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कूष्मांडा साधना

 **कूष्मांडा साधना** माता कूष्मांडा की पूजा और साधना है, जो नवदुर्गा के चौथे स्वरूप मानी जाती हैं। उनके नाम का अर्थ है "कूष्मांडा" यानी "कुम्हड़ा" (पंपकिन) और "अंड" यानी ब्रह्माण्ड। ऐसा माना जाता है कि देवी कूष्मांडा ने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड का निर्माण किया, और वे सभी सृष्टियों की आदिस्रोत हैं।


**कूष्मांडा साधना के लाभ:**

1. साधक की मानसिक और शारीरिक क्षमता में वृद्धि होती है।

2. यह साधना आयु, आरोग्य और समृद्धि प्रदान करती है।

3. साधक के जीवन में नई ऊर्जा का संचार करती है।

4. मन में संतुलन और शांति प्राप्त होती है।


**कूष्मांडा साधना विधि:**

1. **साधना का समय:** नवरात्रि का चौथा दिन, या किसी शुभ दिन का चयन कर सकते हैं।

2. **आसन:** साधक को पूर्व दिशा की ओर मुख करके, कुश के आसन पर बैठना चाहिए।

3. **पूजन सामग्री:** लाल वस्त्र, लाल फूल, धूप, दीप, चंदन, मिठाई, कुम्हड़ा (कद्दू)।

4. **मंत्र:** कूष्मांडा देवी के निम्नलिखित मंत्र का जाप करें:

   - "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडा देवी नमः।"

   इस मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।

5. **ध्यान:** देवी का ध्यान करते समय उन्हें आठ भुजाओं वाली, हाथों में कमल, कमण्डल, धनुष, बाण, अमृत कलश, चक्र, गदा और जप माला धारण किये हुए रूप में ध्यान करना चाहिए।

6. **हवन:** जाप पूरा होने के बाद साधक को 108 आहुतियों के साथ हवन करना चाहिए।

   

**अन्य निर्देश:**

- इस साधना को पूरी श्रद्धा और ध्यान के साथ करना आवश्यक है।

- साधना के समय साधक को शुद्ध और सात्विक भोजन करना चाहिए।

  

इस साधना से साधक को आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

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