सहज-योग
सहज-योग का अर्थ होता है — कृत्रिम न होओ , स्वाभाविक रहो अपने ऊपर आदर्श मत ओढो़ , आदर्श पाखंड लाते हैं ।
आदर्शों के कारण विकृति पैदा होती है ,क्योंकि कुछ तुम होते हो , कुछ तुम होने की चेष्टा करते हो , तनाव पैदा हो जाता है ।
फिर तुम जो हो वह दब जाता है , उसमें जो तुम होना चाहते हो ।
इसी का नाम पाखंड है ।
फिर एक आदमी है , जो दावा तो सच बोलने का करता है और आड़ में झूठ बोलता है । जिनको भी झूठ बोलना है उन्हें सच बोलने का दावा करना होता है , नहीं तो उनका झूठ मानेगा कौन ? इसलिए झूठ बोलने वाला बार-बार दोहराता है कि मैं सच कह रहा हूं , मैं बिलकुल सच कह रहा हूं , मैं कसम खाकर कहता हूं कि सच कह रहा हूं ।
जब भी कोई आदमी बहुत कसम खाने लगे कि मैं सच कह रहा हूं
तो सावधान हो जाना , क्योंकि यह झूठे का लक्षण है ।
सहज-योग का अर्थ होता है ; – मत करो जटिल । मत बनो झूठ
क्योंकि तुम जितने झूठ हो जाओगे उतने ही दुखी हो जाओगे ।
झूठ दुख लाता है , क्योंकि झूठ के कारण तुम्हारा संबंध सत्य से
छूटने लगता है , टूटने लगता है ।
और एक झूठ नहीं हजार झूठ हैं , इसलिए हजार द्वंद्व पैदा हो जाते हैं । इन्हीं द्वंद्वों में ग्रस्त व्यक्ति नर्क में जीता है ।
सहज-योग का अर्थ होता है ; छोडो़ ये द्वंद्व , छोडो़ ये जाल ।
तुम जैसे हो वैसे अपने को स्वीकार कर लो ।
मत दिखाओ वैसा , जैसे कि तुम नहीं हो । जाने दो सब पाखंड ।
अगर कोई व्यक्ति अपनी संपूर्ण नग्नता में अपने को स्वीकार कर ले तो क्या हो ? क्रांति घट जाती है ।
सहज-योग का अर्थ होता है ; तुम जैसे हो , तुम्हें अंगीकार है ।
परमात्मा ने तुम्हें जैसा बनाया है इसमें तुम रत्ती-भर हेर-फेर नहीं
करना चाहते हो ।
तुम परमात्मा से अपने को ज्यादा बुध्दिमान सिध्द नहीं करना चाहते हो ।
परमात्मा ने तुम्हें जैसा बनाया है उसने तुम्हें जैसा रंगा , वही तुम्हारा रंग है , वही तुम्हारा ढंग है ; तुम उससे अन्यथा होने की न
आकांक्षा करते हो न सपना देखते हो ।
सहज-योग परमात्मा के प्रति अनुग्रह का बोध है ।
सहज भाव से परमात्मा को पुकारना । बिना किसी क्षुद्र आकांक्षा से भरे , चुपचाप जीवन में बहे जाना । तैरना नहीं , संघर्ष नहीं करना , नदी जहां ले जाये उसी तरफ चलना , क्योंकि सभी नदियां अंततः सागर पहुंच जाती हैं ।
अगर कोई चुपचाप बहता चले तो परमात्मा मिलना सुनिश्चित है ।
परमात्मा मिला ही हुआ है , तुम बहो कि अभी अनुभव में आ जाये । तुम जरा विश्राम करो , मगर तुम बडे़ जद्दो-जहद में लगे हो । तुम बडी़ दौड़-धूप कर रहे हो , आपाधापी में पडे़ हो ।
तुम्हारी आपाधापी और दौड़-धूप के कारण जो तुम्हारे भीतर बैठा
है वह दिखाई नहीं पड़ता ।
तुम इतने उलझे हो , इतने व्यस्त हो कि उसे देखो ही कैसे जो मौजूद ही है ।
परमात्मा तुम्हारा स्वभाव है । इसलिए परमात्मा को पाना नहीं है ।
सहज-योग कहता है ; यहां कुछ भी सदा रहने को नहीं ;
सभी बहा जा रहा है , प्रवाहमान है ।
सब क्षण-भंगुर है । पकडो़ मत , जीयो ।
और जो चला जाये उसे जाने दो , ताकि जो नया आ रहा है उसके
लिए तुम्हारा हृदय खाली हो , खुला हो ।
बीते कलों का हिसाब मत रखो और आनेवाले कलों की चिंता मत करो ।
आज जो आया है , इसे नाचो , इसे गाओ , इसे गुनगुनाओ ।
और इसी गीत में प्रार्थना पूरी हो जाती है ।
इसी गीत में सिध्दों का सहज-योग सध गया , झेन फकीरों का
क्षण-बोध सध गया । ये एक ही घटना के दो पहलू हैं
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