( गुरु की सेवा निष्फल नही होते)
( हम कथा सुनाते है नारायण गुरुदेव के ज्ञान की)
आज की यह सत्य घटना दिल्ली गुरुधाम की है , जहा पर सद गुरुदेव ने ना जाने कितने ही शिष्यो का उद्धार किया ,
कहते है बड़े ही भाग्य और सौभाग्य से जीवन मे एक सद गुरु मिलते है , हर किसी के जीवन यह सौभाग्य नही होता है , और कहते है कि गुरु और शिष्य का सम्बन्ध जन्मो जन्मो का होता है , यह कोई एक जन्म का मेल नही है इसी वजह से जब गुरु मिलते है तो वे जाने पहचाने से लगते है अपने से दीखते है , जैसे हम उनको कब से जानते है और अंदर से आवाज आती है ये ही तुम्हारे गुरु है , और
ये आँखे भी उनको जी भर के देखना चाहती है लेकिन इन
आँखों की प्यास ही नही बुझती है और हम इन आँखों के
माध्यम से उनको अपने ह्र्दय कमल मे बिठा लेते है , जैसे
शिष्य बेचैन रहता है गुरु से दूर रहकर वैसे ही , गुरु भी बेचैन रहते है अपने शिष्य का उद्धार करने के लिए , हर पल गुरु की नज़र , दृष्टि लगी रहती है अपने शिष्य पर , जब भी कोई गम्बीर समस्या हो या कोई दुर्घटना घटने वाली हो तो गुरु हमेशा उसकी रक्षा करते है और उसको बचा लेते हैं , और शिष्य अपने गुरु का बार बार धन्यवाद
करता है , ऐसे ही एक डॉक्टर आते थे दिल्ली आश्रम मे
जिनका नाम था डा0 दुबे जी , वे सद गुरुदेव जी को बहुत
प्रेम करते थे और निरन्तर हर रोज समय निकाल कर गुरु
देव जी के दर्शन करने अवश्य आते थे , और आश्रम में रहने वाले गुरुदेव जी के शिष्यो का इलाज भी करते थे ,
कोई भी सेवा हो वे कभी इनकार नहीं करते थे , वे तो सेवा को पाकर अपना सौभाग्य मानते थे , गुरुदेव जी की भी उनकी सेवा भाव व् गुरु भगति को देखकर बड़ी ही कृपा थी , सद गुरुदेव हमेशा एक बात कहते थे की अगर तुमने
मुझे अपना गुरु माना है तो फिर गुरु पर अटूट विशवास होना चाहिये और जिनका मुझपर अटूट विश्वास है मै उस
विश्वास को कभी भी टूटने नही दूँगा "अगर तुम मेरे पे
विशवास करके अपना घर भी खुला छोड़ कर मेरे से मिलने आ गए तो चोर तो बहुत बड़ी बात है कोई कुत्ता
या बिल्ली भी तुम्हारे घर में प्रवेश नही कर सकती है क्योंकि तुम्हारा और तुम्हारे घर का मे रखवाला हूं "
यह तुम्हारा विशवास है कि तुम गुरु पे कितना विशवास
रखते हो , यह गुरुदेव जी ने करके भी दिखलाया ,
एक बार की बात है सद गुरुदेव जी अक्सर सब
शिष्यो से मिलकर ( जो लोग बाहर से आते थे मिलने के लिए ) रात के 9 बजे के आसपास अपने कमरे में विश्राम
के लिये चले जाते थे , लेकिन वे उस दिन नही गय और
कुछ परेशान से भी लग रहे थे , गुरुदेव जी को अपने ऑफिस मे बैठे रात के 12 बज गए और लगभग 1 बजे के आसपास गुरुदेव अपने ऑफिस से बाहर निकले और पसीने से पूरा मुखमंडल भरा हुआ था , और बाहर आकर बोले रविन्द्र ( गुरुदेव जी का शिष्य ) बेटा एक रस्सी और एक डंडा लेकर आओ जल्दी से रविन्द्र ने पूछा क्या हुआ
गुरुदेव , गुरुदेव अपना पसीना पोछते हुये बोले बेटा डा0
दुबे के क्लिनिक मे चोर घुस गए हैं और उनको बाधने के
लिए एक रस्सी चाहिए , रविन्द्र का सर चकरा गया वह मन
मे सोचने लगा कि गुरुदेव तो आफिस से बाहर गय ही नही
और कह रहे हैं चोर घुस गया दुबे जी के यहाँ , लेकिन गुरु
आज्ञा उसने गुरुदेव को एक डंडा और एक रस्सी दे दी ,
गुरुदेव ने वह डंडा और रस्सी को लिया और तुरन्त फिर से
आफिस बन्ध कर दिया , और फिर वे 15 मिनट के बाद
बाहर निकल कर आए , अब गुरुदेव के मुखमंडल पर एक
शांति का भाव था , गुरुदेव ने स्टाफ के कुछ शिष्यो को कहा कि तुम अभी डा0 को फोन नही करोगे बेचारा अभी
गहरी नींद से सो रहा होगा , उसको सुबह 5या 6 बजे के
आसपास फोन कर देना और बोलना साथ में पुलिस को
लेकर जाए डरने की कोई बात नही है , मैने उन दोनों चोरों
को अच्छे से बांध दिया है , और ये सब बोलकर गुरुदेव अपने कमरे में विश्राम करने चले गए हम सब भी सो गए
सुबह सुबह डा0 दुबे जी को फोन किया गया और दुबे जी
पुलिस को लेकर आपने क्लीनिक पहुचे तो देखा 2 चोर बैठे हुए हैं लेकिन किसी ने उनको अच्छे से बाँधा हुआ है
और क्लीनिक के ताले टूटे हुये मिले , तो पुलिस ने पूछा
तुम्हारे इलावा तो यहाँ कोई नही है तो फिर तुम्हे किस ने बांधा पूरी बात बताओ , उन चोरों ने बताया जनाब जब
हम दोनों ने गेट का ताला और अंदर का ताला तोड़कर
अंदर क्लीनिक मे आए तो हमने देखा एक आदमी सफेद
रंग का धोती और कुर्ता पहने हमारे पीछे ही खड़ा था , उसने हमें कहा कि यहा से चले जाओ ,हमने
सोचा कि यह बड़ी उम्र का है हम इसको काबू में कर लेंगे
और फिर आराम से चोरी कर लेंगे , लेकिन जनाब उसमे
बड़ी ही गजब की फुर्ती थी उसने हमें बहुत पीटा और पीटने के बाद वह एक डंडा और एक रस्सी लेकर आया
पहले उसने हमें उस डंडे से मारा फिर उसने हमें रस्सी से
बांध दिया और सारी रात से वह सामने की कुर्सी पे बैठा हुआ था जनाब पता नही अब कहा चला गया , तो डा0 दुबे ने अपने ऑफिस से एक गुरुदेव का चित्र दिखाया उन
चोरों को और पूछा क्या यही था वो दोनों चोरों ने डरते डरते कहा हा जनाब यही है वो आदमी जिसने हमे पीटा
यह है वह विशवास जो दुबे जी करते है अपने गुरु पर यह
जीत उनके विशवास की है , उनके प्रेम की है , उनकी आस्था की है , यही विशवास गुरु को भी चाहिए आप से
( हम कथा सुनाते है नारायण गुरुदेव के ज्ञान की)
आज की यह सत्य घटना दिल्ली गुरुधाम की है , जहा पर सद गुरुदेव ने ना जाने कितने ही शिष्यो का उद्धार किया ,
कहते है बड़े ही भाग्य और सौभाग्य से जीवन मे एक सद गुरु मिलते है , हर किसी के जीवन यह सौभाग्य नही होता है , और कहते है कि गुरु और शिष्य का सम्बन्ध जन्मो जन्मो का होता है , यह कोई एक जन्म का मेल नही है इसी वजह से जब गुरु मिलते है तो वे जाने पहचाने से लगते है अपने से दीखते है , जैसे हम उनको कब से जानते है और अंदर से आवाज आती है ये ही तुम्हारे गुरु है , और
ये आँखे भी उनको जी भर के देखना चाहती है लेकिन इन
आँखों की प्यास ही नही बुझती है और हम इन आँखों के
माध्यम से उनको अपने ह्र्दय कमल मे बिठा लेते है , जैसे
शिष्य बेचैन रहता है गुरु से दूर रहकर वैसे ही , गुरु भी बेचैन रहते है अपने शिष्य का उद्धार करने के लिए , हर पल गुरु की नज़र , दृष्टि लगी रहती है अपने शिष्य पर , जब भी कोई गम्बीर समस्या हो या कोई दुर्घटना घटने वाली हो तो गुरु हमेशा उसकी रक्षा करते है और उसको बचा लेते हैं , और शिष्य अपने गुरु का बार बार धन्यवाद
करता है , ऐसे ही एक डॉक्टर आते थे दिल्ली आश्रम मे
जिनका नाम था डा0 दुबे जी , वे सद गुरुदेव जी को बहुत
प्रेम करते थे और निरन्तर हर रोज समय निकाल कर गुरु
देव जी के दर्शन करने अवश्य आते थे , और आश्रम में रहने वाले गुरुदेव जी के शिष्यो का इलाज भी करते थे ,
कोई भी सेवा हो वे कभी इनकार नहीं करते थे , वे तो सेवा को पाकर अपना सौभाग्य मानते थे , गुरुदेव जी की भी उनकी सेवा भाव व् गुरु भगति को देखकर बड़ी ही कृपा थी , सद गुरुदेव हमेशा एक बात कहते थे की अगर तुमने
मुझे अपना गुरु माना है तो फिर गुरु पर अटूट विशवास होना चाहिये और जिनका मुझपर अटूट विश्वास है मै उस
विश्वास को कभी भी टूटने नही दूँगा "अगर तुम मेरे पे
विशवास करके अपना घर भी खुला छोड़ कर मेरे से मिलने आ गए तो चोर तो बहुत बड़ी बात है कोई कुत्ता
या बिल्ली भी तुम्हारे घर में प्रवेश नही कर सकती है क्योंकि तुम्हारा और तुम्हारे घर का मे रखवाला हूं "
यह तुम्हारा विशवास है कि तुम गुरु पे कितना विशवास
रखते हो , यह गुरुदेव जी ने करके भी दिखलाया ,
एक बार की बात है सद गुरुदेव जी अक्सर सब
शिष्यो से मिलकर ( जो लोग बाहर से आते थे मिलने के लिए ) रात के 9 बजे के आसपास अपने कमरे में विश्राम
के लिये चले जाते थे , लेकिन वे उस दिन नही गय और
कुछ परेशान से भी लग रहे थे , गुरुदेव जी को अपने ऑफिस मे बैठे रात के 12 बज गए और लगभग 1 बजे के आसपास गुरुदेव अपने ऑफिस से बाहर निकले और पसीने से पूरा मुखमंडल भरा हुआ था , और बाहर आकर बोले रविन्द्र ( गुरुदेव जी का शिष्य ) बेटा एक रस्सी और एक डंडा लेकर आओ जल्दी से रविन्द्र ने पूछा क्या हुआ
गुरुदेव , गुरुदेव अपना पसीना पोछते हुये बोले बेटा डा0
दुबे के क्लिनिक मे चोर घुस गए हैं और उनको बाधने के
लिए एक रस्सी चाहिए , रविन्द्र का सर चकरा गया वह मन
मे सोचने लगा कि गुरुदेव तो आफिस से बाहर गय ही नही
और कह रहे हैं चोर घुस गया दुबे जी के यहाँ , लेकिन गुरु
आज्ञा उसने गुरुदेव को एक डंडा और एक रस्सी दे दी ,
गुरुदेव ने वह डंडा और रस्सी को लिया और तुरन्त फिर से
आफिस बन्ध कर दिया , और फिर वे 15 मिनट के बाद
बाहर निकल कर आए , अब गुरुदेव के मुखमंडल पर एक
शांति का भाव था , गुरुदेव ने स्टाफ के कुछ शिष्यो को कहा कि तुम अभी डा0 को फोन नही करोगे बेचारा अभी
गहरी नींद से सो रहा होगा , उसको सुबह 5या 6 बजे के
आसपास फोन कर देना और बोलना साथ में पुलिस को
लेकर जाए डरने की कोई बात नही है , मैने उन दोनों चोरों
को अच्छे से बांध दिया है , और ये सब बोलकर गुरुदेव अपने कमरे में विश्राम करने चले गए हम सब भी सो गए
सुबह सुबह डा0 दुबे जी को फोन किया गया और दुबे जी
पुलिस को लेकर आपने क्लीनिक पहुचे तो देखा 2 चोर बैठे हुए हैं लेकिन किसी ने उनको अच्छे से बाँधा हुआ है
और क्लीनिक के ताले टूटे हुये मिले , तो पुलिस ने पूछा
तुम्हारे इलावा तो यहाँ कोई नही है तो फिर तुम्हे किस ने बांधा पूरी बात बताओ , उन चोरों ने बताया जनाब जब
हम दोनों ने गेट का ताला और अंदर का ताला तोड़कर
अंदर क्लीनिक मे आए तो हमने देखा एक आदमी सफेद
रंग का धोती और कुर्ता पहने हमारे पीछे ही खड़ा था , उसने हमें कहा कि यहा से चले जाओ ,हमने
सोचा कि यह बड़ी उम्र का है हम इसको काबू में कर लेंगे
और फिर आराम से चोरी कर लेंगे , लेकिन जनाब उसमे
बड़ी ही गजब की फुर्ती थी उसने हमें बहुत पीटा और पीटने के बाद वह एक डंडा और एक रस्सी लेकर आया
पहले उसने हमें उस डंडे से मारा फिर उसने हमें रस्सी से
बांध दिया और सारी रात से वह सामने की कुर्सी पे बैठा हुआ था जनाब पता नही अब कहा चला गया , तो डा0 दुबे ने अपने ऑफिस से एक गुरुदेव का चित्र दिखाया उन
चोरों को और पूछा क्या यही था वो दोनों चोरों ने डरते डरते कहा हा जनाब यही है वो आदमी जिसने हमे पीटा
यह है वह विशवास जो दुबे जी करते है अपने गुरु पर यह
जीत उनके विशवास की है , उनके प्रेम की है , उनकी आस्था की है , यही विशवास गुरु को भी चाहिए आप से
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कुछ दिन पहले एक गुरु भाई ने भी अपनीएक पोस्ट में लिखा था कि इन किस्से कहानियों से कुछ नही होगा ,,( जो मै आप सबके लिये लिख रहा हूं ) मै भी
कहता हूँ नही होगा कुछ लेकिन जब एक अवतार आता है
उसकी लीलाए होती है वे हमें एक संदेश देती है वह संदेश है एक दृढ़ विश्वास का , एक मजबूत संकल्प शक्ति का ,
गुरु मे पूर्ण आस्था का , एक गुरु सेवा का भाव पैदा करती हैं , मन निर्मल होता है , मन मे गुरु साधना का विचार उठता है कि मै भी 16 माला गुरु मंत्र जप करूँगा , मै भी सुबह ब्रह्म मुहूर्त में साधना करूँगा , मै भी सवा लाख मंत्र जप का संकल्प लूँगा , हर सत्य घटना या कहानी हमे एक नई सीख देती है , एक प्रेरणा देती है ये अलग बात है हम इसको एक प्रेरणा माने या बस एक कहानी मान कर छोड़ दें , ये तो आप पर निर्भर करता है, जय गुरुदेव भगवान ॐ
एक शिष्य........
(राज राजेश्वर )
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