आइंस्टीन से मरने के पहले किसी ने पूछा कि तुम अगर दुबारा जन्म लो तो क्या करोगे? तो उसने कहा, मैं एक प्लंबर होना पसंद करूंगा बजाय एक वैज्ञानिक होने के। क्योंकि वैज्ञानिक होकर देख लिया कि मेरे मांध्यम से, मेरे बिना जाने, मेरी बिना आकांक्षा के, मेरे विरोध में, मेरे ही हाथों से जो काम हुआ, उसके लिए मैं रोता हूं।
क्योंकि शक्ति तो खोजता है वैज्ञानिक और राजनीतिज्ञ के हाथ में पहुंच जाती है। और राजनीतिज्ञ शुद्ध रूप से अशुद्ध आदमी है। वह पूरा अशुद्ध आदमी है। क्योंकि उसकी दौड़ ही शक्ति की है। उसकी चेष्टा ही महत्वाकांक्षा की है। दूसरों पर कैसे हावी हो जाए! तो आइंस्टीन ने अपने अंतिम पत्रों में अपने मित्रों को लिखा है कि भविष्य में अब हमें सचेत हो जाना चाहिए। और हम जो खोजें, वह गुप्त रहे।
यह खयाल पश्चिम को अब आ रहा है। लेकिन हिंदुओं को यह खयाल आज से तीन हजार साल पहले आ गया।
पश्चिम में बहुत लोग विचार करते हैं कि हिंदुओं ने, जिन्होंने इतनी गहरी चितना की, उन्होंने विज्ञान की बहुत—सी बातें क्यों न खोजी!
चीन को आज से तीन हजार साल पहले यह खयाल आ गया कि विज्ञान खतरनाक है। चीन में सबसे पहले बारूद खोजी गई। लेकिन चीन ने बम नहीं बनाए; फुलझड़ी—फटाके बनाए। बारूद वही है, लेकिन चीन ने फुलझड़ी—फटाके बनाकर बच्चों का खेल किया, इससे ज्यादा उनका उपयोग नहीं किया।
यह तो बिलकुल साफ है कि जो फुलझड़ी—फटाके बना सकता है, उसको साफ है कि इससे आदमी की हत्या की जा सकती है। क्योंकि कभी—कभी तो फुलझड़ी—फटाके से हत्या हो जाती हैं। हर साल दीवाली पर न मालूम कितने बच्चे इस मुल्क में मरते हैं; अपंग हो जाते हैं; आंख फूट जाती है, हाथ जल जाते हैं।
तो तीन हजार साल पहले चीन को फटाके बनाने की कला आ गई। बम बड़ा फटाका है। लेकिन चीन ने उस कला को उस तरफ जाने ही नहीं दिया, उसको खेल बा दिया। जैसे ही यूरोप में बारूद पहुंची कि उन्होंने तत्काल बम बना लिया। बारूद की ईजाद पूरब में हुई और बम बना पश्चिम में।
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हिंदुओं को, चीनिओं को तीन हजार साल पहले बहुत—से विज्ञान के सूत्रों का खयाल हो गया। और उन्होंने वे बिलकुल गुप्त कर दिए। वे सूत्र नहीं उपयोग करने हैं।
न केवल विज्ञान के संबंध में, बल्कि धर्म के संबंध में भी हिंदुओं को, तिब्बतिओं को, चीनिओं को, पूरे पूरब को कुछ गहन सूत्र हाथ में आ गए। और यह बात भी साफ हो गई कि ये सूत्र गलत आदमी के हाथ में जाएंगे, तो खतरा है। तो उन सूत्रों को अत्यंत गुप्त कर दिया। जब गुरु समझेगा शिष्य को इस योग्य, तब वह उसके कान में दे देगा। सीक्रेसी, अत्यंत गुप्तता और गुह्यता है। और वह तब ही देगा, जब वह समझेगा कि शिष्य इस योग्य हुआ कि शक्ति का दुरुपयोग न होगा।
इसलिए जो भी महत्वपूर्ण है, वह शास्त्रों में नहीं लिखा हुआ है। शास्त्रों में तो सिर्फ अधूरी बातें लिखी हुई हैं। कोई भी गलत आदमी शास्त्र के मांध्यम से कुछ भी नहीं कर सकता। शास्त्र में मूल बिंदु छोड़ दिए गए हैं। जैसे सब बता दिया गया है, लेकिन चाबी शास्त्र में नहीं है। महल का पूरा वर्णन है। भीतर के एक—एक कक्ष का वर्णन है। लेकिन ताला कहा लगा है, इसकी किसी शास्त्र में कोई चर्चा नहीं है। और चाबी का तो कोई हिसाब शास्त्र में नहीं है। चाबी तो हमेशा व्यक्तिगत हाथों से गुरु शिष्य को देगा।
जिसको हम मंत्र कहते रहे हैं और दीक्षा कहते रहे हैं, वह गुप्तता में, जो जानता है उसके द्वारा उसको चाबी दिए जाने की कला है, जिससे खतरा नहीं है, जो दुरुपयोग नहीं करेगा; और चाबी को सम्हालकर रखेगा, जब तक कि योग्य आदमी न मिल जाए। और अगर योग्य आदमी न मिले, तो हिंदुओं ने तय किया कि चाबी को खो जाने देना, हर्जा नहीं है। जब भी योग्य आदमी होंगे, चाबी फिर खोजी जा सकती है। लेकिन गलत आदमी के हाथ में चाबी मत देना। वह बड़ा खतरा है। और एक बार गलत आदमी के हाथ में चाबी चली जाए तो अच्छे आदमी के पैदा होने का उपाय ही समाप्त हो जाता है।
ओशो - गीता दर्शन – भाग - 7, - अध्याय—15
(प्रवचन—पांचवां) — एकाग्रता और ह्रदय—शुद्धि
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