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धूमावती साधना।

 


साधना जीवन का प्रारंभ हुए मात्र २ वर्ष ही हुए थे और सदगुरुदेव की छत्र-छाया में कुछ लघु साधनाओं को संपन्न करते हुए मेरे साधना जगत में प्रवेश का श्री गणेश हुआ था .सच कहूँ तो जबसे उन्होंने हाथ थामा था ,निर्भयता ही जीवन में व्याप्त हो गयी थी .जब भी वरिष्ट गुरु भाइयों को उग्र साधनाओं की बात करते हुए सुनता था तो पता नहीं मन में एक अजीब सी लहर उठने लगती थी जो की भय की तो कदापि नहीं थी .मैं उन रहस्यों को जानने के लिए बैचेन था ,पर पता नहीं क्यूँ मेरे अग्रज गुरु बन्धुं इन रहस्यों को बताने में हिचकिचाते थे . हालाँकि ये दौर ऐसा था की सदगुरुदेव समस्त साधनाओं के रहस्यों को शिष्यों की जिज्ञासा समाधान के लिए और उन्हें सजीव ग्रन्थ बनाने के लिए सदैव प्रकट करते रहते थे. नवार्ण मन्त्र रहस्य शिविर ,सूर्य सिद्धांत , महालक्ष्मी आबद्ध ,साबर साधना , गोपनीय तंत्र ,ब्रह्मत्व गुरु साधना, मातंगी साधना, महाकाली हनुमान साधना इत्यादि साधनाओं के ऊपर पूरा प्रयोगात्मक शिविर ही ८-९ दिनों का गुरुधाम में लगातार आयोजित होते रहते थे . ये तो मात्र कुछ नाम ही हैं उन शक्तियों के जिनका प्रयोगात्मक और सिद्धात्मक सत्र सदगुरुदेव ने आयोजन किया था. ऐसे सैकडो शिविर आयोजित हुए थे उन दिनों .शिविरों में सदगुरुदेव इन साधनाओं के समस्त गोपनीय रहस्यों को सहज रूप से शिष्यों और साधकों के सामने प्रकट करते रहते थे . जिनके द्वारा निश्चित रूप से उन साधनाओं में सफलता मिलती ही थी. एक दिन अचानक सदगुरुदेव ने मुझे कार्यालय में बुलाया और कहा की – अब तुम अपना ध्यान पूर्ण रूप से तीव्र साधनाओं की और लगा दो . क्यूंकि वर्तमान युग तीव्र और तीक्ष्ण साधनाओं का ही युग है . और मैं देख रहा हूँ की आगे के जीवन में तुम्हे इन साधनाओं की बहुत आवशयकता पड़ेगी .

जैसी आपकी आज्ञा ....-मैंने धीरे से कहा .

बेटा आज शायद समाज इन साधनाओं के मूल्य को नहीं पहचान रहा है . पर जिस प्रकार धन जीवन के लिए अनिवार्य है, जिस प्रकार सौम्यता साधक का श्रृंगार है ,ठीक उसी प्रकार तीव्रता और संयमित क्रोध भी जीवन को दुष्ट शक्तियों से बचाए रखने के लिए और आत्मसम्मान की गरिमा को सुरक्षित रखने के लिए जरुरी है – गुरुदेव ने शांत स्वर में कहा .

भविष्य में ये रहस्य कब प्रकाशित होंगे इन पर अभी तो चर्चा करना व्यर्थ है....... ये कहकर उन्होंने मुझे शाम को पुनः आने के लिए कहा .

गुरुदेव के निर्देशानुसार महाकाली साधना , भैरव साधना करने के बाद , श्मशान साधनाओं की और उन्होंने आगे बढाया . यहाँ एक बात मैं आप सभी को बता दूँ की कई साधकों को सामूहिक रूप से शमशान साधनाओं को करने की आज्ञा भी सदगुरुदेव देते थे . अयोध्या में सरयू नदी के तट पर घोर रात्रि में कई बार ऐसी साधनाओं का आयोजन हुआ है जब कई वरिष्ट भाई अघोर पद्धति से इन साधनाओं को संपन्न करते थे . ऐसे कई स्थान थे उन साधनाओं को करने के लिए . हाँ ये अलग बात है की सामान्य साधकों को इसकी भनक भी नहीं लगती थी . पर ये भी उतना बड़ा सत्य है की जब भी कोई साधक सदगुरुदेव के पास किसी पद्धति को जानने के लिए जाता था तो उसे निराशा कभी हाथ नहीं लगती थी .

कई उग्र साधनों को भली भांति करने के बाद जब मैंने धूमावती साधना को करने के लिए गुरुदेव से आज्ञा चाही तो उन्होंने कहा की ये साधना अति दुष्कर साधना है .और इसकी पूर्ण सिद्धि के लिए तुम्हे इसके तीनो चरण करने पड़ेंगे ... दो चरण तो तुम अब तक जहा तीव्र साधना करते रहे हो वहां कर सकते हो पर तीसरे चरण के लिए तुम्हे किसी शक्ति पीठ का चयन करना पड़ेगा . और साधना के गोपनीय रहस्यों को समझाकर मुझे सफलता का आशीर्वाद दिया .

किसी भी महाविद्या की पूर्ण सिद्धि तभी संभव है जब आपको उसके समस्त रहस्यों का पता हो और पूर्ण वीर भाव से उसे करने के लिए आप संकल्पबद्ध हों . अन्य साधनाएं तो आप फिर भी कर सकते हैं पर महाविद्या साधनाओं के लिए अलग जीवन चर्या का ही पालन किया जाता है .संयमित और मर्यादित जीवन जीते हुए आप इन साधनाओं को निश्चित रूप से सिद्ध कर सकते हैं. जरा सा भी भय आपके मन में हो तो इन साधनाओं को नहीं करना चाहिए . इन साधनाओं की सफलता के लिए यदि #स्थापन दीक्षा या #पूर्णरूपेण #सफलता प्राप्ति दीक्षा ले ली जाये तो सफलता असंदिग्ध रहती है.धूमावती साधना साधक के जीवन को अद्भुत अभय से आप्लावित कर देती हैं , हाँ ये सत्य है की संहार की चरम सीमा यदि कोई है तो वो यही हैं . साधक के जीवन को अभाव और शत्रु से पूर्ण रूपेण मुक्त कर देती हैं साथ ही देती हैं शमशान साधनाओं में सफलता , प्रेत और तंत्र बाधा निवारण और आत्म आवाहन साधनाओं में सफलता का वरदान भी .इनकी साधना सहज भी नहीं है साधक के पूर्ण आत्म,मानसिक और शारीरिक बल का परिक्षण इस साधना से ही ही जाता है . दया तो संभव ही नहीं है और जरा सी चूक घातक भी हो जाती खुद के लिए. दो तरीके से आप इन साधनाओं को कर सकते हैं . यदि मात्र आपको अपना कार्य सिद्धि का मनोरथ पूरा करना हो तो आप गुरु निर्देशित संख्या में मूल मन्त्र का जप कर ये सहज रूप से कर सकते हैं. पर जब आपका लक्ष्य पूर्ण सिद्धि हो तो महाविद्या साधनाओं के तीन चरण तो करने ही पड़ेंगे . तभी आपको सफलता मिलती है और पूर्ण वरदायक जीवन पर्यंत प्रभाव भी .

ये चरण निनानुसार होते हैं.

बीजमंत्र सिद्धि (जिससे उस महाविद्या का आपकी आत्मा और सप्त शरीरों में स्थापन हो सके)

सपर्या विधि (जिससे उस महाविद्या की समस्त शक्तियों का स्थापन आपमें हो सके)

मूल मंत्र और प्रत्यक्षीकरण विधान( निश्चित सफलता और पूर्णरूपेण प्रत्यक्षीकरण के लिए)


मैंने प्रारंभ की दो क्रियाएँ तो उसी पहाड पर की जो चारों तरफ से शमशान से घिरा हुआ है और जहा मैं प्रारंभ से तीव्र साधनाएं शमशान साधनाएं करता रहा हूँ . ७-७ दिन के दोनों चरणों को सफलता पूर्वक करने के बाद मैंने माँ कामाख्या शक्ति पीठ को तीसरे और अंतिम चरण के लिए चुना . रस तंत्र के शोध के लिए मैं लगातार आसाम में रहा करता था और कामाख्या पीठ से एक अद्भुत लगाव की वजह से मुझे वही उचित भी लगा...वैसे भी इस साधना के पहले कुछ और साधनाएं भी मैंने उस भव्य पीठ पर संपन्न की थी ,जिनमे मुझे आशातीत सफलता भी मिली थी .

कामाख्या पीठ पर कामाख्या मंदिर से दक्षिण की तरफ लगभग २७ फीट नीचे माँ धूमावती का भव्य पीठ है . वह एकांत भी है और मनोनुकूल वातावरण भी...... वही पर सदगुरुदेव के द्वारा बताये गए गोपनीय सूत्रों का अनुसरण कर मैंने इस साधना को संपन्न की . सदगुरुदेव के आशीर्वाद से माँ का प्रत्यक्षीकरण भी हुआ और वरदान भी मिला . गुरु चरणों में #अश्रुयुक्त #प्रणिपात के अतिरिक्त मैं समर्पित भी क्या कर सकता था . बाद के वर्षों में कई गुरुभाई उस स्थान पर मेरे साथ भी गए . उस समय मैं शत्रु बाधा निवारण के लिए इस साधना का प्रयोग भी नहीं कर पाया क्योंकि कभी आवशयकता भी नहीं पड़ी .हाँ शमशान साधनों में कीलन और आत्माओं का सहयोग लेने के लिए जरुर कई बार प्रयोग किया. पर अन्य साधनाओं पर भी लगातार शोध करने के कारण फिर मैंने इस साधना का प्रयोग आगे कभी नहीं किया परन्तु कई वर्षों के बाद हालत कुछ ऐसे बने कि...........


घुमक्कड स्वभाव का होने कारन मैं घर पर कई कई महीने नहीं रह पाता था . एक बार लंबे समय के बाद जब मैं घर पंहुचा तो घर में सभी कुछ अस्त-व्यस्त था .माँ , पिताजी, भाई भाभी , बहन , सभी दर्द से भरे हुए चेहरों के साथ बैठे थे . पूछने पर मुझे बताया की मेरे छोटे भाई को जान से मारने की फिराक में कुछ लोग लगातार लगे हुए हैं. झूठे प्रकरण में उसे फसाया गया है. कई दिनों से वो भागा भागा फिर रहा है. पुलिस वाले भी उल्टा परेशान कर रहे हैं . मेरे पिताजी को गन्दी गन्दी गालियाँ सुनने को मिलती थी .पुलिस उन्हें धमकाती रहती थी. भाभी और बहन को घर से वे असामाजिक तत्व उठाने की धमकी दिया करते थे . मेरे भाई एक सीधे साधे शिक्षक थे . मेरा पूरा परिवार जिसकी ख्याति उस कसबे में संस्कारित और अत्यधिक सभ्य परिवार के रूप में होती थी . उसके ऊपर लगातार प्रहार हो रहे थे. उन असामजिक तत्वों का इतना खौफ उस कसबे में था की कोई भी कुछ बोलने का साहस नहीं कर पाता था. सभी आस पास वाले चुपचाप अपने अपने घरों में डरे सिमटे से बैठे रहते थे. आतंक और खौफ को फैलाकर रख दिया था उन लोगों ने . कानून तो जैसे खिलौना था उन के हाथों का . कोई सुनवाई नहीं बल्कि जो शिकायत करने जाता , उसे ही वह बिठा लिया जाता था परेशां करने के लिए.

मुझे कुछ भी सूझ नहीं रहा था ........... गुरुधाम संपर्क करने पर पाता लगा की गुरुदेव बाहर गए हुए हैं.

और निकट भविष्य में जोधपुर में शिविर था . मैंने वहा जाने का निश्चय किया और पहुच ही गया . गुरुदेव से संपर्क करने की कोशिश की तो वे बाकि लोगो से तो मिल लिए पर मुझसे मिलने के लिए मना कर दिया . हताश होकर मैं शिविर स्थल में बैठ कर रो रहा था . ये सोच कर की आखिर मुझसे क्या गलती हुयी है जो सदगुरुदेव ने मिलने से मना कर दिया. सत्र प्रारंभ होने वाला था और पाणिग्रहण का महोत्सव था . सदगुरुदेव नियत समय पर आये और मंचासीन होकर उन्होंने प्रवचन प्रारंभ किया “ मेरा शिष्य कायर हो ही नहीं सकता, मुसीबतों से भागना मैंने कभी सिखाया ही नहीं . मैंने हमेशा यही कहा है की कोई तुम्हे एक चांटा मारने की सोचे उसके पहले दस तमाचे सामने वाले को पद जाना चाहिए..............” इस प्रकार इतना क्रोध से भरा हुआ प्रवचन मैं पहली बार सुन रहा था . मुझे समझ में आने लगा की वो मेरे प्रश्नों का ही उत्तर दे रहे हैं. अब मुझे अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आने लगा और रोना भी . उस दिन के प्रवचन को मैं आज भी सुनता हूँ जब भी निराशा मेरे अंदर प्रवेश करने लगती है ... तब तब वो प्रवचन मेरे उत्साह को अनंत्गुनित कर देता है .

“युद्धं देहि” के नाम से वो प्रवचन संकलित है केसेट रूप में . खैर...... प्रवचन की समाप्ति के बाद सदगुरुदेव जब वापस जाने लगे तो मैं रास्ते में ही खड़ा था और मेरे सामने से निकलते हुए वे एक पल के लिए रुके और मुस्कुराते हुए मुझे देखा और चले गए .

थोड़ी देर बाद एक गुरुभाई आये और उन्होंने कहा की सदगुरुदेव तुम्हे ऑफिस में बुला रहे हैं. मैं दौड़ता हुआ पंहुचा . और उनके चरण स्पर्श करने के बाद रोने लगा.

सदगुरुदेव बोले – बेटा जीवन में भागना या चुनौतियों से डरना ही गलत है . ये एक साधक को शोभा नहीं देता .

मैं क्या करूँ ,मेरी समझ ही नहीं आ रहा, मैंने कभी अपने परिवार को ऐसा नहीं देखा. मेरे पिताजी का इतना सम्मान है उस क्षेत्र में , पर आज उन्हें पुलिस वाले उल्टा-सीधा बोल रहे हैं- मैंने कहा

तो क्या भागने से तेरी समस्या का समाधान हो जायेगा ....... बोल- उन्होंने कहा.

आप कोई साधना बताइए जिससे मैं इस अपमान का प्रतिशोध ले सकूँ, हमारी कोई गलती नहीं है गुरुदेव- सर झुकाए मैंने कहा.

मुझे पाता है तभी तो कह रहा हूँ की परिवार की अस्मिता की रक्षा करना और अन्याय का प्रतिकार करना ही साधक धर्म है . और अभी कोई नविन साधना तुझ से हो भी नहीं पायेगी . क्यूंकि स्थिर चित्त से ही साधना हो पाती है. और ये समय किसी नए को आजमाने के बजाय पहले की गयी साधनाओं को प्रयोग करने की है.

फिर मैं क्या करूँ............

तुने धूमावती की साधना भली प्रकार से सफलता पूर्वक की है तू उसी का प्रयोग कर –गुरुदेव ने कहा .

और फिर उन्होंने उसका प्रयोग कैसे शत्रु बाधा पर करना है ये बताकर मुझे जाने की आज्ञा दी. हालाँकि शिविर का दूसरा दिन अभी बाकि था पर उन्होंने कहा की अभी तेरे लिए इस प्रयोग को शीघ्रातिशीघ्र करना कही ज्यादा जरुरी है. आशीर्वाद प्राप्त कर मैं वापस आ गया.

और उसी पहाड पर मैंने इस ७ दिवसीय प्रयोग को प्रारंभ किया . प्रतिदिन मध्य रात्रि से उस वीरान पहाड पर मैं अपनी साधना को प्र५अरम्भ करता जो की सुबह ३.३० तक चलती. शुरू के ६ दिन तो अत्यधिक दबाव बना रहा ,मानों शारीर फट ही जायेगा. और ऐसा लगता जैसे कोई मन्त्र-जप को रोक रहा हो . पर अंतिम दिवस जैसे ही पूर्णाहुति की एक तीव्र धमाका हुआ और यज्ञ कुंड के टुकड़े टुकड़े होकर ऊंचाई तक उछालते चले गए . और एक सब कुछ शांत होकर निस्तब्धता छा गई.एक प्रकाश पुंज तीव्र गति से कसबे की और चला गया. और मुझ पर से दबाव हट गया. मैं घर चला आया और स्नान कर सो गया. सुबह शोर शराबे से मेरी नींद खुली तो . मैंने कमरे से बाहर आकर उसका कारन पूछा. तो मेरी माँ ने बताया की कल रात ३-४ बजे उस लीडर का उसके घर में ही बैठे बैठे मष्तिष्क फट गया . मेरी आँखों से प्रसन्नता के अश्रु निकलने लगे और मैं अपने साधना कक्ष की और दौड़ता चला गया ...... आभार प्रकट करने के लिए. २ दिन बाद ही वे समस्त उपद्रवी एक एक्सीडेंट में हताहत हो गए. जिस भाई के राजनितिक संबंधो के कारन उस लीडर को कानून सहयोग करता था .उसका समस्त व्यापार ही बर्बाद हो गया. मेरा कसबे में फिर से चैन और सुकून का वातावरण दिखाई देने लगा.

ये सब आत्म-प्रवंचना के लिए नहीं बताया गया है. बल्कि इसलिए की समय रहते हम इन साधनाओं का मूल्य समझ लें. सदगुरुदेव ने पत्रिका, शिविरों, और ग्रंथों के माध्यम से सब कुछ दिया है. हम ललक कर आगे बढे और इस साधनाओं को अपनाकर पूर्णता और निर्भयता पायें .मेरे पास प्रमाण है अपनी सफलता का और मुझे पाता है की मेरे कई गुरु भाई हैं जिन्हें सफलता मिली है पर वे अपने संस्मरण बताना ही नहीं चाहते. शायद मेरे किसी भाई को ये पंक्तियाँ प्रेरित कर सकें इस पथ पर आगे बढ़ने के लिए ....... मुझे जो भी मिला है मैं बताते जा रहा हूँ. कोई जबरदस्ती नहीं है विश्वास करने के लिए. विश्वास करना या नहीं करना हमारा व्यक्तिगत भाव है जो थोपा नहीं जा सकता. पर बगैर साधनाओं को परखे उसकी आलोचना तो कदापि उचित नहीं . बाकि मर्जी है आपकी क्योंकि जीवन है आपका.........


घोरतम_संकट निवारण की एकमात्र साधना - माँ_धूमावती_साधना।


एक बार सती शिव के साथ हिमालय में विचरण कर रही थीं। तभी उन्हें ज़ोरों की भूख लगी।उन्होने शिव से कहा-” मुझे भूख लगी है. मेरे लिए भोजन का प्रबंध करें”।शिव ने कहा-” अभी कोई प्रबंध नहीं हो सकता”।तब सती ने कहा-” ठीक है, मैं तुम्हें ही खा जाती हूँ”।और वे शिव को ही निगल गयीं।शिव, जो इस जगत के सर्जक हैं, परिपालक हैं


फिर शिव ने उनसे अनुरोध किया कि’ मुझे बाहर निकालो’,तो उन्होंने उगल कर उन्हें बाहर निकाल दिया. निकालने के बाद शिव ने उन्हें शाप दिया कि ‘अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी.’


तभी से वे विधवा हैं-अभिशप्त और परित्यक्त।भूख लगना और पति को निगल जाना सांकेतिक है - यह इंसान की कामनाओं का प्रतीक है, जो कभी ख़त्म नहीं होती और इसलिए वह हमेशा असंतुष्ट रहता है।माँ धूमावती उन कामनाओं को खा जाने यानी नष्ट करने की ओर इशारा करती हैं।


उनका विधवापन वास्तव में स्थितप्रज्ञता है.


कहानी में क्या होता है? पहले तो वे शिव को खा जाती हैं अर्थात अपने साधक की रक्षा के लिए वे किसी भी हद तक जा सकती हैं।#कोई_काल_महाकाल_उन्हें_नहीं_रोक_सकते।लेकिन दूसरी ओर वे शिव का शाप भी सहर्ष स्वीकारकर लेती हैं. यानी प्रकृति के, सृष्टि के नियमों को स्वीकारकर लेना चाहिए।स्थितप्रज्ञता कभी  अकर्मण्यता नहीं है।


इसलिए माँ धूमावती रोग शोक आौर दुख की नियंत्रक महाविद्या मानी जाती हैं।माँ के धूमावती स्वरूप उनके सबसे शक्तिशाली स्वरूपों में से है। 


माता का ये अटल प्रण है कि जो भी उन्हें पराजित करके उनका गर्व भंग करेगा उसी से वे विवाह करेंगी।ऐसा_न_कोई_हुआ_न_कोई_होगा।


वे प्रसन्न होती हैं तो रोगों और दुखों को दूर कर देती हैं और क्रुद्ध होती हैं तो समस्त सुखों और कामनाओं का नाश कर देती हैं।उनकी शरण में गये लोगों की विपत्ति दूर हो जाती है। वे संपन्न होकर दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं। ऋग्वेद के रात्रि सूक्त में उन्हें सुतरा कहा गया है-सुखपूर्वक तरने योग्य।ऋण, अभाव और संकट दूर  कर धन और सुख देने के कारण उन्हें ‘भूति’‘ कहा गया है.-उष ऋणेक यातय(ऋग्वेद,१०.१२७.७)


दस महाविद्याओं में भगवती धूमावती साधना स्थाई संपत्ति की प्राप्ति हेतु,प्रचण्ड शत्रुनाश, विपत्ति निवारण एवं संतान की रक्षा के लिये की जाती है।वास्तव में इस साधना को सम्पन्न करना जीवन की अद्वितीयता है।इस साधना को सिद्ध करने के उपरांत प्राणी भौतिक समृद्धि के साथ साथ जीवन मे पूर्णता प्राप्त कर लेता है।चराचर जगत की कोई बाधा कोई शत्रु उसके समक्ष टिक नहीं पाती।साधक के जीवन से दरिद्रता, दुर्भाग्य, रोग,ऋण,भूत-प्रेत बाधा एवं समस्त प्रकार के शत्रु सदा सर्वदा के लिये समाप्त हो जाते हैं।उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।


जन्म से मृत्यु तक देखभाल करनेवाली सातवीं महाविद्या माँ धूमावती हैं।


वे महाप्रलय के समय मौज़ूद रहती हैं।उनका रंग महाप्रलय के बादलों जैसा है।जब ब्रह्मांड की उम्र ख़त्‍म हो जाती है...#काल ख़त्म हो जाता है और स्वयं #महाकाल शिव भी अंतर्ध्यान हो जाते हैं, माँ धूमावती अकेली खड़ी रहती हैं और काल तथा आकाश से परे की अपनी शक्ति को जताती हैं।उस समय न तो धरती, न ही सूरज, चाँद ,सितारे रहते हैं...रहता है सिर्फ़ धुआँ और राख- वही चरमज्ञान है, निराकार- न अच्छा. न बुरा; न शुद्ध, न अशुद्ध;न शुभ, न अशुभ- धुएँ के रूप में अकेली माँ धूमावती।वे अकेली रह जाती हैं, सभी उनका साथ छोड़ जाते हैं।इसलिए अल्प जानकारी रखने वाले लोग उन्हें अशुभ घोषित करते हैं.


 यही उनका रहस्य है. वे दरअसल वास्तविकता को जताती हैं जो कड़वी,रूखी और इसलिए अशुभ लगती हैं। लेकिन वहीं से अध्यात्मिक ज्ञान जागता है जो हमें मोक्ष दिलाता है।माँ धूमावती अपने साधक को सारे सांसारिक बंधनों से आज़ाद करती हैं।सांसारिक मोह -माया से विरक्ति दिलाती हैं. यही विरक्त भाव उनके साधकों को अन्य लोगों से अलग-थलग और एकांतवास करने को प्रेरित करता है।


हिंदू धर्म में इसे अध्यात्मिक खोज की चरम स्थिति कहाजाता है।सन्यासी लोग परम संतुष्ट जीव होते हैं-जो भी मिला खा लिया, पहन लिया, जहाँ भी ठहरने को मिला,ठहर लिये।तभी तो धूमावती धुएँ के रूप में हैं-हमेशा अस्थिर, गतिशील और बेचैन।उनका साधक भी ज्ञान प्राप्ति हेतु बेचैन रहता है।


धूमावती सहस्रनाम में यह भी कहा गया है कि  वे महिलाओं के बीच निवास करती हैंऔर संतान प्राप्ति कराती हैं।


बच्चे की प्रसूति से लेकर मनुष्य की मृत्यु तक सिर्फ़ वही खड़ी  रहती हैं।उनकी मूर्ति में भी उन्हें हमेशा वरदान देने की मुद्रा में दिखाया जाता है. हालाँकि उनके चेहरे पर उदासी छायी रहती है।वे महाविद्या तो हैं लेकिन उनका व्यवहार गाँव-टोले की दादी- माँ जैसा है-सभी के लिए मातृत्व से लबालब।


यानी उनका अशुभत्व शुभ की ओर बदलाव का संकेत है।

 

साधना_विधान


मित्रों...गुरु कृपा से ये अत्यंत सरल विधान प्रस्तुत है जिसे आप अपने घर मे सम्पन्न कर सकते है ।इसमें आपको कोई हानि नहीं होगी।


इस साधना को आप दिन अथवा रात में कभी भी सम्पन्न कर सकते हैं।वैसे मूल रूप में ये रात की ही साधना है।

साधक लाल वस्त्र धारण करके लाल आसन पर दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके बैठे।अपने सामने बाजोट पर लाल कपड़ा बिछाकर उसपर प्राण प्रतिष्ठा युक्त #धूमावती_यंत्र स्थापित करें।तेल का दीपक प्रज्वलित करें।इसमे तेल कोई भी हो सकता है।अब प्राण प्रतिष्ठा युक्त #काली_हकीक माला से 1500 माला जप सम्पन्न करें।ये जप आप 11,14,21 अथवा 40 दिनों में सम्पन्न करें।

यूं अगर हर रोज 11 माला जप संपन्न कर लिया जाये तो भी कुछ समय पश्चात साधक की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

सफलता प्राप्ति तक आप अनुष्ठान को दोहरा सकते हैं।साधना सम्पन्न होने के पश्चात यंत्र और माला शुभ जल में विसर्जित कर दें।


प्रभु कृपा से आपको सफलता मिले यही शुभकामनाएं हैं...अस्तु


#साधना_मंत्र


धूं धूं धूमावती ठः ठः


- सदगुरुदेव श्री निखिलेश्वरानंद जी

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