योग दर्शन, जिसे पतंजलि के योगसूत्रों के माध्यम से जाना जाता है, योग की एक प्राचीन भारतीय दार्शनिक प्रणाली है। यह दर्शन आध्यात्मिक, मानसिक, और शारीरिक अनुशासन को केंद्र में रखता है, जिसका उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और मुक्ति (कैवल्य) प्राप्त करना है। पतंजलि का योग दर्शन "अष्टांग योग" (आठ अंगों वाला योग) पर आधारित है, जो व्यक्ति को आंतरिक शांति, ध्यान, और आत्मा से जुड़ने के मार्ग पर ले जाता है।
**अष्टांग योग के आठ अंग**:
1. **यम**: नैतिक अनुशासन, जिसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (संयम), और अपरिग्रह (अधिकार न रखना) शामिल हैं।
2. **नियम**: व्यक्तिगत अनुशासन, जिसमें शौच (स्वच्छता), संतोष, तप (धैर्य), स्वाध्याय (आत्म-अध्ययन), और ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर के प्रति समर्पण) शामिल हैं।
3. **आसन**: शारीरिक मुद्राएँ, जो शरीर को स्थिरता और आराम प्रदान करती हैं।
4. **प्राणायाम**: श्वास-प्रश्वास का नियमन, जो जीवन-शक्ति (प्राण) को नियंत्रित करने का साधन है।
5. **प्रत्याहार**: इंद्रियों का संयम, जिसमें बाहरी विषयों से मन को हटाकर आंतरिक ध्यान में लगाना शामिल है।
6. **धारणा**: एकाग्रता, जो मन को एक ही बिंदु पर स्थिर करती है।
7. **ध्यान**: ध्यानमग्न अवस्था, जो लंबे समय तक एक बिंदु पर ध्यान केंद्रित करने से उत्पन्न होती है।
8. **समाधि**: आत्मा का परम सत्य के साथ एक हो जाना, जो अंतिम मुक्ति की स्थिति है।
योग दर्शन का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से जागृत करना और उसे सच्चे स्वरूप का अनुभव कराना है।
No comments:
Post a Comment