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ओशो - गीता दर्शन – भाग - 7, - अध्‍याय—15



जार का एक ही लड़का था, रूस के सम्राट का एक ही लड़का था। और सम्राट और सम्राज्ञी दोनों ही उस लड़के के लिए बड़े चिंतातुर थे। वह बचपन से ही बीमांर था, अस्वस्थ था। रासपुतिन की किसी ने खबर दी कि वह शायद ठीक कर दे। रासपुतिन ने उसे ठीक भी कर दिया। रासपुतिन ने उसके सिर पर हाथ रखा और वह बच्चा पहली दफा ठीक स्वस्थ अनुभव हुआ।

लेकिन तब से सम्राट के पूरे परिवार को रासपुतिन का गुलाम हो जाना पड़ा। क्योंकि रासपुतिन दो दिन के लिए कहीं चला जाए, तो वह बच्चा अस्वस्थ हो जाए। रासपुतिन का रोज राजमहल आना जरूरी है। और यह बात थोड़े दिन में साफ हो गई कि रासपुतिन अगर न होगा, तो बच्चा मर जाएगा। इलाज तो कम हुआ, इलाज बीमांरी बन गया! पहले तो कुछ चिकित्सकों का परिणाम भी होता था, अब किसी का भी कोई परिणाम न रहा। अब रासपुतिन की मौजूदगी नियमित चाहिए।

और उस लड़के के आधार पर रासपुतिन जितना शोषण कर सकता था जार का और ज़ारीना का, उसने किया। उसने जो चाहा, वह करवाया। मुल्क का प्रधानमंत्री भी नियुक्त करना हो, तो रासपुतिन जिसको इशारा करे, वह प्रधानमंत्री हो जाए। क्योंकि वह लड़के की जान उसके हाथ में हो गई। जिस व्यक्ति ने चित्त को बहुत एकाग्र किया हो, यह बड़ा आसान है। वह बच्चा सम्मोहित हो गया। वह बच्चा हिम्मोटाइब्द हो गया। अब यह सम्मोहित अवस्था उस बच्चे की, शोषण का आधार बन गई।

जीसस ने भी लोगों को स्वस्थ किया है। जीसस ने भी लोगों के सिर पर हाथ रखकर उनकी बीमांरियां अलग कर दी हैं। रासपुतिन के पास भी ताकत वही है, जो जीसस के पास है। रासपुतिन भी बीमांरी दूर कर सकता है। लेकिन रासपुतिन बीमांरी को रोक भी सकता है, जीसस वह न कर सकेंगे। रासपुतिन बीमांरी का शोषण भी कर सकता है, जीसस वह न कर सकेंगे।

हृदय शुद्ध हो, तो वही शक्ति सिर्फ चिकित्सा बनेगी। हृदय अशुद्ध हो, तो वही शक्ति शोषण भी बन सकती है।

कठिनाई हमें समझने में यह होती है कि अशुद्ध हृदय एकाग्र कैसे हो सकता है! कोई अड़चन नहीं है। एकाग्रता तो एक कला है; मन को एक जगह रोकने की कला है। इसलिए अगर दुनिया में बुरे लोगों के पास भी शक्ति होती है, तो उसका कारण यही है कि उनके पास भी एकाग्रता होती है।

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हिटलर के पास बड़ी एकाग्रता है। जर्मन जैसी बुद्धिमान जाति को इतने बड़े पागलपन में उतार देना सामान्य व्यक्ति की क्षमता नहीं है। हिटलर ने जो भी कहा, वह जर्मन जाति ने स्वीकार कर लिया। उसकी आंखों में जादू था। उसके कहने में बल था। उसके खड़े होते से सम्मोहन पैदा हो जाता।

जर्मनी की पराजय के बाद जिन लोगों ने अंतर्राष्ट्रीय अदालत में वक्तव्य दिए—उसमें बड़े बुद्धिमान लोग थे, प्रोफेसर थे, युनिवर्सिटी के वाइस चांसलर थे—उन्होंने यही कहा कि हम अब सोच भी नहीं पाते कि हमने यह सब कैसे किया! जैसे कोई शक्ति हमसे करवा रही थी।

दुनिया में बुरे आदमी के पास भी ताकत होती है, भले आदमी के पास भी ताकत होती है। ताकत एक ही है। बुरे आदमी के पास हृदय का यंत्र बुरा है। वही ताकत उसके बुरे यंत्र को चलाती है।

यह बिजली दौड़ रही है। इससे बिजली भी चल रही है, पंखा भी चल रहा है। पंखा खराब हो, बिजली वही दौड़ती रहेगी, लेकिन पंखे में खड़—खड़ शुरू हो जाएगी। पंखा बहुत खराब हो, तो टूटकर गिर भी सकता है, और किसी के प्राण भी ले सकता है। कसूर बिजली का नहीं है।

ओशो - गीता दर्शन – भाग - 7, - अध्‍याय—15
(प्रवचन—पांचवां) — एकाग्रता और ह्रदय—शुद्धि

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