो।
कोरॉना कॉल अपनी सोच बदलो।
ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी!
एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया।
वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं।
अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।।
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी।
जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया। और आंख बंद कर लिया।
सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया..
अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।
जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया ।
ध्यान रखे आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि ,
ये कोरोना काल भी यही,जहा उनको आप से काम निकाल जाने के बाद आप को उसी कुए में छोड़ कर मिट्टी डाल देने।
आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा
कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा
कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे...
ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।
सकारात्मक रहे.. सकारात्मक जिए!
इस संसार में....
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सबसे बड़ी सम्पत्ति *"बुद्धि "*
सबसे अच्छा हथियार *"धैर्य"*
सबसे अच्छी सुरक्षा *"विश्वास"*
सबसे बढ़िया दवा *"हँसी"* है
और आश्चर्य की बात कि *"ये सब निशुल्क हैं "*
सोच बदलो जिंदगी बदल जायेगी
श्री तैलंग स्वामी आयु 300 वर्ष
श्री तैलंग स्वामी :-
वाराणसी की गलियों में एक दिगम्बर योगी घूमता रहता है। गृहस्थ लोग उसके नग्न वेश पर आपत्ति करते हैं फिर भी पुलिस उसे पकड़ती नहीं, वाराणसी पुलिस की इस तरह की तीव्र आलोचनाएं हो रही थीं। आखिर वारंट निकालकर उस नंगे घूमने वाले साधू को जेल में बंद करने का आदेश दिया गया।
पुलिस के आठ-दस जवानों ने पता लगाया, मालूम हुआ वह योगी इस समय मणिकर्णिका घाट पर बैठा हुआ है। जेष्ठ की चिलचिलाती दोपहरी जब कि घर से बाहर निकलना भी कठिन होता है एक योगी को मणिकर्णिका घाट के एक जलते तवे की भाँति गर्म पत्थर पर बैठे देख पुलिस पहले तो सकपकायी पर आखिर पकड़ना तो था ही वे आगे बढ़े। योगी पुलिस वालों को देखकर ऐसे मुस्करा रहा था मानों वह उनकी सारी चाल समझ रहा हो। साथ ही वह कुछ इस प्रकार निश्चिन्त बैठे हुये थे मानों वह वाराणसी के ब्रह्मा हों किसी से भी उन्हें भय न हो। मामूली कानूनी अधिकार पाकर पुलिस का दरोगा जब किसी से नहीं डरता तो अनेक सिद्धियों सामर्थ्यों का स्वामी योगी भला किसी से भय क्यों खाने लगा तो भी उन्हें बालकों जैसी क्रीड़ा का आनन्द लेने का मन तो करता ही है यों कहिए आनंद की प्राप्ति जीवन का लक्ष्य है बाल सुलभ सरलता और क्रीड़ा द्वारा ऐसे ही आनंद के लिए “श्री तैलंग स्वामी” नामक योगी भी इच्छुक रहे हों तो क्या आश्चर्य ?
पुलिस मुश्किल से दो गज पर थी कि तैलंग स्वामी उठ खड़े हुए ओर वहाँ से गंगा जी की तरफ भागे। पुलिस वालों ने पीछा किया। स्वामी जी गंगा में कूद गये पुलिस के जवान बेचारे वर्दी भीगने के डर से कूदे तो नहीं हाँ चारों तरफ से घेरा डाल दिया कभी तो निकलेगा साधु का बच्चा- लेकिन एक घंटा, दो घंटा, तीन घंटा-सूर्य भगवान् सिर के ऊपर थे अब अस्ताचलगामी हो चले किन्तु स्वामी जी प्रकट न हुए कहते हैं उन्होंने जल के अंदर ही समाधि ले ली। उसके लिये उन्होंने एक बहुत बड़ी शिला पानी के अंदर फेंक रखी थी और यह जन श्रुति थी कि तैलंग स्वामी पानी में डुबकी लगा जाने के बाद उसी शिला पर घंटों समाधि लगायें जल के भीतर ही बैठे रहते हैं।
उनको किसी ने कुछ खाते नहीं देखा तथापि उनकी आयु 300 वर्ष की बताई जाती है। वाराणसी में घर-घर में तैलंग स्वामी की अद्भुत कहानियां आज भी प्रचलित हैं। निराहार रहने पर भी प्रतिवर्ष उनका वजन एक पौण्ड बढ़ जाता था। 300 पौंड वजन था उनका जिस समय पुलिस उन्हें पकड़ने गई इतना स्थूल शरीर होने पर भी पुलिस उन्हें पकड़ न सकी। आखिर जब रात हो चली तो सिपाहियों ने सोचा डूब गया इसीलिये वे दूसरा प्रबन्ध करने के लिए थाने लौट गये इस बीच अन्य लोग बराबर तमाशा देखते रहे पर तैलंग स्वामी पानी के बाहर नहीं निकले।
प्रातः काल पुलिस फिर वहाँ पहुँची। स्वामी जी इस तरह मुस्करा रहे थे मानों उनके जीवन में सिवाय मुस्कान और आनंद के और कुछ हो ही नहीं, शक्ति तो आखिर शक्ति ही है संसार में उसी का ही तो आनंद है। योग द्वारा सम्पादित शक्तियों का स्वामी जी रसास्वादन कर रहे हैं तो आश्चर्य क्या। इस बार भी जैसे ही पुलिस पास पहुँची स्वामी फिर गंगा जी की ओर भागे और उस पार जा रही नाव के मल्ला को पुकारते हुए पानी में कूद पड़े। लोगों को आशा थी कि स्वामी जी कल की तरह आज भी पानी के अंदर छुपेंगे और जिस प्रकार मेढ़क मिट्टी के अंदर और उत्तराखण्ड के रीछ बर्फ के नीचे दबे बिना श्वाँस के पड़े रहते हैं उसी प्रकार स्वामी जी भी पानी के अंदर समाधि ले लेंगे किन्तु यह क्या जिस प्रकार से वायुयान दोनों पंखों की मदद से इतने सारे भार को हवा में संतुलित कर तैरता चला जाता है उसी प्रकार तैलंग स्वामी पानी में इस प्रकार दौड़ते हुए भागे मानों वह जमीन पर दौड़ रहे हों । नाव उस पार नहीं पहुँच पाई स्वामी जी पहुँच गये। पुलिस खड़ी देखती रह गई।
स्वामी जी ने सोचा होगा कि पुलिस बहुत परेशान हो गई तब तो वह एक दिन पुनः मणिकर्णिका घाट पर प्रकट हुए और अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया। हनुमान जी ने मेघनाथ के सारे अस्त्र काट डाले किन्तु जब उसने ब्रह्म-पाश फेंका तो वे प्रसन्नता पूर्वक बँध गये। लगता है श्री तैलंग स्वामी भी सामाजिक नियमोपनियमों की अवहेलना नहीं करना चाहते थे पर यह प्रदर्शित करना आवश्यक भी था कि योग और अध्यात्म की शक्ति भौतिक शक्तियों से बहुत चढ़-बढ़ कर है तभी तो वे दो बार पुलिस को छकाने के बाद इस प्रकार चुपचाप ऐसे बैठे रहे मानों उनको कुछ पता ही न हो। हथकड़ी डालकर पुलिस तैलंग स्वामी को पकड़ ले गई और हवालात में बंद कर दिया। इन्सपेक्टर रात गहरी नींद सोया क्योंकि उसे स्वामी जी गिरफ्तारी मार्के की सफलता लग रही थी।
प्रस्तुत घटना “मिस्ट्रीज आँ इंडिया इट्स योगीज” नामक लुई-द-कार्टा लिखित पुस्तक से अधिकृत की जा रही है। कार्टा नामक फ्राँसीसी पर्यटक ने भारत में ऐसी विलक्षण बातों की सारे देश में घूम-घूम कर खोज की। प्रसिद्ध योगी स्वामी योगानंद ने भी उक्त घटना का वर्णन अपनी पुस्तक “आटो बाई ग्राफी आँ योगी” के 31 वे परिच्छेद में किया है।
प्रातः काल ठंडी हवा बह रही थी थाने जी हवालात की तरफ की तरफ आगे बढ़े तो पसीने में डूब गया- जब उन्होंने योगी तैलंग को हवालात की छत पर मजे से टहलते और वायु सेवन करते देखा। हवालात के दरवाजे बंद थे, ताला भी लग रखा थी। फिर यह योगी छत पर कैसे पहुँच गया ? अवश्य ही संतरी की बदमाशी होगी। उन बेचारे संतरियों ने बहुतेरा कहा कि हवालात का दरवाजा एक क्षण को खुला नहीं फिर पता नहीं साधु महोदय छत पर कैसे पहुँच गये। वे इसे योग की महिमा मान रहे थे पर इन्सपेक्टर उसके लिए बिलकुल तैयार नहीं था आखिर योगी को फिर हवालात में बंद किया गया। रात दरवाजे में लगे ताले को सील किया गया चारों तरफ पहरा लगा और ताली लेकर थानेदार थाने में ही सोया। सवेरे बड़ी जल्दी कैदी की हालत देखने उठे तो फिर शरीर में काटो तो खून नहीं। सील बेद ताला बाकायदा बंद। सन्तरी पहरा भी दे रहे उस पर भी तैलंग स्वामी छत पर बैठे प्राणायाम का अभ्यास कर रहे। थानेदार की आँखें खुली की खुली रह गईं उसने तैलंग स्वामी को आखिर छोड़ ही दिया।
श्री तैलंग स्वामी के बारे में कहा जाता है कि जिस प्रकार जलते हुये तेज कड़ाहे में खौल रहे तेल में पानी के छींटे डाले जाएं तो तेल की ऊष्मा बनाकर पलक मारते दूर उड़ा देती है। उसी प्रकार विष खाते समय एक बार आँखें जैसी झपकती पर न जाने कैसी आग उनके भीतर थी कि विष का प्रभाव कुछ ही देर में पता नहीं चलता कहाँ चला गया। एक बार एक आदमी को शैतानी सूझी चूने के पानी को लेजाकर स्वामी जी के सम्मुख रख दिया और कहा महात्मन् ! आपके लिए बढ़िया दूध लाया हूँ स्वामी जी उठाकर पी गये उस चूने के पानी को, और अभी कुछ ही क्षण हुये थे कि कराहने और चिल्लाने लगा वह आदमी जिसने चूने का पानी पिलाया था। स्वामी जी के पैरों में गिरा, क्षमा याचना की तब कहीं पेट की जलन समाप्त हुई। उन्होंने कहा भाई मेरा कसूर नहीं है यह तो न्यूटन का नियम है कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया अवश्य है। उसकी दिशा उलटी और ठीक क्रिया की ताकत कितनी होती है।
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मनुष्य शरीर एक यंत्र, प्राण उसकी ऊर्जा, ईंधन आवा शक्ति, मन इंजन और ड्राइवर चाहे जिस प्रकार के अद्भुत कार्य लिए जा सकते हैं इस शरीर से भौतिक विज्ञान से भी अद्भुत पर यह सब शक्तियाँ और सामर्थ्य योग विद्या, योग साधना में सन्निहित हैं जिन्हें अधिकारी पात्र ही पाते और आनन्द लाभ प्राप्त करते है।
गिलोय के फायदे
गिलोय_एक_ही_ऐसी_बेल_है
जिसे आप सौ मर्ज की एक दवा कह सकते हैं। इसलिए इसे संस्कृत में अमृता नाम दिया गया है। कहते हैं कि देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला और इस अमृत की बूंदें जहां-जहां छलकीं, वहां-वहां गिलोय की उत्पत्ति हुई।
#इसका_वानस्पिक_नाम( #Botanical_name) टीनोस्पोरा कॉर्डीफोलिया (tinospora cordifolia है।* इसके पत्ते पान के पत्ते जैसे दिखाई देते हैं और जिस पौधे पर यह चढ़ जाती है, उसे मरने नहीं देती। इसके बहुत सारे लाभ आयुर्वेद में बताए गए हैं, जो न केवल आपको सेहतमंद रखते हैं, बल्कि आपकी सुंदरता को भी निखारते हैं। आइए जानते हैं गिलोय के फायदे…
#गिलोय_बढ़ाती_है_रोग_प्रतिरोधक_क्षमता
गिलोय एक ऐसी बेल है, जो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर उसे बीमारियों से दूर रखती है। इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर में से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का काम करते हैं। यह खून को साफ करती है, बैक्टीरिया से लड़ती है। लिवर और किडनी की अच्छी देखभाल भी गिलोय के बहुत सारे कामों में से एक है। ये दोनों ही अंग खून को साफ करने का काम करते हैं।
#ठीक_करती_है_बुखार
अगर किसी को बार-बार बुखार आता है तो उसे गिलोय का सेवन करना चाहिए। गिलोय हर तरह के बुखार से लडऩे में मदद करती है। इसलिए डेंगू के मरीजों को भी गिलोय के सेवन की सलाह दी जाती है। डेंगू के अलावा मलेरिया, स्वाइन फ्लू में आने वाले बुखार से भी गिलोय छुटकारा दिलाती है।
*गिलोय के फायदे – डायबिटीज के रोगियों के लिए*
गिलोय एक हाइपोग्लाइसेमिक एजेंट है यानी यह खून में शर्करा की मात्रा को कम करती है। इसलिए इसके सेवन से खून में शर्करा की मात्रा कम हो जाती है, जिसका फायदा टाइप टू डायबिटीज के मरीजों को होता है।
*पाचन शक्ति बढ़ाती है*
यह बेल पाचन तंत्र के सारे कामों को भली-भांति संचालित करती है और भोजन के पचने की प्रक्रिया में मदद कती है। इससे व्यक्ति कब्ज और पेट की दूसरी गड़बडिय़ों से बचा रहता है।
*कम करती है स्ट्रेस*
गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में तनाव या स्ट्रेस एक बड़ी समस्या बन चुका है। गिलोय एडप्टोजन की तरह काम करती है और मानसिक तनाव और चिंता (एंजायटी) के स्तर को कम करती है। इसकी मदद से न केवल याददाश्त बेहतर होती है बल्कि मस्तिष्क की कार्यप्रणाली भी दुरूस्त रहती है और एकाग्रता बढ़ती है।
*बढ़ाती है आंखों की रोशनी*
गिलोय को पलकों के ऊपर लगाने पर आंखों की रोशनी बढ़ती है। इसके लिए आपको गिलोय पाउडर को पानी में गर्म करना होगा। जब पानी अच्छी तरह से ठंडा हो जाए तो इसे पलकों के ऊपर लगाएं।
*अस्थमा में भी फायदेमंद*
मौसम के परिवर्तन पर खासकर सर्दियों में अस्थमा को मरीजों को काफी परेशानी होती है। ऐसे में अस्थमा के मरीजों को नियमित रूप से गिलोय की मोटी डंडी चबानी चाहिए या उसका जूस पीना चाहिए। इससे उन्हें काफी आराम मिलेगा।
*गठिया में मिलेगा आराम*
गठिया यानी आर्थराइटिस में न केवल जोड़ों में दर्द होता है, बल्कि चलने-फिरने में भी परेशानी होती है। गिलोय में एंटी आर्थराइटिक गुण होते हैं, जिसकी वजह से यह जोड़ों के दर्द सहित इसके कई लक्षणों में फायदा पहुंचाती है।
*अगर हो गया हो एनीमिया, तो करिए गिलोय का सेवन*
भारतीय महिलाएं अक्सर एनीमिया यानी खून की कमी से पीडि़त रहती हैं। इससे उन्हें हर वक्त थकान और कमजोरी महसूस होती है। गिलोय के सेवन से शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या बढ़ जाती है और एनीमिया से छुटकारा मिलता है।
*बाहर निकलेगा कान का मैल*
कान का जिद्दी मैल बाहर नहीं आ रहा है तो थोड़ी सी गिलोय को पानी में पीस कर उबाल लें। ठंडा करके छान के कुछ बूंदें कान में डालें। एक-दो दिन में सारा मैल अपने आप बाहर जाएगा।
*कम होगी पेट की चर्बी*
गिलोय शरीर के उपापचय (मेटाबॉलिजम) को ठीक करती है, सूजन कम करती है और पाचन शक्ति बढ़ाती है। ऐसा होने से पेट के आस-पास चर्बी जमा नहीं हो पाती और आपका वजन कम होता है।
*यौनेच्छा बढ़ाती है गिलोय*
आप बगैर किसी दवा के यौनेच्छा बढ़ाना चाहते हैं तो गिलोय का सेवन कर सकते हैं। गिलोय में यौनेच्छा बढ़ाने वाले गुण पाए जाते हैं, जिससे यौन संबंध बेहतर होते हैं।
*खूबसूरती बढ़ाती है गिलोय*
गिलोय न केवल सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है, बल्कि यह त्वचा और बालों पर भी चमत्कारी रूप से असर करती है….
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*जवां रखती है गिलोय*
गिलोय में एंटी एजिंग गुण होते हैं, जिसकी मदद से चेहरे से काले धब्बे, मुंहासे, बारीक लकीरें और झुर्रियां दूर की जा सकती हैं। इसके सेवन से आप ऐसी निखरी और दमकती त्वचा पा सकते हैं, जिसकी कामना हर किसी को होती है। अगर आप इसे त्वचा पर लगाते हैं तो घाव बहुत जल्दी भरते हैं। त्वचा पर लगाने के लिए गिलोय की पत्तियों को पीस कर पेस्ट बनाएं। अब एक बरतन में थोड़ा सा नीम या अरंडी का तेल उबालें। गर्म तेल में पत्तियों का पेस्ट मिलाएं। ठंडा करके घाव पर लगाएं। इस पेस्ट को लगाने से त्वचा में कसावट भी आती है।
*बालों की समस्या भी होगी दूर
अगर आप बालों में ड्रेंडफ, बाल झडऩे या सिर की त्वचा की अन्य समस्याओं से जूझ रहे हैं तो गिलोय के सेवन से आपकी ये समस्याएं भी दूर हो जाएंगी।
*गिलोय का प्रयोग ऐसे करें:*
अब आपने गिलोय के फायदे जान लिए हैं, तो यह भी जानिए कि गिलोय को इस्तेमाल कैसे करना है…
गिलोय जूस
गिलोय की डंडियों को छील लें और इसमें पानी मिलाकर मिक्सी में अच्छी तरह पीस लें। छान कर सुबह-सुबह खाली पेट पीएं। अलग-अलग ब्रांड का गिलोय जूस भी बाजार में उपलब्ध है।
काढ़ा
चार इंच लंबी गिलोय की डंडी को छोटा-छोटा काट लें। इन्हें कूट कर एक कप पानी में उबाल लें। पानी आधा होने पर इसे छान कर पीएं। अधिक फायदे के लिए आप इसमें लौंग, अदरक, तुलसी भी डाल सकते हैं।
पाउडर
यूं तो गिलोय पाउडर बाजार में उपलब्ध है। आप इसे घर पर भी बना सकते हैं। इसके लिए गिलोय की डंडियों को धूप में अच्छी तरह से सुखा लें। सूख जाने पर मिक्सी में पीस कर पाउडर बनाकर रख लें।
गिलोय वटी
बाजार में गिलोय की गोलियां यानी टेबलेट्स भी आती हैं। अगर आपके घर पर या आस-पास ताजा गिलोय उपलब्ध नहीं है तो आप इनका सेवन करें।
साथ में अलग-अलग बीमारियों में आएगी काम
अरंडी यानी कैस्टर के तेल के साथ गिलोय मिलाकर लगाने से गाउट(जोड़ों का गठिया) की समस्या में आराम मिलता है।इसे अदरक के साथ मिला कर लेने से रूमेटाइड आर्थराइटिस की समस्या से लड़ा जा सकता है।चीनी के साथ इसे लेने से त्वचा और लिवर संबंधी बीमारियां दूर होती हैं।आर्थराइटिस से आराम के लिए इसे घी के साथ इस्तेमाल करें।कब्ज होने पर गिलोय में गुड़ मिलाकर खाएं।
*साइड इफेक्ट्स का रखें ध्यान
वैसे तो गिलोय को नियमित रूप से इस्तेमाल करने के कोई गंभीर दुष्परिणाम अभी तक सामने नहीं आए हैं लेकिन चूंकि यह खून में शर्करा की मात्रा कम करती है। इसलिए इस बात पर नजर रखें कि ब्लड शुगर जरूरत से ज्यादा कम न हो जाए। *गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को गिलोय के सेवन से बचना चाहिए।पांच साल से छोटे बच्चों को गिलोय न दे।
*_एक निवेदन :---अभी वर्षाऋतु का काल है अपने घर में बड़े गमले या आंगन में जंहा भी उचित स्थान हो गिलोय की बेल अवश्य लगायें यह बहु उपयोगी वनस्पति ही नही बल्कि आयुर्वेद का अमृत और ईश्वरीय अवदान है।।?
डोंगरेजी महाराज
भारत वर्ष में कथावाचक के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके डोंगरेजी महाराज एकमात्र ऐसे कथावाचक थे जो दान का रूपया अपने पास नही रखते थे और न ही लेते थे।
जिस जगह कथा होती थी लाखों रुपये उसी नगर के किसी सामाजिक कार्य के लिए दान कर दिया करते थे। उनके अन्तिम प्रवचन में गोरखपुर में कैंसर अस्पताल के लिये एक करोड़ रुपये उनके चौपाटी पर जमा हुए थे।
उनकी पत्नी आबू में रहती थीं। पत्नी की मृत्यु के पांचवें दिन उन्हें खबर लगी । बाद में वे अस्थियां लेकर गोदावरी में विसर्जित करने मुम्बई के सबसे बड़े धनाढ्य व्यक्ति रति भाई पटेल के साथ गये।
नासिक में डोंगरेजी ने रतिभाई से कहा कि रति हमारे पास तो कुछ है ही नही, और इनका अस्थि विसर्जन करना है। कुछ तो लगेगा ही क्या करें ?
फिर खुद ही बोले - "ऐसा करो कि इसका जो मंगलसूत्र एवं कर्णफूल हैं, इन्हे बेचकर जो रूपये मिले उन्हें अस्थि विसर्जन में लगा देते हैं।"
इस बात को अपने लोगों को बताते हुए कई बार रोते - रोते रति भाई ने कहा कि "जिस समय यह सुना हम जीवित कैसे रह गये, बस हमारा हार्ट फैल नही हुआ।"
हम आपसे कह नहीं सकते, कि हमारा क्या हाल था। जिन महाराजश्री के इशारे पर लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, वह महापुरूष कह रहे हैं कि पत्नी के अस्थि विसर्जन के लिये पैसे नही हैं और हम खड़े-खड़े सुन रहे थे ? फूट-फूट कर रोने के अलावा एक भी शब्द मुहँ से नही निकल रहा था।
ऐसे वैराग्यवान और तपस्वी संत-महात्माओं के बल पर ही सनातन धर्म की प्रतिष्ठा है।
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इस प्रसंग को सुन कर आजकल के हमारे धर्मद्रोही तथाकथित कथावाचकों को देखो जिन्होंने पैसों के लिए अपने धर्म को ही बदनाम कर दिया
करोडों कमाने के लिए
अपामार्ग के चमत्कारी प्रयोग
अपामार्ग
अपामार्ग को #चिरचिटा, #लटजीरा, #चिरचिरा, #चिचड़ा आदि नामों से जाना जाता हैं...।
इस समय सड़क हो या नदी-तालाब किनारे या बंजर भूमि हर कहीं आपको अपामार्ग का पौधा आसानी से दिख जावेगा....हमारे मालवांचल में तो हर गांव कस्बे में यह बड़ी मात्रा में पैदा होता हैं.... पर इसको अपामार्ग के नाम से कोई नही जानता,,हर कोई #आंधीझाड़ा कहता हैं,जो कहीं न कहीं इसका अपमान ही है क्योंकि आंधीझाड़ा का मतलब हमारे इधर बेकार की झाड़ी से लगाया जाता हैं....। की
गुणों की खान "अपामार्ग"
अपामार्ग एक बहुओषधिय पौधा हैं, जिसका तना,जड़,पत्ते,बीज सभी का औषधीय मूल्य है....
अपामार्ग को अघाडा ,लटजीरा या चिरचिटा आदि नामों से जाना जाता हैं....।
आंधीझाड़ा के पत्ते ऋषिपंचमी ,गणेश पूजा , हरतालिका पूजा,मंगला गौरी पूजा आदि समय काम आते है .शायद पूजा में इस्तेमाल ही इसलिए होता होगा ताकि हम इनके आयुर्वेदिक रूप को पहचान सके और ज़रुरत के समय इनका सदुपयोग करना ना भूले....।
इसके पत्तों को पीसकर लगाने से फोड़े फुंसी और गांठ तक ठीक हो जाती है ...अपामार्ग की जड़ को कमर में धागे से बाँध देने से प्रसव सुख पूर्वक हो जाता है, प्रसव के बाद तुरन्त इसे हटा देना चाहिए....।
ज़हरीले कीड़े काटने पर इसके पत्तों को पीसकर लगा देने से आराम मिलता है ...वहीं इसकी ५-१० ग्राम जड़ को पानी के साथ घोलकर लेने से पथरी निकल जाती है ....इसके बीज चावल की तरह दीखते है ,जिन्हें #तंडुल कहते है .....यदि स्वस्थ व्यक्ति इस तंडुल की खीर खा ले तो उसकी भूख-प्यास आदि समाप्त हो जाती है ,पर इसकी खीर उनके लिए वरदान है जो भयंकर मोटापे के बाद भी भूख को नियंत्रित नहीं कर पाते,कालांतर में ऋषि-मुनि इस प्रकार की खीर का उपयोग कर लंबी साधना को पूर्ण करते रहे है....।
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वाक् सिद्धि
सबसे अहम बात तंत्र में अपामार्ग का बहुत सारा प्रयोग जिसमें से वाक् सिद्धि के लिए ,अपामार्ग दातुन निरंतर करने से आपको वाक् सिद्धि मिलता ही है। यह प्रयोग हजारों लोगों ने आजमाया हुआ है।
सम्मोहन
सफेद अपामार्ग की जड़ को केशर और गौलोचन घस कर तिलक लगाने से जग सम्मोहन होता हैं।
सामाजिक जीवन और मर्यादा
सार्वजनिक जीवन में मर्यादा से रहें
जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है। ठीक उसी प्रकार किसी भी लड़की को मनचाही अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनने का अधिकार नहीं है क्योंकि जीवन सार्वजनिक है। एकांत रोड में स्पीड चलाओ, एकांत जगह में अर्द्धनग्न रहो। मगर सार्वजनिक जीवन में नियम मानने पड़ते हैं।
भोजन जब स्वयं के पेट मे जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खायेगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी।
लड़कियों का अर्धनग्न वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है, जितना लड़को का शराब पीकर गाड़ी चलाने का मुद्दा उठाना जरूरी है। दोनों में एक्सीडेंट होगा ही।
अपनी इच्छा केवल घर की चहारदीवारी में उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन मे कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा लड़का हो या लड़की उसे रखनी ही होगी।
घूंघट और बुर्का जितना गलत है, उतना ही गलत अर्धनग्नता युक्त वस्त्र गलत है। बड़ी उम्र की लड़कियों का बच्चों की सी फ़टी निक्कर पहनकर छोटी टॉप पहनकर फैशन के नाम पर घूमना भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है।
जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र हो, ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढील छोड़ना भी गलत है।
सँस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है, गाड़ी के दोनों पहिये में सँस्कार की हवा चाहिए, एक भी पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब होगा।
नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है, तो सबसे मॉडर्न जानवर है जिनके संस्कृति में कपड़े ही नही है। अतः जानवर से रेस न करें, सभ्यता व संस्कृति को स्वीकारें। कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिंन पास कर सकता है, सभ्य इंसान को यह अधिकार नहीं है। उसे सभ्यता से बन्द टॉयलेट उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री को उचित वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन मे करना ही होगा।
अतः विनम्र अनुरोध है, सार्वजनिक जीवन मे मर्यादा न लांघें, सभ्यता से रहें।
🙏🙏राणा जी🙏🙏
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जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है। ठीक उसी प्रकार किसी भी लड़की को मनचाही अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनने का अधिकार नहीं है क्योंकि जीवन सार्वजनिक है। एकांत रोड में स्पीड चलाओ, एकांत जगह में अर्द्धनग्न रहो। मगर सार्वजनिक जीवन में नियम मानने पड़ते हैं।
भोजन जब स्वयं के पेट मे जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खायेगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी।
लड़कियों का अर्धनग्न वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है, जितना लड़को का शराब पीकर गाड़ी चलाने का मुद्दा उठाना जरूरी है। दोनों में एक्सीडेंट होगा ही।
अपनी इच्छा केवल घर की चहारदीवारी में उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन मे कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा लड़का हो या लड़की उसे रखनी ही होगी।
घूंघट और बुर्का जितना गलत है, उतना ही गलत अर्धनग्नता युक्त वस्त्र गलत है। बड़ी उम्र की लड़कियों का बच्चों की सी फ़टी निक्कर पहनकर छोटी टॉप पहनकर फैशन के नाम पर घूमना भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है।
जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र हो, ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढील छोड़ना भी गलत है।
सँस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है, गाड़ी के दोनों पहिये में सँस्कार की हवा चाहिए, एक भी पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब होगा।
नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है, तो सबसे मॉडर्न जानवर है जिनके संस्कृति में कपड़े ही नही है। अतः जानवर से रेस न करें, सभ्यता व संस्कृति को स्वीकारें। कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिंन पास कर सकता है, सभ्य इंसान को यह अधिकार नहीं है। उसे सभ्यता से बन्द टॉयलेट उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री को उचित वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन मे करना ही होगा।
अतः विनम्र अनुरोध है, सार्वजनिक जीवन मे मर्यादा न लांघें, सभ्यता से रहें।
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गुमनाम महापुरुष
करीब तीस साल का एक युवक मुंबई के प्रसिद्ध टाटा कैंसर अस्पताल के सामने फुटपाथ पर खड़ा था।
युवक वहां अस्पताल की सीढिय़ों पर मौत के द्वार पर खड़े मरीजों को बड़े ध्यान दे देख रहा था,
जिनके चेहरों पर दर्द और विवषता का भाव स्पष्ट नजर आ रहा था।
इन रोगियों के साथ उनके रिश्तेदार भी परेशान थे।
थोड़ी देर में ही यह दृष्य युवक को परेशान करने लगा।
वहां मौजूद रोगियों में से अधिकांश दूर दराज के गांवों के थे, जिन्हे यह भी नहीं पता था कि क्या करें, किससे मिले? इन लोगों के पास दवा और भोजन के भी पैसे नहीं थे।
टाटा कैंसर अस्पताल के सामने का यह दृश्य देख कर वह तीस साल का युवक भारी मन से घर लौट आया।
उसने यह ठान लिया कि इनके लिए कुछ करूंगा। कुछ करने की चाह ने उसे रात-दिन सोने नहीं दिया। अंतत: उसे एक रास्ता सूझा..
उस युवक ने अपने होटल को किराये पर देक्रर कुछ पैसा उठाया। उसने इन पैसों से ठीक टाटा कैंसर अस्पताल के सामने एक भवन लेकर धर्मार्थ कार्य(चेरिटी वर्क) शुरू कर दिया।
उसकी यह गतिविधि अब 27 साल पूरे कर चुकी है और नित रोज प्रगति कर रही है। उक्त चेरिटेबिल संस्था कैंसर रोगियों और उनके रिश्तेदारों को निशुल्क भोजन उपलब्ध कराती है।
करीब पचास लोगों से शुरू किए गए इस कार्य में संख्या लगातार बढ़ती गई। मरीजों की संख्या बढऩे पर मदद के लिए हाथ भी बढऩे लगे। शर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम को झेलने के बावजूद यह काम नहीं रूका।
यह पुनीत काम करने वाले युवक का नाम था हरकचंद सावला।
एक काम में सफलता मिलने के बाद हरकचंद सावला जरूरतमंदों को निशुल्क दवा की आपूर्ति शुरू कर दिए।
इसके लिए उन्होंने मैडीसिन बैंक बनाया है, जिसमें तीन डॉक्टर और तीन फार्मासिस्ट स्वैच्छिक सेवा देते हैं। इतना ही नहीं कैंसर पीडि़त बच्चों के लिए खिलौनों का एक बैंक भी खोल दिया गया है। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि सावला द्वारा कैंसर पीडि़तों के लिए स्थापित 'जीवन ज्योतÓ ट्रस्ट आज 60 से अधिक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है।
57 साल की उम्र में भी सावला के उत्साह और ऊर्जा 27 साल पहले जैसी ही है।
मानवता के लिए उनके योगदान को नमन करने की जरूरत है।
यह विडंबना ही है कि आज लोग 20 साल में 200 टेस्ट मैच खेलने वाले सचिन को कुछ शतक और तीस हजार रन बनाने के लिए भगवान के रूप में देखते हैं।
जबकि 10 से 12 लाख कैंसर रोगियों को मुफ्त भोजन कराने वाले को कोई जानता तक नहीं।
यहां मीडिया की भी भूमिका पर सवाल है, जो सावला जैसे लोगों को नजर अंदाज करती है।
यहां यह भी बता दे कि गूगल के पास सावला की एक तस्वीर तक नहीं है।
यह हमे समझना होगा कि पंढरपुर, शिरडी में साई मंदिर, तिरुपति बाला जी आदि स्थानों पर लाखों रुपये दान करने से भगवान नहीं मिलेगा।
भगवान हमारे आसपास ही रहता है। लेकिन हम बापू, महाराज या बाबा के रूप में विभिन्न स्टाइल देव पुरुष के पीछे पागलों की तरह चल रहे हैं।
इसके बाजवूद जीवन में कठिनाइयां कम नहीं हो रही हैं और मृत्यु तक यह बनी रहेगी।
परतुं बीते 27 साल से कैंसर रोगियों और उनके रिश्तेदारों को हरकचंद सावला के रूप में भगवान ही मिल गया है।
इस संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं ताकि हरकचंद्र सावला को उनके हिस्से की प्रसिद्धि मिल सके और ऐसे कार्य करने वालो को बढावा मिले
धन्यवाद ।
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बेटी पराया धन नहीं अनमोल धन है।
दुल्हन ने विदाई के वक़्त शादी को किया नामंजूर
(कहानी आपको सोचने पर विवश करेगी।)
शादी के बाद विदाई का समय था, नेहा अपनी माँ से मिलने के बाद अपने पिता से लिपट कर रो रही थीं। वहाँ मौजूद सब लोगों की आंखें नम थीं। नेहा ने घूँघट निकाला हुआ था, वह अपनी छोटी बहन के साथ सजाई गयी गाड़ी के नज़दीक आ गयी थी। दूल्हा अविनाश अपने खास मित्र विकास के साथ बातें कर रहा था। विकास -'यार अविनाश... सबसे पहले घर पहुंचते ही होटल अमृतबाग चलकर बढ़िया खाना खाएंगे...
यहाँ तेरी ससुराल में खाने का मज़ा नहीं आया।' तभी पास में खड़ा अविनाश का छोटा भाई राकेश बोला -'हा यार..पनीर कुछ ठीक नहीं था...और रस मलाई में रस ही नहीं था।' और वह ही ही ही कर जोर जोर से हंसने लगा। अविनाश भी पीछे नही रहा -'अरे हम लोग अमृतबाग चलेंगे, जो खाना है खा लेना... मुझे भी यहाँ खाने में मज़ा नहीं आया..रोटियां भी गर्म नहीं थी...।' अपने पति के मुँह से यह शब्द सुनते ही नेहा जो घूँघट में गाड़ी में बैठने ही जा रही थी, वापस मुड़ी, गाड़ी की फाटक को जोर से बन्द किया... घूँघट हटा कर अपने पापा के पास पहुंची...।
अपने पापा का हाथ अपने हाथ में लिया..'मैं ससुराल नहीं जा रही पिताजी... मुझे यह शादी मंजूर नहीं।' यह शब्द उसने इतनी जोर से कहे कि सब लोग हक्के बक्के रह गए...सब नज़दीक आ गए। नेहा के ससुराल वालों पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा... मामला क्या था यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था। तभी नेहा के ससुर राधेश्यामजी ने आगे बढ़कर नेहा से पूछा -- 'लेकिन बात क्या है बहू? शादी हो गयी है...विदाई का समय है अचानक क्या हुआ कि तुम शादी को नामंजूर कर रही हो?' अविनाश की तो मानो दुनिया लूटने जा रही थी...वह भी नेहा के पास आ गया, अविनाश के दोस्त भी।
सब लोग जानना चाहते थे कि आखिर एन वक़्त पर क्या हुआ कि दुल्हन ससुराल जाने से मना कर रही है।
नेहा ने अपने पिता दयाशंकरजी का हाथ पकड़ रखा था... नेहा ने अपने ससुर से कहा -'बाबूजी मेरे माता पिता ने अपने सपनों को मारकर हम बहनों को पढ़ाया लिखाया व काबिल बनाया है। आप जानते है एक बाप केलिए बेटी क्या मायने रखती है?? आप व आपका बेटा नहीं जान सकते क्योंकि आपके कोई बेटी नहीं है।' नेहा रोती हुई बोले जा रही थी- 'आप जानते है मेरी शादी केलिए व शादी में बारातियों की आवाभगत में कोई कमी न रह जाये इसलिए मेरे पिताजी पिछले एक साल से रात को 2-3 बजे तक जागकर मेरी माँ के साथ योजना बनाते थे... खाने में क्या बनेगा...रसोइया कौन होगा...पिछले एक साल में मेरी माँ ने नई साड़ी नही खरीदी क्योकि मेरी शादी में कमी न रह जाये... दुनिया को दिखाने केलिए अपनी बहन की साड़ी पहन कर मेरी माँ खड़ी है... मेरे पिता की इस डेढ़ सौ रुपये की नई शर्ट के पीछे बनियान में सौ छेद है.... मेरे माता पिता ने कितने सपनों को मारा होगा...न अच्छा खाया न अच्छा पीया...
बस एक ही ख्वाहिश थी कि मेरी शादी में कोई कमी न रह जाये...आपके पुत्र को रोटी ठंडी लगी!!! उनके दोस्तों को पनीर में गड़बड़ लगी व मेरे देवर को रस मलाई में रस नहीं मिला...इनका खिलखिलाकर हँसना मेरे पिता के अभिमान को ठेस पहुंचाने के समान है...। नेहा हांफ रही थी...।' नेहा के पिता ने रोते हुए कहा -'लेकिन बेटी इतनी छोटी सी बात..।' नेहा ने उनकी बात बीच मे काटी -'यह छोटी सी बात नहीं है पिताजी...मेरे पति को मेरे पिता की इज्जत नहीं... रोटी क्या आपने बनाई! रस मलाई ... पनीर यह सब केटर्स का काम है... आपने दिल खोलकर व हैसियत से बढ़कर खर्च किया है, कुछ कमी रही तो वह केटर्स की तरफ से... आप तो अपने दिल का टुकड़ा अपनी गुड़िया रानी को विदा कर रहे है??? आप कितनी रात रोयेंगे क्या मुझे पता नहीं... माँ कभी मेरे बिना घर से बाहर नही निकली... कल से वह बाज़ार अकेली जाएगी... जा पाएगी? जो लोग पत्नी या बहू लेने आये है वह खाने में कमियां निकाल रहे...
मुझमे कोई कमी आपने नहीं रखी, यह बात इनकी समझ में नही आई??' दयाशंकर जी ने नेहा के सर पर हाथ फिराया - 'अरे पगली... बात का बतंगड़ बना रही है... मुझे तुझ पर गर्व है कि तू मेरी बेटी है लेकिन बेटा इन्हें माफ कर दे.... तुझे मेरी कसम, शांत हो जा।' तभी अविनाश ने आकर दयाशंकर जी के हाथ पकड़ लिए -'मुझे माफ़ कर दीजिए बाबूजी...मुझसे गलती हो गयी...मैं ...मैं।' उसका गला बैठ गया था..रो पड़ा था वह। तभी राधेश्यामजी ने आगे बढ़कर नेहा के सर पर हाथ रखा -'मैं तो बहू लेने आया था लेकिन ईश्वर बहुत कृपालु है उसने मुझे बेटी दे दी... व बेटी की अहमियत भी समझा दी... मुझे ईश्वर ने बेटी नहीं दी शायद इसलिए कि तेरे जैसी बेटी मेरी नसीब में थी...अब बेटी इन नालायकों को माफ कर दें... मैं हाथ जोड़ता हूँ तेरे सामने... मेरी बेटी नेहा मुझे लौटा दे।' और दयाशंकर जी ने सचमुच हाथ जोड़ दिए थे व नेहा के सामने सर झुका दिया। नेहा ने अपने ससुर के हाथ पकड़ लिए...'बाबूजी।' राधेश्यामजी ने कहा - 'बाबूजी नहीं..पिताजी।' नेहा भी भावुक होकर राधेश्याम जी से लिपट गयी थी। दयाशंकर जी ऐसी बेटी पाकर गौरव की अनुभूति कर रहे थे।
नेहा अब राजी खुशी अपने ससुराल रवाना हो गयी थीं... पीछे छोड़ गयी थी आंसुओं से भीगी अपने माँ पिताजी की आंखें, अपने पिता का वह आँगन जिस पर कल तक वह चहकती थी.. आज से इस आँगन की चिड़िया उड़ गई थी किसी दूर प्रदेश में.. और किसी पेड़ पर अपना घरौंदा बनाएगी।
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यह कहानी लिखते वक्त मैं उस मूर्ख व्यक्ति के बारे में सोच रहा था जिसने बेटी को सर्वप्रथम 'पराया धन' की संज्ञा दी होगी। बेटी माँ बाप का अभिमान व अनमोल धन होता है, पराया धन नहीं। कभी हम शादी में जाये तो ध्यान रखें कि पनीर की सब्ज़ी बनाने में एक पिता ने कितना कुछ खोया होगा व कितना खोएगा... अपना आँगन उजाड़ कर दूसरे के आंगन को महकाना कोई छोटी बात नहीं। खाने में कमियां न निकाले... । बेटी की शादी में बनने वाले पनीर, रोटी या रसमलाई पकने में उतना समय लगता है जितनी लड़की की उम्र होती है। यह भोजन सिर्फ भोजन नहीं, पिता के अरमान व जीवन का सपना होता है। बेटी की शादी में बनने वाले पकवानों में स्वाद कही सपनों के कुचलने के बाद आता है व उन्हें पकने में सालों लगते है, बेटी की शादी में खाने की कद्र करें। अगर उपर्युक्त बातें आपको अच्छी लगे तो कृपया दूसरों से भी साझा करें.... एक कदम बेटियों के सम्मान के खातिर।
साहसी बालक का कहानी
शहर के बाहर एक विशाल पार्क था। उसी के साथ एक गहरी नदी तीव्र वेग से बहती थी।
शाम के समय बच्चे, बूढ़े और जवान सभी पार्क में बिछी हरी हरी दूब, क्यारियों में खिले रंग बिरंगे फूल, तरह तरह के पेड़, लताएं और फव्वारों के बीच बैठकर फुरसत के क्षणों का आनन्द लूटते थे।
एक दिन पार्क में दो बच्चे खेलते कूदते नदी के तट पर पहुंच गये। शरारत तो बच्चों का स्वभाव है। दोनों एक दूसरे के साथ धक्का मुक्की करते हुए नदी में जा गिरे।
नदी में बहते-डूबते बच्चों पर मां की निगाह पड़ी और वह एकदम बदहवास सी पागलों की तरह चिल्लाने लगी- अरे, कोई मेरे बच्चों को बचाओ। देखो, मेरे दोनों बच्चे डूब रहे हैं। कोई तो सहायता करो।
स्त्री के चिल्लाने की आवाज सुनकर वहां भीड़ इकटठे हो गई। नदी गहरी थी। किसी की भी नदी में कूदने की हिम्मत नहीं हो रही थी। सब मूक दर्शक बने खड़े थे। मां हाथ पीट कर चिल्ला रही थी।
वह स्वयं ही दौड़कर नदी में कूदने ही वाली थी कि तभी अचानक कहीं से एक लड़का दौड़ता हुआ आया। उसने बच्चों को डूबते हुए देखा तो प्राणों की परवाह किये बिना ही उसने तुरन्त नदी में छलांग लगा दी।
वह तीर की तरह तैर कर, डूबते-उठते बच्चों के पास पहुंचा। उन्हें पकड़ कर पीठ पर लादा और तैरते हुए बच्चों को सुरक्षित किनारे पर ले आया। सभी दर्शक उसकी उदार साहसिकता को देखकर अचम्भित रह गये।
सभी मुक्त कंठ से लड़के की प्रशंसा करते हुए कह रहे थे यह तो कोई मसीहा है जो अचानक प्रकट होकर बच्चों की रक्षा के लिये आ गया।
बच्चों की मां ने रोते रोते लड़के को सैंकड़ों दुआएं दे डाली। उसने कई बार प्यार से उसका माथा चूमा। इस साहसी और वीर बालक का जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था।
इस बालक में आरंभ से ही उदारता, साहसिकता और परोपकारिता कूट कूट कर भरी हुई थी। वह साहसी तो था ही, साथ ही वह सादगी पसंद, सत्यवादी और न्यायप्रिय भी था।
अपने इन्हीं गुणों के कारण वह हमेशा प्रगति के पथ पर आगे ही आगे बढ़ता रहा|
जिस मनुष्य में सादगी हो, सच्चाई हो, साहस और धैर्य हो, मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों से जूझने का दिल हो तभी वह व्यक्ति महापुरूष बनेगा।
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नकल में अकल कैसे (कहानी)
एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था। पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था।
वह कौआ बड़ा चालाक और धूर्त था। उसकी कोशिश सदा यही रहती थी कि बिना मेहनत किए खाने को मिल जाए।
पेड़ के आसपास खोह में खरगोश रहते थे। जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाते।
एक दिन कौए ने सोचा-‘वैसे तो ये चालाक खरगोश मेरे हाथ आएंगे नहीं, अगर इसका नर्म मांस खाना है तो मुझे भी बाज की तरह करना होगा। एकाएक झपट्टा मारकर एक को पकड़ लूंगा।’
दूसरे दिन कौए ने भी एक खरगोश को दबोचने की बात सोचकर ऊंची उड़ान भरी।
फिर उसने खरगोश को पकड़ने के लिए बाज की तरह जोर से झपट्टा मारा। अब भला कौआ बाज का क्या मुकाबला करता।
खरगोश ने उसे देख लिया और झट वहां से भागकर चट्टान के पीछे छिप गया। कौआ अपनी ही झोंक में उस चट्टान से जा टकराया।
नतीजा, उसकी चोंच और गरदन टूट गई और उसने वहीं तड़प कर दम तोड़ दिया।
शिक्षा/Moral:-नकल करने के लिए भी, अकल का होना अति आवश्यक है।
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बीरबल ने चोर को पकड़ा
एक बार राजा अकबर के प्रदेश में चोरी हई। इस चोरी में एक चोर नें एक व्यापारी के घर से बहुत ही कीमती सामान चुरा लिया था। उस व्यापारी को इस बात पर तो पूरा विश्वास था कि चोर उसी के 10 नौकरोंमें से कोई एक था पर वह यह नहीं जानता था की वह कौन है।
यह जानने के लिए की चोर कौन है ! वह व्यापारी बीरबल के पास गया और उसने बीरबल से मदद मांगी। बीरबल नें भी इस बात पर हाँ कर दिया और अपने सिपाहियों से कहा कि सभी 10 नौकरों को जेल में डाल दिया जाये।
यह सुनते ही उसी दिन सिपाहियों द्वारा सभी नौकरों को पकड़ लिया गया। बीरबल नें सबसे पुछा कि चोरी किसने किया है परन्तु किसी नें भी यह मानने को इंकार कर दिया की चोरी उसने किया है।
बीरबल नें थोड़ी देर सोचा, और कुछ देर बाद वह दस समान लम्बाई की छड़ी ले कर आये और सभी चुने हुए लोगों को एक-एक छड़ी पकड़ा दिया। पर छड़ी पकडाते हुए बीरबल नें एक बात कहा ! उस इंसान की छड़ी 2 इंच बड़ी हो जाएगी जिस व्यक्ति नें यह चोरी की है। यह कह कर बीरबल चले गए और अपने सिपाहियों को निर्देश दिया की सुबह तक उनमें से किसी भी व्यक्ति को छोड़ा ना जाये।
जब बीरबल नें सुबह सभी नौकरों की छड़ी को ध्यान से देखा तो पता चला उनमें से एक नौकर की छड़ी 2 इंच छोटी थी। यह देकते ही बीरबल ने कहा ! यही है चोर।
बाद में यह देख-कर उस व्यापारी नें बीरबल से प्रश्न किया कि कैसे उन्हें पता चला की चोर वही है। बीरबल नें कहा कि चोर नें अपने छड़ी के 2 इंच बड़े हो जाने के डर से रात के समय ही अपने छड़ी को 2 इंच छोटा कर दिया था।
सत्य कभी नहीं छुपता इसलिए जीवन में कभी भी झूट मत बोलो।
Sab kuch
माँ पर शायरी
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