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धर्म ?

🌹 जय गुरुदेव 🌹

पहली बात यह है की धर्म की बात हम मान लेते हैं और जो समझाया गया है वैसे करते हैं। धर्म की बात मानने की नहीं है मगर अपने अभ्यास से उसका अनुभव करने की बात है समझना ठीक है मगर अनुभव तो हर गुरु भक्त को करना पड़ेगा । अपना खुद का अनुभव आपको मंजिल तक ले जाएगा ।
जो अपना शरीर है वह अपनी आत्मा का मंदिर है । शरीर मरण धर्मा है सबका शरीर मरने वाला तो है मगर यह शरीर में एक अमर तत्व भी है उसको अपनी आत्मा बोलते हैं । अपने पास एक ही शरीर में दो चीज का अनुभव तो हो गया । एक शरीर जो मरण धर्मा है । दूसरा अमर आत्मा है । शरीर और आत्मा के बीच में मन है ।
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आज तक किसी का शरीर ने कोई झंझट कि नहीं है । जो भी झंझट है वह आपके मन की है । मन क्या करता है । मन का काम कुछ ना कुछ करना और शांति से बैठने नहीं देना यह मन का काम है आपको ऑक्यूपाइड रखना उसका काम है । जिसे आप अहंकार भी बोल सकते हो । धर्म के मार्ग में अपना अहंकार आत्म अनुभूति के लिए बाधक है ।
अभी साधक को क्या करना पड़ेगा ?
साधक को अपने मन में रहते हुए भी मन के बाहर होना पड़ेगा । यह कैसे होगा ?
पहले तो आप की मान्यता है कि आप शरीर हो । दूसरी मान्यता है आप मन हो । तीसरी मान्यता है आप भाव हो । सामान्य मनुष्य की यही मान्यता है ।
सिद्ध पुरुष का कहना है आप की मान्यता सही नहीं है और आप आत्मा हो और अपनी आत्मा को जानकर आप परमात्मा का भी अनुभव कर सकते हो ।
सभी गुरु भक्तों यह समझ लेना आपके भीतर दो चीज है एक है शरीर जो मरण धर्मा है और दूसरा आत्मा जो अमर ही है । यह भी अनुभव करना जरूरी है ।
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