एक अस्पताल में दो रोगी एक कमरे में दाखिल हुए | एक रोगी को खिड़की के पास बिस्तर मिला तो दुसरे को उससे कुछ दूरी पर | दोनों का रोग चरम सीमा पर था इसलिए उस कमरे में दोनों के अतिरिक्त ओर कोई नही था | खिड़की के पास वाले रोगी को खिड़की से बाहर झाकते देखकर दुसरे रोगी को मन ही मन इर्ष्या होती थी किन्तु बीमारी की दशा में वह क्या तर्क वितर्क करे | यह सोचकर चुप रह जाता था | बिस्तर में लेटे लेटे एक दिन जब वह बहुत उकता गया तो उसने अपने साथी रोगी से कहा “मित्र ! तुम्हारा बिस्तर तो खिड़की के समीप है अत: तुम मुझे खिड़की के बाहर क्या क्या हो रहा है देखकर जरा बताओ | ऐसा करने से मेरा मनोरंजन होगा”
“ठीक है सुनो” कहते हुए दुसरे रोगी ने बाहर के दृश्यों का सजीव वर्णन करना आरम्भ कर दिया ” बाहर एक लॉन है जिसमे चार गुलाब है ……..उनमे से एक बड़ा गुलाबी रंग का है | लॉन के पास ही एक बच्चा हल्के हल्के कदमो से चल रहा है | उसने अपनी माँ की उंगली पकड़ रखी है ………..लो वह गिर पड़ा | अब उसकी माँ ने उसे उठा लिया है तथा खूब प्यार कर रही है | बच्चा फिर से मुस्कुरा रहा है ……..” वह रोगी बोलता जाता | इतना रोचक और सजीव वर्णन सुनते सुनते दुसरे रोगी को नीदं आ जाती | वह आराम से बिना दवाई लिए भी सो जाता था जबकि घटना सुनाने वाले रोगी को बड़ी मुश्किल से नींद आ पाती थी |
जागने पर बाते सुनने वाला रोगी फिर से फरमाइश करता कि उसका साथी ओर कुछ रोचक वर्णन करे | उसका अनुरोध उसका साथी कभी नही टालता था | वह उसे नये नये दृश्यों का आँखों देखा हाल सुनाता रहता | पहले रोगी की बाते सुनकर दुसरे रोगी का मनोरंजन तो खूब होता किन्तु वह अपनी ईर्ष्यालु प्रवृति के कारण फिर मन ही मन कुढ़ता कि उसका बिस्तर खिड़की के पास नही है | अत: असली आनन्द तो उसका साथी ले रहा है और जो सब कुछ देख भी पा रहा है उसे तो केवल सुनने को ही मिल रहा है | इसे अपना दुर्भाग्य मानकर वह सोचता है कि “काश उसका पलंग उस खिड़की के पास होता ”
एक दिन रात को दृश्य का वर्णन करने वाले रोगी की स्थिति बहुत खराब हो गयी और वह चल बसा | अस्पताल के कर्मचारी उसे ले गये | अब पीछे केवल वह दूसरा रोगी ही कमरे में था ,जो एकदम अकेला रह गया था | उसे खिड़की के पास वाले पलंग पर लिटाने की व्यवस्था कर दी गयी | मन ही मन रोगी अब सोच रहा था अब वह स्वयं आनन्द से उन दृश्यों को देखेगा जिसको वह केवल पहले वर्णन ही सुना करता था | जैसे ही उसने खिड़की के बाहर नजर डाली तो वह दंग रह गया | खिडके के बाहर तो कुछ भी नही था केवल एक लम्बी ऊँची दीवार थी जो अस्पताल की अंतिम दीवार थी | अस्पताल का विस्तार वहा खत्म था |
उसे सच्चाई समझते देर न लगी कि उसका उदार साथी इतना महान था कि केवल उसका मन बहलाने के लिए अपनी कल्पना से ही , सुंदर सुंदर दृश्यों और घटनाओं का वर्णन सुनाया करता था | वह जानता था कि मृत्यु कभी भी आ सकती है किन्तु इसके लिए विलाप करना आवश्यक नही माना वरन अन्तिम सांस तक सकारात्मक रहा व उसे निराश होने से रोकता रहा ।
“ठीक है सुनो” कहते हुए दुसरे रोगी ने बाहर के दृश्यों का सजीव वर्णन करना आरम्भ कर दिया ” बाहर एक लॉन है जिसमे चार गुलाब है ……..उनमे से एक बड़ा गुलाबी रंग का है | लॉन के पास ही एक बच्चा हल्के हल्के कदमो से चल रहा है | उसने अपनी माँ की उंगली पकड़ रखी है ………..लो वह गिर पड़ा | अब उसकी माँ ने उसे उठा लिया है तथा खूब प्यार कर रही है | बच्चा फिर से मुस्कुरा रहा है ……..” वह रोगी बोलता जाता | इतना रोचक और सजीव वर्णन सुनते सुनते दुसरे रोगी को नीदं आ जाती | वह आराम से बिना दवाई लिए भी सो जाता था जबकि घटना सुनाने वाले रोगी को बड़ी मुश्किल से नींद आ पाती थी |
जागने पर बाते सुनने वाला रोगी फिर से फरमाइश करता कि उसका साथी ओर कुछ रोचक वर्णन करे | उसका अनुरोध उसका साथी कभी नही टालता था | वह उसे नये नये दृश्यों का आँखों देखा हाल सुनाता रहता | पहले रोगी की बाते सुनकर दुसरे रोगी का मनोरंजन तो खूब होता किन्तु वह अपनी ईर्ष्यालु प्रवृति के कारण फिर मन ही मन कुढ़ता कि उसका बिस्तर खिड़की के पास नही है | अत: असली आनन्द तो उसका साथी ले रहा है और जो सब कुछ देख भी पा रहा है उसे तो केवल सुनने को ही मिल रहा है | इसे अपना दुर्भाग्य मानकर वह सोचता है कि “काश उसका पलंग उस खिड़की के पास होता ”
एक दिन रात को दृश्य का वर्णन करने वाले रोगी की स्थिति बहुत खराब हो गयी और वह चल बसा | अस्पताल के कर्मचारी उसे ले गये | अब पीछे केवल वह दूसरा रोगी ही कमरे में था ,जो एकदम अकेला रह गया था | उसे खिड़की के पास वाले पलंग पर लिटाने की व्यवस्था कर दी गयी | मन ही मन रोगी अब सोच रहा था अब वह स्वयं आनन्द से उन दृश्यों को देखेगा जिसको वह केवल पहले वर्णन ही सुना करता था | जैसे ही उसने खिड़की के बाहर नजर डाली तो वह दंग रह गया | खिडके के बाहर तो कुछ भी नही था केवल एक लम्बी ऊँची दीवार थी जो अस्पताल की अंतिम दीवार थी | अस्पताल का विस्तार वहा खत्म था |
उसे सच्चाई समझते देर न लगी कि उसका उदार साथी इतना महान था कि केवल उसका मन बहलाने के लिए अपनी कल्पना से ही , सुंदर सुंदर दृश्यों और घटनाओं का वर्णन सुनाया करता था | वह जानता था कि मृत्यु कभी भी आ सकती है किन्तु इसके लिए विलाप करना आवश्यक नही माना वरन अन्तिम सांस तक सकारात्मक रहा व उसे निराश होने से रोकता रहा ।
No comments:
Post a Comment