मनुष्य तो एक यंत्र है। शक्ति तो सभी परमात्मा की है, चाहे बुरे आदमी में हो, चाहे भले आदमी में हो। शक्ति का स्रोत तो एक ही है। राम में भी वही स्रोत है, रावण में भी वही स्रोत है। रावण के लिए कोई अलग मांर्ग नहीं है शक्ति को पाने का। उसी महास्रोत से रावण भी शक्ति पाता है, जिस महास्रोत से राम शक्ति पाते हैं।
शक्ति के स्रोत में कोई भी फर्क नहीं है, लेकिन दोनों के हृदय में फर्क है। एक के पास शुद्ध हृदय है, एक के पास अशुद्ध हृदय है। उस अशुद्ध हृदय में से शक्ति विनाशक हो जाती है। शुद्ध हृदय से शक्ति निर्मात्री, सृजनात्मक हो जाती है। शुद्ध से जीवन बहने लगता है, अशुद्ध से मृत्यु बहने लगती है। शुद्ध से प्रकाश बन जाता है, अशुद्ध से अंधकार बन जाता है।
लेकिन शक्ति का स्रोत एक है। दो स्रोत हो भी नहीं सकते, दो स्रोत का कोई उपाय भी नहीं है। कितना ही बुरा आदमी हो, परमात्मा उसके भीतर वही है।
इसलिए जो सदगुरु वस्तुत: सैकड़ों लोगों पर साधना के प्रयोग किए हैं, करवाए हैं, उन्होंने अनिवार्यरूप से कुछ व्यवस्था की है जिससे कि अंतःकरण शुद्ध हो। या तो साधना के साथ शुद्ध हो या साधना के पूर्व शुद्ध हो; शक्ति की घटना घटने के पहले अंतःकरण शुद्ध हो जाए। अन्यथा हित की जगह अहित की संभावना है।
आप सोचें, अगर आपको अभी शक्ति मिल जाए, तो आप क्या करेंगे? अगर आपको एक शक्ति मिल जाए कि आप चाहें तो किसी को जीवन दे सकें और चाहे तो किसी को मृत्यु दे सकें, तो आपके मन में सब से पहले क्या खयाल उठेगा?
शायद यह आपके मन में खयाल उठे कि मित्र को मैं शाश्वत बना दूं। लेकिन शत्रु को नष्ट कर दूं यह खयाल पहले उठेगा। वह जो अंतःकरण भीतर है, जैसा है, वैसे ही खयाल देगा।
अगर आपको यह शक्ति मिल जाए कि आप अदृश्य हो सकते हैं, तो आपको यह खयाल शायद ही आए कि अदृश्य होकर जाऊं और लोगों के पैर दबाऊं, सेवा करूं। मैं नहीं सोचता कि यह खयाल भी आ सकता है। अदृश्य होने का खयाल आते ही से, किसकी पत्नी को आप ले भागें, किसकी तिजोरी खोल लें, जहा कल तक आप प्रवेश नहीं कर सकते थे, वहां कैसे प्रवेश कर जाएं, वही खयाल आएगा।
सोचने भर से कि आपको अगर अदृश्य होने की शक्ति मिल जाए, तो आप क्या करेंगे? एक कागज पर आप बैठकर आज ही रात लिखना, तो आपको खयाल में आ जाएगा कि. अभी शक्ति मिल नहीं गई है, सिर्फ खयाल है, लेकिन मन सपने संजोना शुरू कर देगा कि क्या करना है।
यह भी पढ़े
और शक्ति अशुद्ध को भी मिल सकती है। इसलिए शक्ति के स्रोत छिपाकर रखे गए हैं। सीक्रेसी, योग, तंत्र और धर्म के आस—पास इतनी गुप्तता का कुल कारण यही है। क्योंकि शक्ति का स्रोत गलत आदमी को भी मिल सकता है; खतरनाक आदमी को भी मिल सकता है। और जब भी कोई वितान—कोई भी विज्ञान, चाहे आंतरिक, चाहे बाह्य—ऊंचाइयों पर पहुंचता है, तो खतरे शुरू हो जाते हैं।
अभी पश्चिम में विचार चलता है कि विज्ञान की जो नई खोजें हैं, वे गुप्त रखी जाएं, अब उनको प्रकट न किया जाए। क्योंकि विज्ञान की नई खोजें अब खतरे की सीमां पर पहुंच गई हैं। वे बुरे आदमी के हाथ में पड़ सकती हैं। पड़ ही रही हैं; क्योंकि राजनीतिज्ञ के हाथ में पड़ जाती है सारी खोज।
आइंस्टीन, जिसने हाथ बंटाया अणु शक्ति के निर्माण में, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि हिरोशिमां और नागासाकी में एक—एक लाख लोग जलकर राख हो जाएंगे मेरी खोज से।
ओशो - गीता दर्शन – भाग - 7, - अध्याय—15
(प्रवचन—पांचवां) — एकाग्रता और ह्रदय—शुद्धि
No comments:
Post a Comment