आप किसी भी फाइनेंशियल एडवाइजर से निवेश पर सलाह लें, तो वो आपको इक्विटी में पैसे लगाने के लिए म्यूचुअल फंड चुनने की सलाह देगा.
वैसे म्यूचुअल फंड के जरिए सिर्फ इक्विटी या शेयर बाजार में ही नहीं, बल्कि डेट, गोल्ड और कमोडिटी में भी पैसे लगाए जा सकते हैं. लेकिन अगर आपको शेयर बाजार की ज्यादा समझ नहीं है या आप इसमें लगाए गए अपने पैसे की निगरानी के लिए वक्त नहीं निकाल सकते, तो म्यूचुअल फंड निश्चित तौर पर आपके लिए बेहतर माध्यम है.
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तो जब आपने म्यूचुअल फंड में निवेश करने का मन बना लिया, तो अगला सवाल सामने आता है कि म्यूचुअल फंड चुनें कैसे? यही सवाल सबसे अहम है, क्योंकि निवेश के लिए सही म्यूचुअल फंड चुनना अपने लिए सही लाइफ पार्टनर चुनने से कम नहीं है, क्योंकि बाजार में दर्जनों कंपनियों की हजारों म्यूचुअल फंड स्कीमें मौजूद हैं.
ये भी पढ़ें- 2018 के लिए किन म्युचुअल फंड में पैसा लगाएं
आप किसी भी फाइनेंशियल एडवाइजर से निवेश पर सलाह लें, तो वो आपको इक्विटी में पैसे लगाने के लिए म्यूचुअल फंड चुनने की सलाह देगा.
वैसे म्यूचुअल फंड के जरिए सिर्फ इक्विटी या शेयर बाजार में ही नहीं, बल्कि डेट, गोल्ड और कमोडिटी में भी पैसे लगाए जा सकते हैं. लेकिन अगर आपको शेयर बाजार की ज्यादा समझ नहीं है या आप इसमें लगाए गए अपने पैसे की निगरानी के लिए वक्त नहीं निकाल सकते, तो म्यूचुअल फंड निश्चित तौर पर आपके लिए बेहतर माध्यम है.
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तो जब आपने म्यूचुअल फंड में निवेश करने का मन बना लिया, तो अगला सवाल सामने आता है कि म्यूचुअल फंड चुनें कैसे? यही सवाल सबसे अहम है, क्योंकि निवेश के लिए सही म्यूचुअल फंड चुनना अपने लिए सही लाइफ पार्टनर चुनने से कम नहीं है, क्योंकि बाजार में दर्जनों कंपनियों की हजारों म्यूचुअल फंड स्कीमें मौजूद हैं.
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.म्यूचुअल फंड चुनाव का पहला कदम
सबसे पहले तो आपको ये तय करना है कि आपके निवेश का मकसद क्या है, आप कितना निवेश कर सकते हैं और कितने समय के लिए इसमें बने रह सकते हैं. अगर आपको साल-दो साल के लिए निवेश करना है, तो उसके लिए अलग म्यूचुअल फंड होंगे. अगर आपको 5, 7, 10 साल या इससे भी ज्यादा समय के लिए निवेश करना है, तो उसके लिए दूसरे म्यूचुअल फंड होंगे.
मतलब साफ है कि सही म्यूचुअल फंड का चुनाव इसी बात पर निर्भर करता है कि आपकी निवेश अवधि क्या है.
मिसाल के लिए, अगर आप छोटी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं, तो आप डेट फंड या लिक्विड फंड चुन सकते हैं. वहीं अगर आप लंबी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं, तो फिर आपके लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड सही रहेंगे.
2. दूसरा कदम है जोखिम लेने की क्षमता तय करना
एक बार जब आपने निवेश की अवधि तय कर ली, फिर आपको ये सवाल खुद से पूछना है कि आप इस निवेश के लिए कितना जोखिम ले सकते हैं. याद रखें कि ज्यादा रिटर्न के लिए ज्यादा जोखिम लेना पड़ता है, लेकिन निवेश में सिर्फ रिटर्न महत्वपूर्ण नहीं होता, कैपिटल प्रोटेक्शन यानी आपकी लगाई गई पूंजी की सुरक्षा भी मायने रखती है.
मान लीजिए कि आपने लंबी अवधि के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश का मन बना लिया है, लेकिन आप इस बात का जोखिम नहीं ले सकते कि आपके निवेश की वैल्यू में गिरावट आ जाए, फिर आपको वैसे फंड चुनने होंगे जिनमें रिटर्न और जोखिम संतुलित रहे.
यानी आप प्योर इक्विटी फंड की बजाय बैलेंस्ड फंड में निवेश करें, जो इक्विटी और डेट दोनों में एक निश्चित अनुपात में पैसे लगाते हैं.
3. फंड का पिछला प्रदर्शन जरूर देखें
वैसे तो इस बात की गारंटी नहीं होती कि अगर किसी फंड ने अब तक अच्छा परफॉर्म किया है तो आगे भी उसका परफॉर्मेंस वैसा ही रहेगा. लेकिन अलग-अलग फंड्स के पिछले प्रदर्शन से आप एक तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं कि किस फंड के परफॉर्मेंस में एक कंसिस्टेंसी है, और उसके प्रदर्शन में उतार-चढ़ाव बाजार और इकोनॉमी से बहुत अलग तो नहीं हैं. इससे आपको अपनी मनपसंद फंड स्कीम चुनने में मदद मिलेगी,
साथ ही आपको अलग-अलग फंड से अब तक मिले औसत रिटर्न का अंदाजा भी लग जाएगा. आप अलग-अलग रेटिंग एजेंसियों की इन फंड्स को दी गई रेटिंग भी देख सकते हैं
हालांकि इन रेटिंग में एकरूपता नहीं होती, फिर भी आपको एक आइडिया जरूर मिल जाता है कि किन पैरामीटर्स पर किसी फंड को आंका गया है.
4. खर्चों पर नजर डालें
किसी भी म्यूचुअल फंड को चुनते वक्त ये जरूर देखें कि उसमें निवेश से जुड़े खर्च क्या हैं, क्योंकि आपका नेट रिटर्न इन खर्चों की वजह से कम हो सकता है. जिन खर्चों को आपको देखना होगा, वो हैं एंट्री और एक्जिट लोड, एसेट मैनेजमेंट चार्ज, एक्सपेंस रेश्यो.
वैसे तो म्युचुअल फंड स्कीमों में एंट्री लोड नहीं लगता, लेकिन एक तय सीमा के पहले स्कीम से पैसे निकालने पर कई कंपनियां एक्जिट लोड चार्ज करती हैं, जो 3% तक हो सकता है. इसलिए उन स्कीमों में निवेश करें जहां एक्जिट लोड कम हो या नहीं हो.
इसी तरह, एसेट मैनेजमेंट चार्ज और एक्सपेंस रेश्यो भी जरूर देखें क्योंकि ये सारे खर्च आपके फायदे को कम कर देते हैं. सामान्यतया 1.5% तक का एक्सपेंस रेश्यो किसी म्यूचुअल फंड के लिए मुनासिब माना जाता है, लेकिन इससे ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो वाले फंड में निवेश से बचें.
5. फंड हाउस और मैनेजर का रिकॉर्ड भी देखें
जिस म्यूचुअल फंड स्कीम में आप पैसा लगाने जा रहे हैं, उस स्कीम को लाने वाली कंपनी और उसकी देखरेख करने वाले मैनेजर का रिकॉर्ड चेक करना भी मायने रखता है. देखें कि फंड हाउस कितने समय से काम कर रहा है, उसकी दूसरी स्कीमों का परफॉर्मेंस कैसा रहा है और कंपनी की साख बाजार में कैसी है. साथ ही ये भी पता लगाएं कि आपकी स्कीम के फंड मैनेजर का अनुभव कितना है और वो इस स्कीम को कितने समय से मैनेज कर रहा है.
ये जानना इसलिए जरूरी है कि एक अनुभवी और काबिल फंड मैनेजर बाजार के उतार-चढ़ाव से गुजर चुका होता है और वो आपके पैसे को बेहतर तरीके से लगाने के गुर जानता है.
अगर किसी फंड का परफॉर्मेंस कंसिस्टेंट है और उसका फंड मैनेजर लंबे समय से उसके साथ जुड़ा है तो आप उस म्यूचुअल फंड को अपने पोर्टफोलियो में रखने का मन बना सकते हैं.
ये सारी जानकारी आपको किसी भी म्यूचुअल फंड कंपनी, जिसे एसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) भी कहते हैं, की वेबसाइट पर मिल जाएगी.
साथ ही, ऐसी कई वेबसाइट हैं, जहां आप किसी भी फंड के परफॉर्मेंस, रेटिंग, पोर्टफोलियो वगैरह की जानकारी हासिल कर सकते हैं. थोड़ा सा समय दीजिए और फिर अपनी जरूरतों के मुताबिक फंड चुनकर निवेश शुरू कर दीजिए.
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