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दिशाशूल

 


दिशाशूल क्या होता है ? इसके बारे मे सम्पूर्ण जानकारी

 

दिशाशूल क्या होता है ? क्यों बड़े बुजुर्ग तिथि देख कर आने जाने की रोक टोक करते हैं ? आज की युवा पीढ़ी भले हि उन्हें आउटडेटेड कहे ..लेकिन बड़े सदा बड़े हि रहते हैं ..इसलिए आदर करे उनकी बातों का ;दिशाशूल समझने से पहले हमें दस दिशाओं के विषय में ज्ञान होना आवश्यक है| हम सबने पढ़ा है कि दिशाएं ४ होती हैं |१) पूर्व२) पश्चिम३) उत्तर४) दक्षिण

 

परन्तु जब हम उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं तो ज्ञात होता है कि वास्तव मेंदिशाएँ दस होती हैं |१) पूर्व२) पश्चिम३) उत्तर४) दक्षिण५) उत्तर - पूर्व६) उत्तर - पश्चिम७) दक्षिण – पूर्व८) दक्षिण – पश्चिम९) आकाश१०) पातालहमारे सनातन धर्म के ग्रंथो में सदैव १० दिशाओं का ही वर्णन किया गया है,जैसे हनुमान जी ने युद्ध इतनी आवाज की किउनकी आवाज दसों दिशाओं में सुनाईदी | हम यह भी जानते हैं कि प्रत्येक दिशा के देवता होते हैं |

 

दसों दिशाओं को समझने के पश्चात अब हम बात करते हैं वैदिक ज्योतिष की |ज्योतिष शब्द “ज्योति” से बना है जिसका भावार्थ होता है “प्रकाश” |वैदिक ज्योतिष में अत्यंत विस्तृत रूप में मनुष्य के जीवन की हरपरिस्तिथियों से सम्बन्धित विश्लेषण किया गया है कि मनुष्य यदि इसको तनिकभी समझले तो वह अपने जीवन में उत्पन्न होने वाली बहुत सी समस्याओं से बचसकता है और अपना जीवन सुखी बना सकता है |


दिशाशूल क्या होता है ?

 दिशाशूल वह दिशा है जिस तरफ यात्रा नहीं करनाचाहिए | हर दिन किसी एक दिशा की ओर दिशाशूल होता है |

१) सोमवार और शनिवार को पूर्व

२) रविवार और शुक्रवार को पश्चिम

३) मंगलवार और बुधवार को उत्तर

४) गुरूवार को दक्षिण

५) सोमवार और गुरूवार को दक्षिण-पूर्व

६) रविवार और शुक्रवार को दक्षिण-पश्चिम

७) मंगलवार को उत्तर-पश्चिम

८) बुधवार और शनिवार को उत्तर-पूर्व


परन्तु यदि एक ही दिन यात्रा करके उसी दिन वापिस आ जाना हो तो ऐसी दशामें दिशाशूल का विचार नहीं किया जाता है | परन्तु यदि कोई आवश्यक कार्यहो ओर उसी दिशा की तरफ यात्रा करनी पड़े, जिस दिन वहाँ दिशाशूल हो तो यहउपाय करके यात्रा कर लेनी चाहिए 

रविवार – दलिया और घी खाकर

सोमवार – दर्पण देख कर

मंगलवार – गुड़ खा कर

बुधवार – तिल, धनिया खा कर

गुरूवार – दही खा कर

शुक्रवार – जौ खा कर

शनिवार – अदरक अथवा उड़द की दाल खा कर

साधारणतया दिशाशूल का इतना विचार नहीं किया जाता परन्तु यदि व्यक्ति केजीवन का अति महत्वपूर्ण कार्य है तो दिशाशूल का ज्ञान होने से व्यक्तिमार्ग में आने वाली बाधाओं से बच सकता है | आशा करते हैं कि आपके जीवनमें भी यह ज्ञान उपयोगी सिद्ध होगा तथा आप इसका लाभ उठाकर अपने दैनिक जीवनमें सफलता प्राप्त करेंगे |


गुरु मंत्र से लाभ

  


विषेश :- कोई भी मंत्र जप करने से पहले गुरु आज्ञा से लेना जरूरी है।और बिना गुरु दिक्षा लिए गुरु मंत्रउच्चारण नहीं करनी चाहिए।

સमस्त देवता मंत्र के अधीन होते है और

यदि गुरु मंत्र का जप हो, तो किसी अन्य मंत्र को जपने की आवश्यकता ही शेष

नहीं रह जाती, हमारे यहां जितने भी शास्त्र, वेद. पुराण लिखे

गये, वे सब "गुरु" इन दो अक्षरों पर ही आधारित है जो

देवताओं से भी उच्च एवं पूजनीय है, सम्पूर्ण ब्रह्मांड का तेज

जिनके भीतर समाहित है

गुरु मंत्र अपने आपमें छोटा होते हुए भी अत्यधिक

क्षमताओं से ओत-प्रोत होता है, क्योंकि इसके एक-एक

शब्द का अर्थ अपने आपमें मूल्यवान है, पूरे शरीर को सूर्य

के समान बना देने की क्षमता उसमें समाहित है. जो अचूक है,तीक्ष्ण एवं प्रभावकारी है. पर शरीर को चैतन्यता प्रदान करने में सक्षम है... यह किसी को यूँही नहीं प्राप्त हो जाता है, इसके पीछे एक गहन चितँन, धारण छिपी होती है, पूर्ण चेतना युक्त इस गुरु मंत्र में शिव ही की पूर्णता निहित है। जो कार्य किसी

अन्य देवी-देवता के लम्बे-चौडे श्लोक य स्तुति गान से नहीं हो पाता,उसे गुरु मंत्र तत्कालकर दिखाता है मानव की आवश्यकताओं के अनुसार ही यंत्रों की रचना प्राचीन काल में की गई, परन्तु क्लिष्ट होने के कारण, सस्वर व रचित उच्चारण न कर पाने के कारण इनका विपरीत प्रभाव ही अधिक देखने को मिला और

मानव की समस्याएं, परेशानियां, बाधाएं रह गई वहीं की वहीं। आशा को निराशा में बदलते हुए देखा, तभी हमारे

ऋषि इस विषय पर गम्भीरता से विचार का इस निष्कर्ष पर पहुंचे, कि गुरु मंत्र ही सबसे श्रेष्ठ और तीब्र प्रभावकारी है, जिसका सस्वर उच्चारण भी आसानी से किया जा सकता है,

जो अन्य मंत्रों की अपेक्षा महत्वपूर्ण भी है।

यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ जप किया

जाये,तो समस्याओं से पार पाने के लिए अन्य कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती, क्योंकि गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश में भी अधिक तेजस्वी कहा गया है, वे ही ज्ञान व सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं, भोग और मोक्ष दोनों को प्रदान करने वाले हैं.समस्त देवी-देवता तो उन्हीं के इंगित पर

नृत्य करते रहते हैं। प्रत्येक गृहस्थ साधक के लिए गुरु मंत्र

आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है, जो उनके कष्टों को

हमेशा के लिए दूर करने वाला अचूक मंत्र है। जो जिस

कामना से जिस भाव से इसे जपता है, उसे उसके अनुसार ही

फल सिद्धि प्राप्त होती है। यदि इसे पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से जपा जाय, तो सफलता निश्चय ही प्राप्त होती है। इसके माध्यम से विभिन्न पुरुषार्थो की सिद्धि होती ही है, जो इस

प्रकार है

स्वयं_के_अभ्युदय_के_लिए


जीवन में यदि आप चाहते हैं कि सफलता आपके

कदम चूमे और यदि उन्नति के उच्च शिकार पर पहुंचना है, तो गुरु मंत्र से उत्तम और कोई प्रदर्शक नहीं, जो तुम्हें उच्चता प्रदान कर सके, श्रेष्ठता प्रदान कर सके, तुम्हारे जीवन का अभ्युदय कर सके। साधक "अभ्युदय माला"से निम्न मंत्र का सवा लाख जप करें-


मंत्र

ॐवं परम तत्त्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः




विपत्तियों के नाश के लि ए


मानव जीवन है, तो दुःख भी होंगे, कठिनाइयां भी

होगी और विपत्तियां भी आयेंगी ही, पर वदि अन्य कहीं

भटकने की अपेक्षा गुरु मंत्र जप पूर्ण निष्ठा के साथ कर लिया जाय, तो समस्त विपत्तियों का नाश स्वतः ही होने लगता है। निम्न मंत्र का "आपदहन्ता माला" से सवा लाख जप करें

मंत्र

ॐ खं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः


रोग नाश के लिए


गुरु मंत्र से कैसा भी रोग हो, जड़-मूल से समाप्त

किया जा सकता है। इससे श्रेष्ठ अन्य कोई उपचार नहीं है, जो कि मनुष्य को रोग मुक्त कर पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान कर सके। निम्न मंत्र का "रुद्र माला" से सवा लाख जप करें मंत्र

 ॐरं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः


सौभाग्य प्राप्ति के लिए


यदि बार-बार प्रयल करने पर भी भाग्य साथ न दे,

तो उस व्यक्ति से दुर्भाग्यशाली दूसरा कोई नहीं होता कि

यदि व्यक्ति,"सौभाग्य माला" से निम्न मंत्र का सवा लाख

जप कर ले तो उससे ज्यादा सौभाग्यशाली भी अन्य कोई नहीं होता, क्योंकि यह दुर्भाग्य की लकीरों को मिटाकर सौभाग्य के अक्षर अंकित कर देने वाला अत्यन्त तेजस्वी मन्त्र है।

मंत्र

ॐ क्लीं परम् तत्वाव नारायणाय गुरुभ्यो नमः


सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिए


इस मंत्र के माध्यम से अपनी इच्छानुकूल पत्नी को प्राप्त

 किया ज सकता है, जो सुलक्षणा हो, सौन्दर्यती हो, साक्षात् लक्ष्मी हो, प्रीया हो, परन्तु सम्पूर्ण जीवन ही तनाव ग्रस्त हो जाता है. निम्न मंत्र का "स्निग्धा माला" से सवा लाख जप करें-

मंत्र

ॐ सुं हुं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः


दारिद्रय, दुःखादि के नाश के लिए


इस मंत्र के माध्यम से जीवन में व्याप्त दुःख,

दैत्यता, दरिद्रता जैसे शत्रुओं का नाश कर जीवन में सुख,

समृद्धि, सम्पन्नता प्राप्त करते हुए जीवन को उल्लासित व प्रफुल्लित बनाया जा सकता है। “ऐश्वर्यबर्द्धिनी माला" से निम्न मंत्र का सवा लाखा जप करें

मंत्र

ॐ क्रीं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः


समस्त साधनाओं में सफलत प्राप्ति के लिए 


इससे बड़ा और सर्वश्रेष्ठ उपाय अब नहीं है, जो

कि बड़ी-बड़ी उच्चकोटि की साधनाओं में सफलता प्रदान

करने में सक्षम हो, क्योंकि गुरु ही मात्र ऐसे व्यक्ति है, जो शुभ और लाभ के प्रदाता है और समस्त न्यूनताओं को समाप्त करने वाले हैं। कैसी भी साधना हो या जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, सफला निश्चित प्राप्त होती ही है। निम्न मंत्र का 'साफल्य माला" से सवा लाख जप करें -

मंत्र


ॐहीं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः


इन वीजाक्षरों से यूक्त गुरु मंत्र के सवा लाख

जप से  निश्चित हो उपरोक्त लाभ साधक को प्राप्त होने

है। यह एक संन्यासी के द्वारा बताये गये तेजस्वी

प्रयोग हैं, जो अचूक है. पूर्ण लक्ष्य भेदन में समर्थ हैं।

मंत्र जप पूरा होने पर माला नदी, तालाब का मंदिर में।

विसर्जित कर दें।

प्रेम

 


जय श्री सद्गुरू देव निखिल जी                

                           प्रेम शब्द जितना मिसअंडरस्टुड है, जितना गलत समझा जाता है, उतना शायद मनुष्य की भाषा में कोई दूसरा शब्द नहीं! प्रेम के संबंध में जो गलत-समझी है, उसका ही विराट रूप इस जगत के सारे उपद्रव, हिंसा, कलह, द्वंद्व और संघर्ष हैं। प्रेम की बात इसलिए थोड़ी ठीक से समझ लेनी जरूरी है। जैसा हम जीवन जीते हैं, प्रत्येक को यह अनुभव होता होगा कि शायद जीवन के केंद्र में प्रेम की आकांक्षा और प्रेम की प्यास और प्रेम की प्रार्थना है। जीवन का केंद्र अगर खोजना हो, तो प्रेम के अतिरिक्त और कोई केंद्र नहीं मिल सकता है। 


समस्त जीवन के केंद्र में एक ही प्यास है, एक ही प्रार्थना है, एक ही अभीप्सा है--वह अभीप्सा प्रेम की है। 


और वही अभीप्सा असफल हो जाती हो तो जीवन व्यर्थ दिखायी पड़ने लगे--अर्थहीन, मीनिंगलेस, फस्ट्रेशन मालूम पड़े, विफलता मालूम पड़े, चिंता मालूम पड़े तो कोई आश्चर्य नहीं है। जीवन की केंद्रीय प्यास ही सफल नहीं हो पाती है! न तो हम प्रेम दे पाते हैं और न उपलब्ध कर पाते हैं। और प्रेम जब असफल रह जाता है, प्रेम का बीज जब अंकुरित नहीं हो पाता, तो सारा जीवन व्यर्थ-व्यर्थ, असार-असार मालूम होने लगता है। 


जीवन की असारता प्रेम की विफलता का फल है। 

जब प्रेम सफल होता है, तो जीवन सार बन जाता है। प्रेम विफल होता है तो जीवन प्रयोजनहीन मालूम होने लगता है। प्रेम सफल होता है, जीवन एक सार्थक, कृतार्थता और धन्यता में परिणित हो जाता है। 


लेकिन यह प्रेम है क्या? यह प्रेम की अभीप्सा क्या है? यह प्रेम की पागल प्यास क्या है? कौन-सी बात है, जो प्रेम के नाम से हम चाहते हैं और नहीं उपलब्ध कर पाते हैं? 


जीवन भर प्रयास करते हैं? सारे प्रयास प्रेम के आसपास ही होते हैं। युद्ध प्रेम के आसपास लड़े जाते हैं। धन प्रेम के आसपास इकट्ठा किया जाता है। यश की सीढ़ियां प्रेम के लिए पार की जाती हैं। संन्यास प्रेम के लिए लिया जाता है। घर-द्वार प्रेम के लिए बसाये जाते हैं और प्रेम के लिए छोड़े जाते हैं। जीवन का समस्त क्रम प्रेम की गंगोत्री से निकलता है। 


जो लोग महत्वाकांक्षा की यात्रा करते हैं, पदों की यात्रा करते हैं, यश की कामना करते हैं, क्या आपको पता है, वे सारे लोग यश के माध्यम से जो प्रेम से नहीं मिला है, उसे पा लेने की कोशिश करते हैं! जो लोग धन की तिजोरियां भरते चले जाते हैं, अंबार लगाते जाते हैं, क्या आपको पता है, जो प्रेम से नहीं मिला, वह पैसे के संग्रह से पूरा करना चाहते हैं! जो लोग बड़े युद्ध करते हैं और बड़े राज्य जीतते हैं, क्या आपको पता है, जिसे वे प्रेम में नहीं जीत सके, उसे भूमि जीतकर पूरा करना चाहते हैं! 


शायद आपको खयाल में न हो, लेकिन मनुष्य-जीवन का सारा उपक्रम, सारा श्रम, सारी दौड़, सारा संघर्ष अंतिम रूप से प्रेम पर ही केंद्रित है। लेकिन यह प्रेम की अभीप्सा क्या है? पहले इसे हम समझें तो और बात समझी जा सकेगी। 

मनुष्य का जन्म होता है, मां से टूट जाता है संबंध शरीर का। अलग एक इकाई अपनी यात्रा शुरू कर देती है। अकेली एक इकाई जीवन के इस विराट जगत में अकेली यात्रा शुरू कर देती है! एक छोटी-सी बूंद समुद्र से छलांग लगा गयी है और अनंत आकाश में छूट गयी है। एक छोटे-से रेत का कण तट से उड़ गया है और हवाओं में भटक गया है। मां से व्यक्ति अलग होता है। एक बूंद टूट गयी सागर से और अनंत आकाश में भटक गयी है। वह बूंद वापस सागर से जुड़ना चाहती है। वह जो व्यक्ति है, वह फिर समष्टि के साथ एक होना चाहता है। वह जो अलग हो जाना है, वह जो पार्थक्य है, वह फिर से समाप्त होना चाहता है। 


प्रेम की आकांक्षा--एक हो जाने की, समस्त के साथ एक हो जाने की आकांक्षा है। 

प्रेम की आकांक्षा, अद्वैत की आकांक्षा है। 

प्रेम की एक ही प्यास है, एक हो जाये सबसे; जो है, समस्त से संयुक्त हो जाये। 


जो पार्थक्य है, जो व्यक्ति का अलग होना है, वही पीड़ा है व्यक्ति की। जो व्यक्ति का सबसे दूर खड़े हो जाना है, वही दुख है, वही चिंता है। वापस बूंद सागर के साथ एक होना चाहती है। 


प्रेम की आकांक्षा समस्त जीवन के साथ एक हो जाने की प्यास और प्रार्थना है। प्रेम का मौलिक भाव एकता खोजना है।

तप

 


उत्तम मंगल है--"तप"

तप का वास्तविक अर्थ है संयम से तपना।

शरीर, वाणी और चित्त को तपाने के लिये किये गए परिश्रम, पुरुषार्थ और पराक्रम द्वारा इन्द्रियों पर लगाम लगाना, वाणी पर लगाम लगाना, कायिक कर्मो पर लगाम लगाना।


विकार जगाने वाले दृश्यों को देखने से आँख पर रोक लगाना, विकार जगाने वाले शब्दों को सुनने से कान पर, विकार जगाने वाले रस के चखने से जीभ पर, विकार जगाने वाली गंध से नाक पर, विकार जगाने वाले स्पर्श से तन पर लगाम लगाना।


यही वास्तविक तप है।

इस तप द्वारा अपनी इन्द्रियों की रक्षा करता है।उन्हें विषयो में लिप्त होने से बचाता है।


वाणी द्वारा झूठ बोलने से, कटु वचन बोलने से, चुगली के वचन बोलने से, निरर्थक वचन बोलने पर रोक लगाता है।रोक लगाकर वाणी के दुष्कर्मो से बचता है।


हिंसा, चोरी, व्यभिचार जैसे शारीरिक दुष्कर्मो से बचता है।


और इन सबसे बढ़कर मन को मैला न होने देने के लिये प्रत्यनशील होता है।उसे विकारो से विकृत नही होने देता। इस सच्चाई के प्रति हमेशा सजग रहता है कि मन में विकार जागते ही, मन को मैला करते ही शरीर, वाणी और इन्द्रियों के संयम का तप क्षीण हो जायेगा।निष्फल हो जाएगा।


मन को संयमित करते ही शरीर और वाणी के कर्म अपने आप संयमित हो जाएंगे।


तभी कहा गया--

मन के कर्म सुधार लें,

मन ही प्रमुख प्रधान।

कायिक वाचिक कर्म तो,

मन की ही संतान।।


विकारो से व्याकुल हुए मानस के ऊपरी ऊपरी हिस्से किसी रोचक आलंबन की और मोड़कर उसे शांत कर लेना सरल है।


लेकिन अंतर्मन की गहराईओं में उलझी हुई विकारो की जड़ो को काटकर मन का स्वभाव बदल देना बहुत कठिन है।इसके लिये बहुत परिश्रम करना पड़ता है।


अन्तर्मन का विकृत स्वभाव बदलना ही सही माने में अंतर्तप है।

सबका मंगल हो।

            

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ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी!


एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया। 

वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं।

अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।।  

किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी।

जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।   और आंख बंद कर लिया।

सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया..

अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।  

जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया ।   

ध्यान रखे आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि ,  

ये कोरोना काल भी यही,जहा उनको आप से काम निकाल जाने के बाद आप को उसी कुए में छोड़ कर मिट्टी डाल देने।

आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा 

कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा   

कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे... 

ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है। 


सकारात्मक रहे.. सकारात्मक जिए!

इस संसार में....

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      सबसे बड़ी सम्पत्ति *"बुद्धि "*

      सबसे अच्छा हथियार *"धैर्य"*

      सबसे अच्छी सुरक्षा *"विश्वास"*

      सबसे बढ़िया दवा *"हँसी"* है

और आश्चर्य की बात कि *"ये सब निशुल्क हैं "*


सोच बदलो जिंदगी बदल जायेगी

श्री तैलंग स्वामी आयु 300 वर्ष


 श्री तैलंग स्वामी :-


वाराणसी की गलियों में एक दिगम्बर योगी घूमता रहता है। गृहस्थ लोग उसके नग्न वेश पर आपत्ति करते हैं फिर भी पुलिस उसे पकड़ती नहीं, वाराणसी पुलिस की इस तरह की तीव्र आलोचनाएं हो रही थीं। आखिर वारंट निकालकर उस नंगे घूमने वाले साधू को जेल में बंद करने का आदेश दिया गया।


पुलिस के आठ-दस जवानों ने पता लगाया, मालूम हुआ वह योगी इस समय मणिकर्णिका घाट पर बैठा हुआ है। जेष्ठ की चिलचिलाती दोपहरी जब कि घर से बाहर निकलना भी कठिन होता है एक योगी को मणिकर्णिका घाट के एक जलते तवे की भाँति गर्म पत्थर पर बैठे देख पुलिस पहले तो सकपकायी पर आखिर पकड़ना तो था ही वे आगे बढ़े। योगी पुलिस वालों को देखकर ऐसे मुस्करा रहा था मानों वह उनकी सारी चाल समझ रहा हो। साथ ही वह कुछ इस प्रकार निश्चिन्त बैठे हुये थे मानों वह वाराणसी के ब्रह्मा हों किसी से भी उन्हें भय न हो। मामूली कानूनी अधिकार पाकर पुलिस का दरोगा जब किसी से नहीं डरता तो अनेक सिद्धियों सामर्थ्यों का स्वामी योगी भला किसी से भय क्यों खाने लगा तो भी उन्हें बालकों जैसी क्रीड़ा का आनन्द लेने का मन तो करता ही है यों कहिए आनंद की प्राप्ति जीवन का लक्ष्य है बाल सुलभ सरलता और क्रीड़ा द्वारा ऐसे ही आनंद के लिए “श्री तैलंग स्वामी” नामक योगी भी इच्छुक रहे हों तो क्या आश्चर्य ?


पुलिस मुश्किल से दो गज पर थी कि तैलंग स्वामी उठ खड़े हुए ओर वहाँ से गंगा जी की तरफ भागे। पुलिस वालों ने पीछा किया। स्वामी जी गंगा में कूद गये पुलिस के जवान बेचारे वर्दी भीगने के डर से कूदे तो नहीं हाँ चारों तरफ से घेरा डाल दिया कभी तो निकलेगा साधु का बच्चा- लेकिन एक घंटा, दो घंटा, तीन घंटा-सूर्य भगवान् सिर के ऊपर थे अब अस्ताचलगामी हो चले किन्तु स्वामी जी प्रकट न हुए कहते हैं उन्होंने जल के अंदर ही समाधि ले ली। उसके लिये उन्होंने एक बहुत बड़ी शिला पानी के अंदर फेंक रखी थी और यह जन श्रुति थी कि तैलंग स्वामी पानी में डुबकी लगा जाने के बाद उसी शिला पर घंटों समाधि लगायें जल के भीतर ही बैठे रहते हैं।


उनको किसी ने कुछ खाते नहीं देखा तथापि उनकी आयु 300 वर्ष की बताई जाती है। वाराणसी में घर-घर में तैलंग स्वामी की अद्भुत कहानियां आज भी प्रचलित हैं। निराहार रहने पर भी प्रतिवर्ष उनका वजन एक पौण्ड बढ़ जाता था। 300 पौंड वजन था उनका जिस समय पुलिस उन्हें पकड़ने गई इतना स्थूल शरीर होने पर भी पुलिस उन्हें पकड़ न सकी। आखिर जब रात हो चली तो सिपाहियों ने सोचा डूब गया इसीलिये वे दूसरा प्रबन्ध करने के लिए थाने लौट गये इस बीच अन्य लोग बराबर तमाशा देखते रहे पर तैलंग स्वामी पानी के बाहर नहीं निकले।


प्रातः काल पुलिस फिर वहाँ पहुँची। स्वामी जी इस तरह मुस्करा रहे थे मानों उनके जीवन में सिवाय मुस्कान और आनंद के और कुछ हो ही नहीं, शक्ति तो आखिर शक्ति ही है संसार में उसी का ही तो आनंद है। योग द्वारा सम्पादित शक्तियों का स्वामी जी रसास्वादन कर रहे हैं तो आश्चर्य क्या। इस बार भी जैसे ही पुलिस पास पहुँची स्वामी फिर गंगा जी की ओर भागे और उस पार जा रही नाव के मल्ला को पुकारते हुए पानी में कूद पड़े। लोगों को आशा थी कि स्वामी जी कल की तरह आज भी पानी के अंदर छुपेंगे और जिस प्रकार मेढ़क मिट्टी के अंदर और उत्तराखण्ड के रीछ बर्फ के नीचे दबे बिना श्वाँस के पड़े रहते हैं उसी प्रकार स्वामी जी भी पानी के अंदर समाधि ले लेंगे किन्तु यह क्या जिस प्रकार से वायुयान दोनों पंखों की मदद से इतने सारे भार को हवा में संतुलित कर तैरता चला जाता है उसी प्रकार तैलंग स्वामी पानी में इस प्रकार दौड़ते हुए भागे मानों वह जमीन पर दौड़ रहे हों । नाव उस पार नहीं पहुँच पाई स्वामी जी पहुँच गये। पुलिस खड़ी देखती रह गई।


स्वामी जी ने सोचा होगा कि पुलिस बहुत परेशान हो गई तब तो वह एक दिन पुनः मणिकर्णिका घाट पर प्रकट हुए और अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया। हनुमान जी ने मेघनाथ के सारे अस्त्र काट डाले किन्तु जब उसने ब्रह्म-पाश फेंका तो वे प्रसन्नता पूर्वक बँध गये। लगता है श्री तैलंग स्वामी भी सामाजिक नियमोपनियमों की अवहेलना नहीं करना चाहते थे पर यह प्रदर्शित करना आवश्यक भी था कि योग और अध्यात्म की शक्ति भौतिक शक्तियों से बहुत चढ़-बढ़ कर है तभी तो वे दो बार पुलिस को छकाने के बाद इस प्रकार चुपचाप ऐसे बैठे रहे मानों उनको कुछ पता ही न हो। हथकड़ी डालकर पुलिस तैलंग स्वामी को पकड़ ले गई और हवालात में बंद कर दिया। इन्सपेक्टर रात गहरी नींद सोया क्योंकि उसे स्वामी जी गिरफ्तारी मार्के की सफलता लग रही थी।


प्रस्तुत घटना “मिस्ट्रीज आँ इंडिया इट्स योगीज” नामक लुई-द-कार्टा लिखित पुस्तक से अधिकृत की जा रही है। कार्टा नामक फ्राँसीसी पर्यटक ने भारत में ऐसी विलक्षण बातों की सारे देश में घूम-घूम कर खोज की। प्रसिद्ध योगी स्वामी योगानंद ने भी उक्त घटना का वर्णन अपनी पुस्तक “आटो बाई ग्राफी आँ योगी” के 31 वे परिच्छेद में किया है।


प्रातः काल ठंडी हवा बह रही थी थाने जी हवालात की तरफ की तरफ आगे बढ़े तो पसीने में डूब गया- जब उन्होंने योगी तैलंग को हवालात की छत पर मजे से टहलते और वायु सेवन करते देखा। हवालात के दरवाजे बंद थे, ताला भी लग रखा थी। फिर यह योगी छत पर कैसे पहुँच गया ? अवश्य ही संतरी की बदमाशी होगी। उन बेचारे संतरियों ने बहुतेरा कहा कि हवालात का दरवाजा एक क्षण को खुला नहीं फिर पता नहीं साधु महोदय छत पर कैसे पहुँच गये। वे इसे योग की महिमा मान रहे थे पर इन्सपेक्टर उसके लिए बिलकुल तैयार नहीं था आखिर योगी को फिर हवालात में बंद किया गया। रात दरवाजे में लगे ताले को सील किया गया चारों तरफ पहरा लगा और ताली लेकर थानेदार थाने में ही सोया। सवेरे बड़ी जल्दी कैदी की हालत देखने उठे तो फिर शरीर में काटो तो खून नहीं। सील बेद ताला बाकायदा बंद। सन्तरी पहरा भी दे रहे उस पर भी तैलंग स्वामी छत पर बैठे प्राणायाम का अभ्यास कर रहे। थानेदार की आँखें खुली की खुली रह गईं उसने तैलंग स्वामी को आखिर छोड़ ही दिया।


श्री तैलंग स्वामी के बारे में कहा जाता है कि जिस प्रकार जलते हुये तेज कड़ाहे में खौल रहे तेल में पानी के छींटे डाले जाएं तो तेल की ऊष्मा बनाकर पलक मारते दूर उड़ा देती है। उसी प्रकार विष खाते समय एक बार आँखें जैसी झपकती पर न जाने कैसी आग उनके भीतर थी कि विष का प्रभाव कुछ ही देर में पता नहीं चलता कहाँ चला गया। एक बार एक आदमी को शैतानी सूझी चूने के पानी को लेजाकर स्वामी जी के सम्मुख रख दिया और कहा महात्मन् ! आपके लिए बढ़िया दूध लाया हूँ स्वामी जी उठाकर पी गये उस चूने के पानी को, और अभी कुछ ही क्षण हुये थे कि कराहने और चिल्लाने लगा वह आदमी जिसने चूने का पानी पिलाया था। स्वामी जी के पैरों में गिरा, क्षमा याचना की तब कहीं पेट की जलन समाप्त हुई। उन्होंने कहा भाई मेरा कसूर नहीं है यह तो न्यूटन का नियम है कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया अवश्य है। उसकी दिशा उलटी और ठीक क्रिया की ताकत कितनी होती है।


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मनुष्य शरीर एक यंत्र, प्राण उसकी ऊर्जा, ईंधन आवा शक्ति, मन इंजन और ड्राइवर चाहे जिस प्रकार के अद्भुत कार्य लिए जा सकते हैं इस शरीर से भौतिक विज्ञान से भी अद्भुत पर यह सब शक्तियाँ और सामर्थ्य योग विद्या, योग साधना में सन्निहित हैं जिन्हें अधिकारी पात्र ही पाते और आनन्द लाभ प्राप्त करते है।

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माँ पर शायरी

  "माँ के कदमों में बसी जन्नत की पहचान, उसकी दुआओं से ही रोशन है हर इंसान। जिंदगी की हर ठोकर से बचा लेती है, माँ की ममता, ये दुन...