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शैलपुत्री साधना

 **शैलपुत्री साधना** माँ दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप, शैलपुत्री की उपासना को समर्पित है। शैलपुत्री का अर्थ है "पर्वत की पुत्री," और वह पार्वती जी का एक रूप हैं। शैलपुत्री की साधना नवरात्रि के पहले दिन की जाती है और यह साधना व्यक्ति के भीतर शुद्धता, धैर्य, और साहस को जागृत करती है। 


**शैलपुत्री साधना के चरण**:


1. **ध्यान और आह्वान**: 

   - शुद्ध स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन लगाएं।

   - साधक सबसे पहले अपनी मन, वाणी, और कर्म की शुद्धता के लिए ध्यान करें और मां शैलपुत्री का आह्वान करें।


2. **पूजन सामग्री**:

   - लाल या सफेद वस्त्र पहनें।

   - लाल पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य (फल, मिठाई), सफेद वस्त्र, और जल का प्रबंध करें।

   - मां शैलपुत्री को गाय का घी अर्पण करें, जिससे साधक को सेहत और मानसिक शक्ति प्राप्त होती है।


3. **मंत्र जाप**: 

   माँ शैलपुत्री का बीज मंत्र इस प्रकार है:

   - "ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः।"

   - इस मंत्र का 108 बार जाप करें।

   

4. **ध्यान मंत्र**: 

   साधना के समय इस ध्यान मंत्र का उच्चारण करें:

   - वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

     वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ 


5. **आरती और प्रार्थना**: 

   मंत्र जाप के बाद मां शैलपुत्री की आरती करें और उनके चरणों में अपने मन की कामनाओं को अर्पित करें। आरती के बाद सफेद वस्त्र और मिठाई का भोग लगाएं।


6. **साधना का फल**: 

   शैलपुत्री साधना से साधक की मानसिक और शारीरिक शक्ति बढ़ती है। यह साधना साधक के जीवन से कष्टों को दूर करती है और उसे दृढ़ता प्रदान करती है। 


शैलपुत्री साधना का महत्व विशेषकर नवरात्रि के दौरान अधिक होता है, क्योंकि यह साधना व्यक्ति के आत्मशक्ति को जागृत करती है और उसे मां दुर्गा की कृपा से जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करती है।

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